सोमवार, 26 जून 2023

👉 आत्मचिंतन के क्षण Aatmchintan Ke Kshan 26 June 2023

प्रतिभा किसी पर आसमान से नहीं बरसती। वह अंदर से ही जागती है। उसे जगाने के लिए केवल मनुष्य होना पर्याप्त है, फिर वह अन्य कोई प्रतिबन्ध नहीं मानती। मनुष्यत्व जगाने की स्थिति में तब वह तमाम सवर्णों को छोड़कर रैदास और कबीर का वरण करती है, बलवानों और सुन्दरों को छोड़कर गान्धीजी जैसे कमजोर शरीर और चाणक्य जैसे कुरूप को वह प्राप्त होती है। मनुष्यत्व के अनुशासन में जो आ जाता है तो बिना भेदभाव के उसका वरण कर लेती है।

ईश्वर की सौंपी हुई और सीना खोलकर स्वीकार की हुई जिम्मेदारी (युग निर्माण योजना) को छोड़ भागना यह अपने बस की बात नहीं। ईश्वरीय इच्छा की उपेक्षा करके अपनी असुविधाओं की चिन्ता करना यह गायत्री परिवार के लिए सब प्रकार अशोभनीय होगा। ऐसे अशोभनीय जीवन से तो मरण अच्छा। अब हमारे सामने एकमात्र कर्त्तव्य यही है कि हम धर्मयुग लाने की महान् प्रक्रिया को पूर्ण करने के लिए अपना सर्वस्व दाँव पर लगा दें।

हम चाहते हैं कि हमारे प्रत्येक परिजन के अंतःकरण में लोकसेवा को मानव जीवन का एक अनिवार्य कर्त्तव्य मानने की निष्ठा जम जाये। उनमें इतना सत्साहस जाग पड़े कि वह थोड़ा श्रम और थोड़ा धन नियमित रूप से उस प्रयोजन के लिए लगाने का निश्चय करे और उस निश्चय को दृढ़ता एवं भावनापूर्वक निबाहें। यदि इतना हो जाता तो गायत्री परिवार के गठन के पीछे हमारे श्रम, त्याग और उमड़ते हुए भावों की सार्थकता प्रमाणित हो जाती।

✍🏻 पं श्रीराम शर्मा आचार्य

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👉 उन्नति के पथ पर (भाग 3)

केवल ख्याति पाना ही तो उन्नति नहीं है। ख्याति तो चोर, डाकू, बदमाश आदि भी प्राप्त कर लेते हैं। ऐसी उन्नति से मनुष्यता को लाभ नहीं है। सात्विक तथा शुद्ध उन्नति ही संसार का भला कर सकती है। शुद्ध तथा दृढ़ संकल्प ही ऐसी उन्नति की पहली सीढ़ी है। और फिर उन्नति सभी के हृदयों में अंकुर रूप से विद्यमान है। सुविचारों और सुसंगति के पानी से यह अंकुर विशाल वृक्ष में परिणत हो जाता है। यह तो एक महोदधि है। मनुष्य कई बार असफल प्रयत्न होने पर भी साहस नहीं तोड़ते, वे ही मनुष्य रत्न अमूल्य रत्न ले आते हैं। उन्नति करते हुए यह ध्यान रहे कि उन्नति किसी को खोजती नहीं परन्तु वह खोजी जाती है। इसके लिये देखिये की आप से उन्नत कौन है। उनके संघ में रहिये और उन्नत होने का प्रयत्न करते रहिए।

कोई बुरा कार्य न करो। सोचो कि इस कार्य के लिये मनुष्य क्या कहेंगे। बुरे कार्य के कारण अपमानित होने का डर ही उन्नति का श्रीगणेश है। उन्नति करती है तो अपने आपको अनन्त समझो और निश्चय करो कि मैं उन्नति पथ पर अग्रसर हूँ। परन्तु अपनी समझ और अपने निश्चय को यथार्थ बनाने के लिये कटिबद्ध हो जाओ। अपने अनंत विचारों को शब्दों की अपेक्षा कार्य रूप में प्रगट करो। प्रयत्न करते हुए अपने आपको भूल जाओ। जब तुम अनन्त होने लगो तो अपने आपको महाशक्ति का अंश मान कर गौरव का अनुभव करो, परन्तु शरीर, बुद्धि और धन के अभिमान में चूर न हो जाओ। यदि उन्नति के कारण आपको अभिमान हो गया तो मध्याह्न के सूर्य की भाँति आपका पतन अवश्यंभावी है।

जब आप उन्नति पथ पर अग्रसर हैं तो भूल जायें कि आप कभी नीच, तथा दुष्ट-बुद्धि और पतित थे। निश्चित करो कि मेरा जन्म ही उन्नति के लिये हुआ है और ध्येय की प्राप्ति में सुध-बुध खो दो। और जब भी आपमें हीन विचार आये तो सोचो कि-जब वेश्या पतिव्रता हो गई तो उसे वेश्या कहना पाप है। दुष्ट जब भगवत् शरण हो गया, तो वह दुष्ट कहाँ रहा? जब लोहा पारस से छू गया तो उसमें लोहे के परमाणु भी तो नहीं रहे। इसी तरह जब मैं उन्नति पथ पर अग्रसर हूँ तो अवनति हो ही कैसे सकती है?

.... समाप्त
📖 अखण्ड ज्योति 1948  नवम्बर पृष्ठ 24


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