मंगलवार, 3 अक्टूबर 2023

👉 आत्मचिंतन के क्षण Aatmchintan Ke Kshan 3 Oct 2023

प्रसन्नता और आनन्द में मौलिक अन्तर है। प्रसन्नता इच्छित भौतिक वस्तुओं की उपलब्धि पर होती है। पर वह देर तक टिकती नहीं। क्योंकि उससे भी बड़ी उपलब्धि की उत्कण्ठा तत्काल आ दबोचती है। सौ रुपये का लाभ हुआ। क्षण भर प्रसन्नता हुई। दूसरे ही क्षण, हजार की लालसा जग पड़ी और वे सौ रुपये अपर्याप्त लगने लगे। असन्तोष उत्पन्न करने लगे। साथ ही उन सौ रुपयों की रखवाली का नया ताना-बाना बुनना पड़ा। इतना ही नहीं जब उनके खर्च का हाथ बढ़ता है तो मुफ्त का या अनीति उपार्जित धन मात्र कुमार्ग में जाने के लिए रास्ता बनाता है। नशा, जुआ, शृंगार, व्यभिचार, ठाट-बाट बनाने जैसी बातें सूझती हैं। क्षण भर की प्रसन्नता कुछ ही क्षणों में नई चिन्ताओं और हैरानियों का बोझ लाद देती है।

सन्तोषी, प्रसन्नचित्त, कर्तव्यपरायण, सज्जन, समझदार, ईमानदार, जिम्मेदार और बहादुर मनुष्य जिसके प्रौढ़ और परिपक्व मन:स्थिति में रहते हैं उसे स्वर्ग कहते हैं। कठिनाइयां उनके सामने भी आती रहती हैं, पर वे उन्हें अपनी परीक्षा मानते हैं कि समाधान खोजने या सहने का पराक्रम या साहस उदय हुआ या नहीं। ऐसी आत्माएं स्वर्गलोक में काम करती हैं। उनकी प्रसन्नता, प्रफुल्लता को कोई छीन नहीं सकता है।                  
                                                     
मुक्ति भव-बन्धनों से छुटकारे को कहते हैं। भव-बन्धनों में हथकड़ी, बेड़ी और गले की तौक की तुलना दी गई है। पर इन्हें क्रूर, दुर्धर्ष अपराधियों को बन्दीगृहों में ही पहनाया जाता है। सामान्य लोग तो खुले हुए भी फिरते हैं। इस बन्धन अलंकार का तात्पर्य लोभ, मोह और अहंकार से है। उन्हें मनुष्य स्वयं ही अपने ऊपर लादता और मकड़ी के जाले की तरह उनमें स्वयं ही फंसता है। वह चाहे तो उस जाल-जंजाल को विवेक दृष्टि अपनाकर आसानी से समेट भी सकता है।       

✍🏻 पं श्रीराम शर्मा आचार्य

👉 बुद्धिमत्ता और मूर्खता की कसौटी

बुद्धिमत्ता की निशानी यह मानी जाती रही है कि उपार्जन बढ़ाया जाय—अपव्यय रोक जाय और संग्रहित बचत के वैभव से अपने वर्चस्व और आनन्द को बढ़ाया जाय। संसार के हर क्षेत्र में इसी कसौटी पर किसी को बुद्धिमान ठहराया जाता है।

मानव-जीवन की सफलता का लेखा-जोखा लेते हुए भी इसी कसौटी को अपनाया जाना चाहिए। जीवन-व्यवसाय में सद्भावनाओं की—सत्प्रवृत्तियों की पूँजी कितनी मात्रा में संचित की गई? सद्विचारों का, सद्गुणों का, सत्कर्मों का वैभव कितना कमाया गया? इस दृष्टि से अपनी उपलब्धियों को परखा, नापा जाना चाहिए। लगता हो कि व्यक्तित्व को समृद्ध बनाने वाली इन विभूतियों की संपन्नता बढ़ी है तो निश्चय ही बुद्धिमत्ता की एक परीक्षा में अपने को उत्तीर्ण हुआ समझा जाना चाहिए।

समय, श्रम, धन, वर्चस्व, चिन्तन मानव-जीवन की बहुमूल्य सम्पदाऐं हैं। इन्हें साहस और पुरुषार्थ पूर्वक सत्प्रयोजन में लगाने की तत्परता बुद्धिमत्ता की दूसरी कसौटी है। जिनने इन ईश्वर-प्रदत्त बहुमूल्य अनुदानों को पेट-प्रजनन में-विलास और अहंकार में खर्च कर डाला, समझना चाहिए वे बहुमूल्य रत्नों के बदले काँच-पत्थर खरीदने वाले उपहासास्पद मनःस्थिति के बाल-बुद्धि लोग हैं।

वस्तु का सही मूल्यांकन न कर सकने वाले और उपलब्धियों के सदुपयोग में प्रमाद बरतने वाले मूर्ख ही कहे जायेंगे। जीवन-क्षेत्र में हमारी सफलता-असफलता का लेखा-जोखा प्रस्तुत करते समय यह देखना चाहिए कि कहीं दूरदर्शिता के अभाव से हम सौभाग्य को दुर्भाग्य में तो नहीं बदल रहे हैं? जीवन बहुमूल्य सम्पदा है। यह अनुपम और अद्भुत सौभाग्य है। इस सुअवसर का समुचित लाभ उठाने के सम्बन्ध में हम दूरदर्शिता का परिचय दे, इसी में हमारी सच्ची बुद्धिमत्ता मानी जा सकती हैं।

अखण्ड ज्योति फरवरी 1974 पृष्ठ 1

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