प्रतिभा किसी पर आसमान से नहीं बरसती। वह अंदर से ही जागती है। उसे जगाने के लिए केवल मनुष्य होना पर्याप्त है, फिर वह अन्य कोई प्रतिबन्ध नहीं मानती। मनुष्यत्व जगाने की स्थिति में तब वह तमाम सवर्णों को छोड़कर रैदास और कबीर का वरण करती है, बलवानों और सुन्दरों को छोड़कर गान्धीजी जैसे कमजोर शरीर और चाणक्य जैसे कुरूप को वह प्राप्त होती है। मनुष्यत्व के अनुशासन में जो आ जाता है तो बिना भेदभाव के उसका वरण कर लेती है।
ईश्वर की सौंपी हुई और सीना खोलकर स्वीकार की हुई जिम्मेदारी (युग निर्माण योजना) को छोड़ भागना यह अपने बस की बात नहीं। ईश्वरीय इच्छा की उपेक्षा करके अपनी असुविधाओं की चिन्ता करना यह गायत्री परिवार के लिए सब प्रकार अशोभनीय होगा। ऐसे अशोभनीय जीवन से तो मरण अच्छा। अब हमारे सामने एकमात्र कर्त्तव्य यही है कि हम धर्मयुग लाने की महान् प्रक्रिया को पूर्ण करने के लिए अपना सर्वस्व दाँव पर लगा दें।
हम चाहते हैं कि हमारे प्रत्येक परिजन के अंतःकरण में लोकसेवा को मानव जीवन का एक अनिवार्य कर्त्तव्य मानने की निष्ठा जम जाये। उनमें इतना सत्साहस जाग पड़े कि वह थोड़ा श्रम और थोड़ा धन नियमित रूप से उस प्रयोजन के लिए लगाने का निश्चय करे और उस निश्चय को दृढ़ता एवं भावनापूर्वक निबाहें। यदि इतना हो जाता तो गायत्री परिवार के गठन के पीछे हमारे श्रम, त्याग और उमड़ते हुए भावों की सार्थकता प्रमाणित हो जाती।
ईश्वर की सौंपी हुई और सीना खोलकर स्वीकार की हुई जिम्मेदारी (युग निर्माण योजना) को छोड़ भागना यह अपने बस की बात नहीं। ईश्वरीय इच्छा की उपेक्षा करके अपनी असुविधाओं की चिन्ता करना यह गायत्री परिवार के लिए सब प्रकार अशोभनीय होगा। ऐसे अशोभनीय जीवन से तो मरण अच्छा। अब हमारे सामने एकमात्र कर्त्तव्य यही है कि हम धर्मयुग लाने की महान् प्रक्रिया को पूर्ण करने के लिए अपना सर्वस्व दाँव पर लगा दें।
हम चाहते हैं कि हमारे प्रत्येक परिजन के अंतःकरण में लोकसेवा को मानव जीवन का एक अनिवार्य कर्त्तव्य मानने की निष्ठा जम जाये। उनमें इतना सत्साहस जाग पड़े कि वह थोड़ा श्रम और थोड़ा धन नियमित रूप से उस प्रयोजन के लिए लगाने का निश्चय करे और उस निश्चय को दृढ़ता एवं भावनापूर्वक निबाहें। यदि इतना हो जाता तो गायत्री परिवार के गठन के पीछे हमारे श्रम, त्याग और उमड़ते हुए भावों की सार्थकता प्रमाणित हो जाती।
✍🏻 पं श्रीराम शर्मा आचार्य
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