सृष्टि जगत का अधिष्ठाता
इस सम्बन्ध में कई लोगों को संदेह होता है कि ईश्वर है भी अथवा नहीं, सामान्य दृष्टि से विचार करने पर भी ईश्वर के अस्तित्व को सिद्ध करने वाले अनेकों प्रमाण मिल जाते हैं। कोई यह सिद्ध करने के लिये पूर्वाग्रह ग्रस्त होकर ही चले कि ईश्वर नहीं है तो बात अलग है। अन्यथा ईश्वर का अस्तित्व उदित और चमकते सूरज से भी अधिक प्रत्यक्ष है। उदाहरण के लिये प्रत्येक कर्म का कोई अधिष्ठाता, प्रत्येक रचना का कोई कलाकार अवश्य होता है। आगरे का ताजमहल संसार के सर्व प्रसिद्ध सात आश्चर्यों में से एक है। उसके निर्माण में प्रतिदिन 20 हजार मजदूर काम करते थे, इतिहासकारों के अनुमान के अनुसार उसका निर्माण 6 करो रुपये में हुआ। उसके निर्माण में साढ़े अट्ठारह वर्ष लगे। उसमें राजस्थान से आया संगमरमर, तिब्बत की नीलम मणि, सिंहल की सिपास्लाजुली मणि, पंजाब के हीरे, बगदाद के पुखराज रत्न लगे हैं। इतनी सारी व्यवस्था और साधन सामग्री जुटाने में एक व्यक्ति की बुद्धि काम कर रही थी वह था शाहजहां। ताजमहल की रचना के साथ शाहजहां चिरकाल अमर है।
कोरिया का मेलोलियम संसार का दूसरा आश्चर्य। 62 हाथ लम्बी उतनी ही चौड़ी चहारदीवारी के मध्य 40-40 हाथ ऊंचे 36 स्तम्भ जो नीचे मोटे पर ऊपर क्रमशः पतले होते गये हैं। सीढ़ियों पर नीचे से ऊपर तक संगमरमर की बहुमूल्य मूर्तियों की सजावट। प्रसिद्ध कलाकार पाइथिस और माटीराम द्वारा विनिर्मित इस समाधि मन्दिर का निर्माण केवल एक व्यक्ति की इच्छित रचना है वह थीं वहां की महारानी ‘आर्टीमिसिया’।
20 लाख रुपये की लागत से बनी 25 फुट ऊंची ओलम्पिया की जुपिटर प्रतिमा एथेन के सम्राट पैराक्लीज की हार्दिक इच्छा का अभिव्यक्त रूप है। इफिसास का डायना मन्दिर चांदफिन की कल्पना का साकार है तो अजन्ता की 29 गुफाओं में 5 मन्दिरों और 24 बौद्ध बिहारों में प्रवर सेन युग के आचार्य सुनन्द का नाम अंकित है। सिकन्दरिया का प्रकाश स्तम्भ सिकन्दर के संकल्प का मूर्तिमान है। 263 हाथ के घेरे में 22 फुट ऊंचे ठोस घेरे में खड़ा किया गया बैबिलोन का लटकता हुआ बाग (हैंगिंग गार्डन) साम्राज्ञी ने बनवाया। रोम का कोलोसियस, पीसा की मीनार, रोडस की पीतल की मूर्ति, मिस्र के पिरामिड चार्टेज गिरजाघर डेविड, मोजेट, सिस्टाइन चैपिल पियेंटा की प्रतिमाएं, एफिल टावर (पेरिस) ह्वाइट हाउस अमेरिका, लाल किला दिल्ली आदि जितनी भी सर्वश्रेष्ठ रचनाएं हैं, उनके रचनाकार आला मस्तिष्क और भाव सम्पन्न आत्माएं रही हैं किसी भी सांसारिक निर्माण को स्वनिर्मित नहीं कहा जा सकता इसी से रचना के साथ रचनाकार का नाम अविच्छिन्न रूप से चलता है।
.... क्रमशः जारी
✍🏻 पं श्रीराम शर्मा आचार्य
📖 तत्व दृष्टि से बन्धन मुक्ति पृष्ठ ६१
परम पूज्य गुरुदेव ने यह पुस्तक 1979 में लिखी थी