जो हमें प्यार करता हो, उसे हमारे मिशन से भी प्यार करना चाहिए। जो हमारे विचारों को तो सुनते, पढ़ते, समझते तो हैं, किन्तु आचरण में स्थान नहीं देते तो लगता है वह हमें ही उपेक्षित-तिरस्कृत कर रहा है।
यह एक स्पष्ट सच्चाई है कि अखण्ड ज्योति परिवार में हमने चुन-चुनकर, गिन-गिनकर, परख-परखकर मणि-मुक्त खोजे हैं और उन्हें एक शृंखला सूत्र में आबद्ध किया है। जिनकी पूर्व तपश्चर्याएँ और उत्कृष्ट भावनाएँ बहुत थीं- जो हमारे साथ थे, उन्हें हम पहचानते हैं, वे भले ही भूल गये हों।
यह एक स्पष्ट सच्चाई है कि अखण्ड ज्योति परिवार में हमने चुन-चुनकर, गिन-गिनकर, परख-परखकर मणि-मुक्त खोजे हैं और उन्हें एक शृंखला सूत्र में आबद्ध किया है। जिनकी पूर्व तपश्चर्याएँ और उत्कृष्ट भावनाएँ बहुत थीं- जो हमारे साथ थे, उन्हें हम पहचानते हैं, वे भले ही भूल गये हों।
हम अपने परिजनों से लड़ते-झगड़ते भी रहते हैं और अधिक काम करने के लिए उन्हें भला-बुरा भी कहते रहते हैं, पर यह सब इस विश्वास के कारण ही करते हैं कि उनमें पूर्वजन्मों के महत्त्वपूर्ण आध्यात्मिक संस्कार विद्यमान हैं, आज वे प्रसुप्त पड़े हैं, पर उन्हें झकझोरा जाय तो जगाया जा सकना असंभव नहीं। कटु प्रतीत होने वाली भाषा में और अप्रिय लगने वाले शब्दों में हम अक्सर परिजनों का अग्रगामी उद्बोधन करते रहते हैं। इस संदर्भ में रोष या तिरस्कार मन में नहीं रहता, वरन् आत्मीयता और अधिकार की भावना ही काम करती रहती है।
✍🏻 पं श्रीराम शर्मा आचार्य
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