यह भी देखिये कि ऐसी ही अपेक्षा दूसरे भी आपसे रखते हैं। जिस प्रकार आपको प्रशंसा प्रिय है। वैसे ही दूसरों को भी। आप दूसरों से सहयोग और सहानुभूति चाहते हैं वैसे ही आपके मित्र-बन्धु पड़ौसी भी आपसे ऐसी ही अपेक्षा रखते हैं। स्वयं औरों से सेवा लेकर दूसरों को अँगूठा दिखाने का संकीर्ण दृष्टिकोण अपनाने से आप औरों की नजरों से गिर जायेंगे। यदि चाहते हैं आड़े वक्त आपकी कोई मदद करे तो औरों के दुःख में हाथ बंटाइये, और सहानुभूति प्रकट कीजिये। औरों के साथ उदारतापूर्वक व्यवहार करने से ही उनका हृदय जीत सकते हैं। सहयोग और सहानुभूति प्राप्त कर सकते हैं। इस संसार में सर्वत्र क्रिया की प्रतिक्रिया चलती है। “दो तो मिलेगा” की ही नीति सच्ची और व्यवहारिक है।
कई बार ऐसा होता है कि कोई बात आप भूल जाते हैं। कोई बात आपकी स्मरण शक्ति से उतर जाती है। इसका दण्ड आप अपने घर वालों, बच्चों और प्रियजनों को देने लगते हैं। कभी-कभी ऐसा भी होता है कि आप यह मान बैठते हैं कि मैंने बच्चे को अमुक वस्तु लाने के लिए कह दिया था, वस्तुतः आपने कहा नहीं था। कभी-कभी अस्पष्ट या अधूरे आदेशों को दूसरा ठीक प्रकार समझ नहीं पाता और आप यह समझ बैठते हैं कि हमारी अवज्ञा की गई है।
जिसे आदेश दिया था यह अपनी असमर्थता, प्रकट करता है तो इसे आप उसकी अवज्ञा मान कर दण्ड देते हैं, झिड़कते और भला-बुरा कहते हैं। भूल जाने की बात मानवीय है। आपकी ही तरह दूसरा भी मानसिक कमजोरी के कारण भूल कर सकता है। आप यहीं मान लें कि भूल हमसे या दूसरों से हो सकती है तो क्यों किसी को दण्ड देंगे, क्यों दुर्भाव पैदा करेंगे? मानसिक सन्तुलन बनाये रखने के लिए इस प्रकार करना ही अच्छा होता है।
.....क्रमशः जारी
✍🏻 पं श्रीराम शर्मा आचार्य
📖 अखण्ड ज्योति जुलाई 1964 पृष्ठ 41
http://literature.awgp.org/akhandjyoti/1964/July/v1.41
कई बार ऐसा होता है कि कोई बात आप भूल जाते हैं। कोई बात आपकी स्मरण शक्ति से उतर जाती है। इसका दण्ड आप अपने घर वालों, बच्चों और प्रियजनों को देने लगते हैं। कभी-कभी ऐसा भी होता है कि आप यह मान बैठते हैं कि मैंने बच्चे को अमुक वस्तु लाने के लिए कह दिया था, वस्तुतः आपने कहा नहीं था। कभी-कभी अस्पष्ट या अधूरे आदेशों को दूसरा ठीक प्रकार समझ नहीं पाता और आप यह समझ बैठते हैं कि हमारी अवज्ञा की गई है।
जिसे आदेश दिया था यह अपनी असमर्थता, प्रकट करता है तो इसे आप उसकी अवज्ञा मान कर दण्ड देते हैं, झिड़कते और भला-बुरा कहते हैं। भूल जाने की बात मानवीय है। आपकी ही तरह दूसरा भी मानसिक कमजोरी के कारण भूल कर सकता है। आप यहीं मान लें कि भूल हमसे या दूसरों से हो सकती है तो क्यों किसी को दण्ड देंगे, क्यों दुर्भाव पैदा करेंगे? मानसिक सन्तुलन बनाये रखने के लिए इस प्रकार करना ही अच्छा होता है।
.....क्रमशः जारी
✍🏻 पं श्रीराम शर्मा आचार्य
📖 अखण्ड ज्योति जुलाई 1964 पृष्ठ 41
http://literature.awgp.org/akhandjyoti/1964/July/v1.41