बुधवार, 5 दिसंबर 2018

जीवन की सबसे बड़ी सिख

एक समय की बात है, एक जंगल में सेब का एक बड़ा पेड़ था. एक बच्चा रोज उस पेड़ पर खेलने आया करता था. वह कभी पेड़ की डाली से लटकता, कभी फल तोड़ता, कभी उछल कूद करता था, सेब का पेड़ भी उस बच्चे से काफ़ी खुश रहता था.कई साल इस तरह बीत गये. अचानक एक दिन बच्चा कहीं चला गया और फिर लौट के नहीं आया, पेड़ ने उसका काफ़ी इंतज़ार किया पर वह नहीं आया. अब तो पेड़ उदास हो गया था.

काफ़ी साल बाद वह बच्चा फिर से पेड़के पास आया पर वह अब कुछ बड़ा हो गया था. पेड़ उसे देखकर काफ़ी खुश हुआ और उसे अपने साथ खेलने के लिए कहा.

पर बच्चा उदास होते हुए बोला कि अब वह बड़ा हो गया है अब वह उसके साथ नहीं खेल सकता. बच्चा बोला की, “अब मुझे खिलोने से खेलना अच्छा लगता है, पर मेरे पास खिलोने खरीदने के लिए पैसे नहीं है”
पेड़ बोला, “उदास ना हो तुम मेरे फल (सेब) तोड़ लो और उन्हें बेच कर खिलोने खरीद लो. बच्चा खुशी खुशी फल (सेब) तोड़के ले गया लेकिन वह फिर बहुत दिनों तक वापस नहीं आया. पेड़ बहुत दुखी हुआ.

अचानक बहुत दिनों बाद बच्चा जो अब जवान हो गया था वापस आया, पेड़ बहुत खुश हुआ और उसे अपने साथ खेलने के लिए कहा.
पर लड़के ने कहा कि, “वह पेड़ के साथ नहीं खेल सकता अब मुझे कुछ पैसे चाहिए क्यूंकी मुझे अपने बच्चों के लिए घर बनाना है.”
पेड़ बोला, “मेरी शाखाएँ बहुत मजबूत हैं तुम इन्हें काट कर ले जाओ और अपना घर बना लो. अब लड़के ने खुशी-खुशी सारी शाखाएँ काट डालीं और लेकर चला गया. 

उस समय पेड़ उसे देखकर बहोत खुश हुआ लेकिन वह फिर कभी वापस नहीं आया. और फिर से वह पेड़ अकेला और उदास हो गया था.

अंत में वह काफी दिनों बाद थका हुआ वहा आया.
तभी पेड़ उदास होते हुए बोला की, “अब मेरे पास ना फल हैं और ना ही लकड़ी अब में तुम्हारी मदद भी नहीं कर सकता.

बूढ़ा बोला की, “अब उसे कोई सहायता नहीं चाहिए बस एक जगह चाहिए जहाँ वह बाकी जिंदगी आराम से गुजार सके.” पेड़ ने उसे अपनी जड़ो मे पनाह दी और बूढ़ा हमेशा वहीं रहने लगा.

यही कहानी आज हम सब की भी है. मित्रों इसी पेड़ की तरह हमारे माता-पिता भी होते हैं, जब हम छोटे होते हैं तो उनके साथ खेलकर बड़े होते हैं और बड़े होकर उन्हें छोड़ कर चले जाते हैं और तभी वापस आते हैं जब हमें कोई ज़रूरत होती है. धीरे-धीरे ऐसे ही जीवन बीत जाता है. हमें पेड़ रूपी माता-पिता की सेवा करनी चाहिए ना की सिर्फ़ उनसे फ़ायदा लेना चाहिए.

इस कहानी में हमें दिखाई देता है की उस पेड़ के लिए वह बच्चा बहुत महत्वपूर्ण था, और वह बच्चा बार-बार जरुरत के अनुसार उस सेब के पेड़ का उपयोग करता था, ये सब जानते हुए भी की वह उसका केवल उपयोग ही कर रहा है. इसी तरह आज-कल हम भी हमारे माता-पिता का जरुरत के अनुसार उपयोग करते है. 

और बड़े होने पर उन्हें भूल जाते है. हमें हमेशा हमारे माता-पिता की सेवा करनी चाहिये, उनका सम्मान करना चाहिये. और हमेशा, भले ही हम कितने भी व्यस्त क्यू ना हो उनके लिए थोडा समय तो भी निकलते रहना चाहिये.

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प्रतिष्ठा पा गई मूर्ति मन्दिर में अमंगल की।
कल्पना चीखती है, छटपटाती है मधुर फल की॥ 

हृदय का रक्त करे दान यह मन्दिर गढ़ा हमने, 
अनेकों शीश हँस-हँस कर दिये इस पर चढ़ा हमने, 

गिरा गौरव युगों से था किया फिर से खड़ा हमने, 
कठिनता से किया था प्राप्त अमृत का घड़ा हमने, 

सुधा का घट हमारे पास तक आ ही नहीं पाया- कि होने लग गई वर्षा प्रतीक्षा पर हलाहल की।

प्रतिष्ठा पा गई है मूर्ति मन्दिर में अमंगल की॥

जहाँ देखो- वही पद के लिये पागल पिपासा है,
 घृणा, छल, द्वेष, हिंसा का भयंकरतम कुहासा है, 

इन्हीं सबको समझ हमने लिया आधार जीवन का,
 न यह देखा कि है कितना बड़ा संसार जीवन का, 

सुयश सौंदर्य मैला हो रहा है मान-सरवर का- उगलने लग गये है हंस के दल राशि कजल की।

 प्रतिष्ठा पा गई मूर्ति मन्दिर में अमंगल की॥ 

चलो! लौटो कुपथ से- सत्य पथ तुमको बुलाता है, 
कुपथ देता नहीं कुछ- स्त्रोत जीवन के सुखाता हे, 

समय की घोषणा सुनकर जो अपना पथ बदलते है- वही उत्कर्ष के तरु फूलते हैं और फलते हैं, 

फंसा है संकटों में राष्ट्र देखो! आँख मत मूँदो,
 चिरन्तन सत्य के सिर पर न लाठी मारिये छल की। 
प्रतिष्ठा पा गई मूर्ति मन्दिर में अमंगल की॥

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