🌹 ‘‘हम बदलेंगे-युग बदलेगा’’, ‘‘हम सुधरेंगे-युग सुधरेगा’’ इस तथ्य पर हमारा परिपूर्ण विश्वास है।
🔴 व्यक्ति और समाज की समग्र प्रगति के लिए चिंतन की स्वस्थ दिशा एवं उत्कृष्टता दृष्टिकोण का होना अनिवार्य एवं आवश्यक है। इसकी पूर्ति चाहे आज की जाए चाहे से हजार वर्ष बाद। प्रगति का प्रभाव उसी दिन उदय होगा, जिस दिन यह भली-भाँति अनुभव कर लिया जाएगा कि दुर्दशा से छुटकारा पाने के लिए दुर्बुद्धि का परित्याग आवश्यक है। आज की स्थिति में सबसे बड़ा शौर्य, साहस, पराक्रम और पुरुषार्थ यह है कि हम पूरा मनोबल इकट्ठा करके अपनी और अपने सवे संबंधित व्यक्तियों की विचार शैली में ऐसा प्रखर परिवर्तन प्रस्तुत करें, जिसमें विवेक की प्रतिष्ठापना हो और अविवेकपूर्ण दुर्भावनाओं एवं दुष्प्रवृत्तियों को पैरों तले कुचल कर रख दिया जाए।
🔵 मूढ़ता और दुष्टता के प्रति व्यामोह ने हमें असहाय और कायर बना दिया है। जिसे अनुचित अवांछनीय समझते हैं, उसे बदलने सुधारने का साहस कर नहीं पाते। न तो सत्य को अपनाने का साहस है और न असत्य को त्यागने का। कुड़-कुड़ाते भर जरूर हैं कि हम अनुपयुक्त विचारणा एवं परिस्थितियों से ग्रस्त हैं, पर जब सुधार और बदलाव का प्रश्न आता है, तो पैर थर-थर कर काँपने लगते हैं और जी काँपने लगता है। कायरता नस-नस में रम कर बैठ गई है। अपनी अवांछनीय मान्यताओं से जो नहीं लड़ सकता, वह आक्रमणकारियों से क्या लड़ेगा? जो अपनी विचारणा को नहीं सुधार सकता, वह परिस्थितियों को क्या सुधारेगा?
🔴 युग परिवर्तन का शुभारंभ अपनी मनोभूमि के परिवर्तन के साथ आरंभ करना होगा। हम लोग नव निर्माण के संदेशवाहक एवं अग्रदूत हैं। परिवर्तन की प्रक्रिया हमें अपनी चिंतन दिशा अविवेक से विलग कर विवेक के आधार पर विनिर्मित करनी चाहिए। जो असत्य है, अवांछनीय है, अनुपयोगी है, उसे छोड़कर हम साहस दिखाएँ। अब बहादुरी का मुकुट उनके सिर बाँधा जाएगा, जो अपनी दुर्बलताओं से लड़ सकें और अवांछनीयता को स्वीकार करने से इंकार कर सकें। नव निर्माण के अग्रदूतों की साहसिकता इसी स्तर की होनी चाहिए। उनका प्रथम चरण अपनी अवांछनीय मान्यताओं को बदल डालने और अपने क्रिया-कलाप में आवश्यक परिवर्तन करने के लिए एक बार पूरा मनोबल इकट्ठा कर लेना चाहिए और बिना दूसरों की निंदा-स्तुति की, विरोध-समर्थन की चिंता किए निर्दिष्ट पथ पर एकाकी चल देना चाहिए। ऐसे बड़े कदम जो उठा सकते हों, उन्हीं से यह आशा की जाएगी कि युग परिवर्तन के महान् अभियान में वास्तविकता योगदान दे सकेंगे।
🌹 क्रमशः जारी
🌹 पं श्रीराम शर्मा आचार्य
http://literature.awgp.org/book/ikkeesaveen_sadee_ka_sanvidhan/v1.99
http://literature.awgp.org/book/ikkeesaveen_sadee_ka_sanvidhan/v2.18
🔴 व्यक्ति और समाज की समग्र प्रगति के लिए चिंतन की स्वस्थ दिशा एवं उत्कृष्टता दृष्टिकोण का होना अनिवार्य एवं आवश्यक है। इसकी पूर्ति चाहे आज की जाए चाहे से हजार वर्ष बाद। प्रगति का प्रभाव उसी दिन उदय होगा, जिस दिन यह भली-भाँति अनुभव कर लिया जाएगा कि दुर्दशा से छुटकारा पाने के लिए दुर्बुद्धि का परित्याग आवश्यक है। आज की स्थिति में सबसे बड़ा शौर्य, साहस, पराक्रम और पुरुषार्थ यह है कि हम पूरा मनोबल इकट्ठा करके अपनी और अपने सवे संबंधित व्यक्तियों की विचार शैली में ऐसा प्रखर परिवर्तन प्रस्तुत करें, जिसमें विवेक की प्रतिष्ठापना हो और अविवेकपूर्ण दुर्भावनाओं एवं दुष्प्रवृत्तियों को पैरों तले कुचल कर रख दिया जाए।
🔵 मूढ़ता और दुष्टता के प्रति व्यामोह ने हमें असहाय और कायर बना दिया है। जिसे अनुचित अवांछनीय समझते हैं, उसे बदलने सुधारने का साहस कर नहीं पाते। न तो सत्य को अपनाने का साहस है और न असत्य को त्यागने का। कुड़-कुड़ाते भर जरूर हैं कि हम अनुपयुक्त विचारणा एवं परिस्थितियों से ग्रस्त हैं, पर जब सुधार और बदलाव का प्रश्न आता है, तो पैर थर-थर कर काँपने लगते हैं और जी काँपने लगता है। कायरता नस-नस में रम कर बैठ गई है। अपनी अवांछनीय मान्यताओं से जो नहीं लड़ सकता, वह आक्रमणकारियों से क्या लड़ेगा? जो अपनी विचारणा को नहीं सुधार सकता, वह परिस्थितियों को क्या सुधारेगा?
🔴 युग परिवर्तन का शुभारंभ अपनी मनोभूमि के परिवर्तन के साथ आरंभ करना होगा। हम लोग नव निर्माण के संदेशवाहक एवं अग्रदूत हैं। परिवर्तन की प्रक्रिया हमें अपनी चिंतन दिशा अविवेक से विलग कर विवेक के आधार पर विनिर्मित करनी चाहिए। जो असत्य है, अवांछनीय है, अनुपयोगी है, उसे छोड़कर हम साहस दिखाएँ। अब बहादुरी का मुकुट उनके सिर बाँधा जाएगा, जो अपनी दुर्बलताओं से लड़ सकें और अवांछनीयता को स्वीकार करने से इंकार कर सकें। नव निर्माण के अग्रदूतों की साहसिकता इसी स्तर की होनी चाहिए। उनका प्रथम चरण अपनी अवांछनीय मान्यताओं को बदल डालने और अपने क्रिया-कलाप में आवश्यक परिवर्तन करने के लिए एक बार पूरा मनोबल इकट्ठा कर लेना चाहिए और बिना दूसरों की निंदा-स्तुति की, विरोध-समर्थन की चिंता किए निर्दिष्ट पथ पर एकाकी चल देना चाहिए। ऐसे बड़े कदम जो उठा सकते हों, उन्हीं से यह आशा की जाएगी कि युग परिवर्तन के महान् अभियान में वास्तविकता योगदान दे सकेंगे।
🌹 क्रमशः जारी
🌹 पं श्रीराम शर्मा आचार्य
http://literature.awgp.org/book/ikkeesaveen_sadee_ka_sanvidhan/v1.99
http://literature.awgp.org/book/ikkeesaveen_sadee_ka_sanvidhan/v2.18