शुक्रवार, 28 अप्रैल 2023

👉 दोषों में भी गुण ढूँढ़ निकालिये (अन्तिम भाग)

यदि हम इन लालसाओं पर नियंत्रण कर लें, अपना स्वभाव सन्तोषी बना लें, तो मामूली वस्तुओं से भी काम चलाते हुए प्रसन्न रह सकते हैं। अपने से भी कहीं अधिक गिरी स्थिति में, गरीबी में दिन गुजारने वाले लाखों करोड़ों व्यक्ति मौजूद है। उनकी तुलना में हम कहीं अधिक अच्छी स्थिति में माने जा सकते हैं। हमारी स्थिति के लिये भी लालायित करोड़ों व्यक्ति इस दुनिया में मौजूद है। दुःखी परेशान, चिन्तातुर एवं अभावग्रस्त भी इस संसार में कम नहीं हैं, उन्हें यदि हमारी स्थिति प्राप्त हो जाए तो निश्चय ही वे अपने भाग्य की सराहना करेंगे। इतने पर भी हम असंतुष्ट और दुःखी हैं तो इसमें कोई वास्तविक तथ्य नहीं है वरन् अपनी मानसिक लालसा ही इसमें मुख्य कारण है।

अपने से अधिक सुखी, अधिक साधन-सम्पन्न, अधिक ऊंची परिस्थिति के लोगों के साथ यदि अपनी तुलना की जाए तो प्रतीत होगा कि सारा अभाव और दारिद्र हमारे ही हिस्से में आया है। परन्तु यदि इन असंख्यों दीन-हीन, पीड़ित, परेशान लोगों के साथ अपनी तुलना करें तो अपने सौभाग्य की सराहना करने को जी चाहेगा। ऐसी दशा में यह स्पष्ट है कि अभाव या दारिद्र की कोई मुख्य समस्या अपने सामने नहीं है। समस्या केवल इतनी ही है कि हम अपने से गिरे लोगों से अपनी तुलना करते हैं या बढ़े हुए लोगों से। इस तुलना में हेर-फेर करने से हमारा असंतोष, संतोष में और संतोष, असंतोष में परिणित हो सकता है।

जिन स्वजन संबंधियों से, उनके छोटे-छोटे दुर्गुणों के कारण हमें झुँझलाहट आती है, जो हमें भार रूप और व्यर्थ मालूम पड़ते हैं, उनके द्वारा अपने ऊपर अब तक किये हुए अहसानों एवं उपकारों का स्मरण किया जाए तो लगेगा कि वह बड़े ही त्यागी, सेवा-भावी और उदार हैं। यदि उनकी अब तक की समस्त सेवा सहायताओं का स्मरण किया जाए तो लगेगा कि वे साक्षात उपकारों के देवता हैं। उनका कृतज्ञ होना चाहिए और भाग्य को सराहना चाहिये कि ऐसे उपकारी स्नेह मित्र स्वजन सम्बंधी हमें उपलब्ध हुए। तृष्णा का कोई अंत नहीं। एक से एक अच्छी और एक से एक सुन्दर चीजें इस दुनिया में मौजूद हैं।

उस क्रम का अन्त नहीं आज जो कुछ हम चाहते हैं उसे मिलने पर कल और बढ़िया का मोह बढ़ेगा। बढ़ियापन का कहीं अन्त नहीं। इस कुचक्र में उलझने से सदा घोर असन्तोष ही बना रहेगा। इस लिए यदि चित्त का समाधान करना हो तो कहीं न कहीं पहुँच कर सन्तोष करना पड़ेगा। यदि उस सन्तोष को आज ही वर्तमान स्थिति में ही, कर लिया जाए तो तृप्ति, पूर्णता और संतोष के रसास्वादन का आनन्द आज ही उपलब्ध हो सकता है। इसके लिये एक क्षण की प्रतिक्षा न करनी पड़ेगी।

सुख और दुःख किन्हीं परिस्थितियों का नाम नहीं, वरन् मन की दशाओं का नाम है। संतोष और असंतोष वस्तुओं में नहीं वरन् भावनाओं और मान्यताओं से होता है। इसलिये उचित यही है कि सुख-शाँति की परिस्थितियाँ ढूँढ़ते फिरने की अपेक्षा अपने दृष्टिकोण को ही परमार्जित करने का प्रयत्न करें। इस प्रयत्न में हम जितने ही सफल होंगे अंतःशाँति के उतने ही निकट पहुँच जायेंगे।

.... समाप्त
✍🏻 पं श्रीराम शर्मा आचार्य
📖 अखण्ड ज्योति दिसम्बर 1960 पृष्ठ 6

✍🏻 पं श्रीराम शर्मा आचार्य

All World Gayatri Pariwar Official  Social Media Platform

Shantikunj WhatsApp
8439014110

Official Facebook Page

Official Twitter

Official Instagram

Youtube Channel Rishi Chintan

Youtube Channel Shantikunjvideo

👉 आत्मचिंतन के क्षण Aatmchintan Ke Kshan 28 April 2023

हिन्दू धर्म आध्यात्म प्रधान रहा है। आध्यात्मिक जीवन उसका प्राण है। अध्यात्म के प्रति उत्सर्ग करना ही सर्वोपरि नहीं है, बल्कि पूर्ण शक्ति का उद्भव और उत्सर्ग दोनों की ही आध्यात्मिक जीवन में आवश्यकता है। कर्म करना और कर्म को चैतन्य के साथ मिला देना ही यज्ञमय जीवन है। यह यज्ञ जिस संस्कृति का आधार होगा, वह संस्कृति और संस्कृति को मानने वाली जाति हमेशा अमर रहेगी।

आज का युग "खूब कमाओ, आवश्यकताएँ बढाओं, मजा उडाओं" की भ्रान्त धारणा में लगा है और सुख को दु:खमय स्थानों में ढूँढ़ रहा है। उसकी सम्पत्ति बढी है, अमेरिका जैसे देशों में अनन्त सम्पत्ति भरी पडी है । धन में सुख नहीं है, अतृप्ति है, मृगतृष्णा है। संसार में शक्ति की कमी नहीं, आराम और विलासिता की नाना वस्तुएँ बन चुकी हैं, किन्तु इसमें तनिक भी शान्ति या तृप्ति नहीं।

जब तब कोई मनुष्य या राष्ट्र ईश्वर में विश्वास नहीं रखता, तब तक उसे कोई स्थायी विचार का आधार नहीं मिलता। अध्यात्म हमें एक दृढ़ आधार प्रदान करता है। अध्यात्मवादी जिस कार्य को हाथ में लेता है वह दैवी शक्ति से स्वयं ही पूर्ण होता है। भौतिकवादी सांसारिक उद्योगों मे कार्य पूर्ण करना चाहता है, लेकिन ये कार्य पूरे होकर भी शान्ति नहीं देते।

✍🏻 पं श्रीराम शर्मा आचार्य

All World Gayatri Pariwar Official  Social Media Platform

Shantikunj WhatsApp
8439014110

Official Facebook Page

Official Twitter

Official Instagram

Youtube Channel Rishi Chintan

Youtube Channel Shantikunjvideo

👉 महिमा गुणों की ही है

🔷 असुरों को जिताने का श्रेय उनकी दुष्टता या पाप-वृति को नहीं मिल सकता। उसने तो अन्तत: उन्हें विनाश के गर्त में ही गिराया और निन्दा के न...