गुरुवार, 29 अगस्त 2019

👉 कमी का एहसास

एक प्रेमी-युगल शादी से पहले काफी हँसी मजाक और नोक झोंक किया करते थे। शादी के बाद उनमें छोटी छोटी बातो पे झगड़े होने लगे। कल उनकी सालगिरह थी, पर बीबी ने कुछ नहीं बोला वो पति का रिस्पॉन्स देखना चाहती थी। सुबह पति जल्द उठा और घर से बाहर निकल गया। बीबी रुआँसी हो गई।

दो घण्टे बाद कॉलबेल बजी, वो दौड़ती हुई जाकर दरवाजा खोली। दरवाजे पर गिफ्ट और बकेट के साथ उसका पति था। पति ने गले लग के सालगिरह विश किया। फिर पति अपने कमरे मेँ चला गया। तभी पत्नि के पास पुलिस वाले का फोन आता है की आपके पति की हत्या हो चूकी है, उनके जेब में पड़े पर्स से आपका फोन नम्बर ढूढ़ के कॉल किया।

पत्नि सोचने लगी की पति तो अभी घर के अन्दर आये है। फिर उसे कही पे सुनी एक बात याद आ गई की मरे हुये इन्सान की आत्मा अपना विश पूरा करने एक बार जरूर आती है। वो दहाड़ मार के रोने लगी। उसे अपना वो सारा चूमना, लड़ना, झगड़ना, नोक-झोंक याद आने लगा। उसे पश्चतचाप होने लगा की अन्त समय में भी वो प्यार ना दे सकी।

वो बिलखती हुई रोने लगी। जब रूम में गई तो देखा उसका पति वहाँ नहीं था। वो चिल्ला चिल्ला के रोती हुई प्लीज कम बैक कम बैक कहने लगी, लगी कहने की अब कभी नहीं झगड़ूंगी। तभी बाथरूम से निकल के उसके कंधे पर किसी ने हाथ रख के पूछा क्या हुआ?

वो पलट के देखी तो उसके पति थे। वो रोती हुई उसके सीने से लग गइ फिर सारी बात बताई। तब पति ने बताया की आज सुबह उसका पर्स चोरी हो गया था। फिर दोस्त की दुकान से उधार लिया गिफ्ट।

जिन्दगी में किसी की अहमियत तब पता चलती है जब वो नही होता, हमलोग अपने दोस्तो, रिश्तेदारो से नोकझोंक करते है, पर जिन्दगी की करवटे कभी कभी भूल सुधार का मौका नहीं देती।

!! हँसी खुशी में प्यार से जिन्दगी बिताइये, नाराजगी को ज्यादा दिन मत रखिये !!

👉 प्रेरणादायक प्रसंग Prerak Prasang 29 Augest 2019



👉 आज का सद्चिन्तन Today Thought 29 August 2019


👉 आध्यात्मिक तेज का प्रज्वलित पुंज होता है चिकित्सक (भाग ५८)

👉 अंतर्मन की धुलाई एवं ब्राह्मीचेतना से विलय का नाम है- ध्यान

ध्यान का यह रूप हमारे जीवन में भले न हो, पर कोई न कोई रूप तो है ही। और जैसा यह रूप है वैसा ही हमारा जीवन है। हमारे विचार और भावनाएँ प्रतिपल- प्रतिक्षण कहीं न कहीं तो एकाग्र होती हैं। यह बात अलग है कि यह एकाग्रता कभी द्वेष के प्रति होती है, कभी बैर के प्रति। कभी हम ईर्ष्या के प्रति एकाग्र होते हैं तो कभी लोभ- लालच के प्रति। यही नकारात्मक भाव, यही क्षुद्रताएँ हमारे ध्यान का विषय बनती हैं। और जैसा हमारा ध्यान वैसे ही हम बनते चले जाते हैं। कहीं हम अपने गहरे में इसे अनुभव करें तो यही पाएँगे कि ध्यान के इन नकारात्मक रूपों ने ही हमें रोगी व विषादग्रस्त बनाया। पल- पल भटकते हुए निषेधात्मक ध्यान के कारण ही हमारी यह दशा हुई है। इसकी चिकित्सा भी ध्यान ही है- सकारात्मक व विधेयात्मक ध्यान।

जब सही व सकारात्मक ध्यान की बात आती है, तो अनेको लोग सवाल उठाते हैं- कैसे करें ध्यान? मन ही नहीं लगता है। सच बात तो यह है कि उनका मन पहले से ही कहीं और लगा हुआ है। नकारात्मक क्षुद्रताओं में वह लिप्त है, अब सकारात्मक महानताएँ उसे रास नहीं आ रही। इस समस्या का हल यही है कि मन ने जिस विधि से गलत ध्यान सीखा है, उसी विधि से उसे सही ध्यान सीखना होगा। और यह विधि हमेशा से यह है कि जिस सत्य को, व्यक्ति को, विचार को हम लगातार याद करते हैं, अपने आप ही हमें उससे लगाव होने लगता है। यह लगाव धीरे- धीरे प्रगाढ़ प्रेम में बदलता है। उसी के प्रति हमारी श्रद्धा व आस्था पनपती है। यदि यही प्रक्रिया जारी रही तो इसकी सघनता इतनी अधिक होती है कि दुनिया की बाकी चीजें अपने आप ही बेमानी हो जाती हैं। और सारे विचार और सम्पूर्ण भावनाएँ उसमें एक रस हो जाती हैं। यही भाव दशा तो ध्यान है। साथ ही यही ध्यान में मन लगने के सवाल का समाधान है।

.... क्रमशः जारी
✍🏻 डॉ. प्रणव पण्ड्या
📖 आध्यात्मिक चिकित्सा एक समग्र उपचार पद्धति पृष्ठ ८०

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