शुक्रवार, 21 जुलाई 2023

👉 आत्मचिंतन के क्षण Aatmchintan Ke Kshan 21 July 2023

जो हमें प्यार करता हो, उसे हमारे मिशन से भी प्यार करना चाहिए। जो हमारे विचारों को तो सुनते, पढ़ते, समझते तो हैं, किन्तु आचरण में स्थान नहीं देते तो लगता है वह हमें ही उपेक्षित-तिरस्कृत कर रहा है।

यह एक स्पष्ट सच्चाई है कि अखण्ड ज्योति परिवार में हमने चुन-चुनकर, गिन-गिनकर, परख-परखकर मणि-मुक्त खोजे हैं और उन्हें एक शृंखला सूत्र में आबद्ध किया है। जिनकी पूर्व तपश्चर्याएँ और उत्कृष्ट भावनाएँ बहुत थीं- जो हमारे साथ थे, उन्हें हम पहचानते हैं, वे भले ही भूल गये हों।

हम अपने परिजनों से लड़ते-झगड़ते भी रहते हैं और अधिक काम करने के लिए उन्हें भला-बुरा भी कहते रहते हैं, पर यह सब इस विश्वास के कारण ही करते हैं कि उनमें पूर्वजन्मों के महत्त्वपूर्ण आध्यात्मिक संस्कार विद्यमान हैं, आज वे प्रसुप्त पड़े हैं, पर उन्हें झकझोरा जाय तो जगाया जा सकना असंभव नहीं। कटु प्रतीत होने वाली भाषा में और अप्रिय लगने वाले शब्दों में हम अक्सर परिजनों का अग्रगामी उद्बोधन करते रहते हैं। इस संदर्भ में रोष या तिरस्कार मन में नहीं रहता, वरन् आत्मीयता और अधिकार की भावना ही काम करती रहती है।

✍🏻 पं श्रीराम शर्मा आचार्य

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अपनी भूलों को स्वीकार कीजिए

जब मनुष्य कोई गलती कर बैठता है, तब उसे अपनी भूल का भय लगता है। वह सोचता है कि दोष को स्वीकार कर लेने पर मैं अपराधी समझा जाऊँगा, लोग मुझे बुरा भला कहेंगे और गलती का दंड भुगतना पड़ेगा। वह सोचता है कि इन सब झंझटों से बचने के लिए यह अच्छा है कि गलती को स्वीकार ही न करूँ, उसे छिपा लूँ या किसी दूसरे के सिर मढ़ दूँ।

इस विचारधारा से प्रेरित होकर काम करने वाले व्यक्ति भारी घाटे में रहते हैं। एक दोष छिपा लेने से बार- बार वैसा करने का साहस होता है और अनेक गलतियों को करने एवं छिपाने की आदत पड़ जाती है। दोषों के भार से अंतःकरण दिन- दिन मैला, भद्दा और दूषित होता जाता है और अंततः: वह दोषों की, भूलों की खान बन जाता है। गलती करना उसके स्वभाव में शामिल हो जाता है।

भूल को स्वीकार करने से मनुष्य की महत्ता कम नहीं होती वरन् उसके महान आध्यात्मिक साहस का पता चलता है। गलती को मानना बहुत बड़ी बहादुरी है। जो लोग अपनी भूल को स्वीकार करते हैं और भविष्य में वैसा न करने की प्रतिज्ञा करते हैं वे क्रमश: सुधरते और आगे बढ़ते जाते हैं। गलती को मानना और उसे सुधारना, यही आत्मोन्नति का सन्मार्ग है। तुम चाहो, तो अपनी गलती स्वीकार कर निर्भय, परम नि:शंक बन सकते हो।

✍🏻 पं श्रीराम शर्मा आचार्य
📖 अखण्ड ज्योति- अप्रैल 1946 पृष्ठ 1 


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👉 महिमा गुणों की ही है

🔷 असुरों को जिताने का श्रेय उनकी दुष्टता या पाप-वृति को नहीं मिल सकता। उसने तो अन्तत: उन्हें विनाश के गर्त में ही गिराया और निन्दा के न...