सोमवार, 21 जनवरी 2019

👉 अपने दोषों को भी देखा कीजिए! (भाग 3)

यह भी देखिये कि ऐसी ही अपेक्षा दूसरे भी आपसे रखते हैं। जिस प्रकार आपको प्रशंसा प्रिय है। वैसे ही दूसरों को भी। आप दूसरों से सहयोग और सहानुभूति चाहते हैं वैसे ही आपके मित्र-बन्धु पड़ौसी भी आपसे ऐसी ही अपेक्षा रखते हैं। स्वयं औरों से सेवा लेकर दूसरों को अँगूठा दिखाने का संकीर्ण दृष्टिकोण अपनाने से आप औरों की नजरों से गिर जायेंगे। यदि चाहते हैं आड़े वक्त आपकी कोई मदद करे तो औरों के दुःख में हाथ बंटाइये, और सहानुभूति प्रकट कीजिये। औरों के साथ उदारतापूर्वक व्यवहार करने से ही उनका हृदय जीत सकते हैं। सहयोग और सहानुभूति प्राप्त कर सकते हैं। इस संसार में सर्वत्र क्रिया की प्रतिक्रिया चलती है। “दो तो मिलेगा” की ही नीति सच्ची और व्यवहारिक है।

कई बार ऐसा होता है कि कोई बात आप भूल जाते हैं। कोई बात आपकी स्मरण शक्ति से उतर जाती है। इसका दण्ड आप अपने घर वालों, बच्चों और प्रियजनों को देने लगते हैं। कभी-कभी ऐसा भी होता है कि आप यह मान बैठते हैं कि मैंने बच्चे को अमुक वस्तु लाने के लिए कह दिया था, वस्तुतः आपने कहा नहीं था। कभी-कभी अस्पष्ट या अधूरे आदेशों को दूसरा ठीक प्रकार समझ नहीं पाता और आप यह समझ बैठते हैं कि हमारी अवज्ञा की गई है।

जिसे आदेश दिया था यह अपनी असमर्थता, प्रकट करता है तो इसे आप उसकी अवज्ञा मान कर दण्ड देते हैं, झिड़कते और भला-बुरा कहते हैं। भूल जाने की बात मानवीय है। आपकी ही तरह दूसरा भी मानसिक कमजोरी के कारण भूल कर सकता है। आप यहीं मान लें कि भूल हमसे या दूसरों से हो सकती है तो क्यों किसी को दण्ड देंगे, क्यों दुर्भाव पैदा करेंगे? मानसिक सन्तुलन बनाये रखने के लिए इस प्रकार करना ही अच्छा होता है।

.....क्रमशः जारी
✍🏻 पं श्रीराम शर्मा आचार्य
📖 अखण्ड ज्योति जुलाई 1964 पृष्ठ 41

http://literature.awgp.org/akhandjyoti/1964/July/v1.41
 

👉 युग बदल रहा है- हम भी बदलें

भगवान् की इच्छा युग परिवर्तन की व्यवस्था बना रही है। इसमें सहायक बनना ही वर्तमान युग में जीवित प्रबुद्ध आत्माओं के लिये सबसे बड़ी दूरदर्शिता है। अगले दिनों में पूँजी नामक वस्तु किसी व्यक्ति के पास नहीं रहने वाली है। धन एवं सम्पत्ति का स्वामित्व सरकार एवं समाज का होना सुनिश्चित है। हर व्यक्ति अपनी रोटी मेहनत करके कमायेगा और खायेगा। कोई चाहे तो इसे एक सुनिश्चित भविष्यवाणी की तरह नोट कर सकता है।

अगले दिनों इस तथ्य को अक्षरशः सत्य सिद्ध करेंगे। इसलिये वर्तमान युग के विचारशील लोगों से हमारा आग्रह पूर्वक निवेदन है कि वे पूँजी बढ़ाने, बेटे पोतों के लिये जायदादें इकट्ठी करने के गोरख-धंधे में न उलझें। राजा और जमींदारों को मिटते हमने अपनी आँखों देख लिया अब इन्हीं आँखों को व्यक्तिगत पूँजी को सार्वजनिक घोषित किया जाना देखने के लिए तैयार रहना चाहिए।

भले ही लोग सफल नहीं हो पा रहे हैं पर सोच और कर यही रहे हैं कि वे किसी प्रकार अपनी वर्तमान सम्पत्ति को जितना अधिक बढ़ा सकें, दिखा सकें उसकी उधेड़ बुन में जुटे रहें। यह मार्ग निरर्थक है। आज की सबसे बड़ी बुद्धिमानी यह है कि किसी प्रकार गुजारे की बात सोची जाए। परिवार के भरण-पोषण भर के साधन जुटाये जायें और जो जमा पूँजी पास है उसे लोकोपयोगी कार्य में लगा दिया जाए।

जिनके पास नहीं है वे इस तरह की निरर्थक मूर्खता में अपनी शक्ति नष्ट न करें। जिनके पास गुजारे भर के लिए पैतृक साधन मौजूद हैं, जो उसी पूँजी के बल पर अपने वर्तमान परिवार को जीवित रख सकते हैं वे वैसी व्यवस्था बना कर निश्चित हो जायें और अपना मस्तिष्क तथा समय उस कार्य में लगायें, जिसमें संलग्न होना परमात्मा को सबसे अधिक प्रिय लग सकता है।

✍🏻 पं श्रीराम शर्मा आचार्य
📖 अखण्ड ज्योति 1967 मार्च


सिद्धियाँ कहाँ है और कैसे प्राप्त करें ~ डॉ चिन्मय पंड्या

https://youtu.be/VAuLh_IObak

👉 आत्म ख़ज़ाना

सत्संग का आदर करो प्यारे और खुद को पहचानों आप क्या हो और क्या कर रहे हो?

एक भिखारी था । उसने सम्राट होने के लिए कमर कसी। चौराहे पर अपनी फटी-पुरानी चादर बिछा दी, अपनी हाँडी रख दी और सुबह-दोपहर-शाम भीख माँगना शुरू कर दिया क्योंकि उसे सम्राट होना था। भीख माँगकर भी भला कोई सम्राट हो सकता है ? किंतु उसे इस बात का पता नहीं था।

भीख माँगते-माँगते वह बूढ़ा हो गया और मौत ने दस्तक दी। मौत तो किसी को नहीं छोड़ती। वह बूढ़ा भी मर गया। लोगों ने उसकी हाँडी फेंक दी, सड़े-गले बिस्तर नदी में बहा दिये, जमीन गंदी हो गयी थी तो सफाई करने के लिए थोड़ी खुदाई की । खुदाई करने पर लोगों को वहाँ बहुत बड़ा खजाना गड़ा हुआ मिला।

तब लोगों ने कहा: 'कितना अभागा था! जीवनभर भीख माँगता रहा। जहाँ बैठा था अगर वहीं जरा-सी खुदाई करता तो सम्राट हो जाता!'

ऐसे ही हम जीवनभर बाहर की चीजों की भीख माँगते रहते हैं किन्तु जरा-सा भीतर गोता मारें, ईश्वर को पाने के लिए ध्यान का जरा-सा अभ्यास करें तो उस आत्मखजाने को भी पा सकते हैं, जो हमारे अंदर ही छुपा हुआ है।
 

👉 आज का सद्चिंतन 21 Jan 2019

👉 प्रेरणादायक प्रसंग 21 Jan 2019

👉 आत्मचिंतन के क्षण 21 Jan 2019

◾  उन्नति के लिए चाहे कितने ही व्यक्ति सहानुभूति व्यक्त क्यों न करें, पर यह निर्विवाद है कि हमारा इससे कुछ काम न चलेगा। हमें अपनी स्थिति स्वयं सुधारनी होगी। स्वयं कठिनाइयों से लड़कर नया निर्माण करना पड़ेगा। विशृंखलित शक्तियों को जुटाकर आगे बढ़ने का कार्यक्रम बनाना पड़ेगा। यह बात यदि समझ में आ जाय तो सफलता की आधी मंजिल तय कर ली ऐसा समझना चाहिए। शेष आधे के लिए मनोबल जुटाकर यत्नपूर्वक आगे बढ़िये आपका सौभाग्य आपके मंगल मिलन के लिए प्रतीक्षा कर रहा है।

◾  मानसिक अशान्ति एक ऐसा आंतरिक आंदोलन है, जिसके उठने से मनुष्य  का विवेक, विचार एवं ज्ञान नष्ट हो जाता है। उसकी बुद्धि असंतुलित हो जाती है, जिसके फलस्वरूप वह अशान्ति के कारणों का निराकरण कर सकने में सर्वथा असमर्थ रहता है और यदि उद्विग्न अवस्था में कोई उलटे सीधे प्रयत्न करता भी है तो उसके परिणाम उलटे ही निकलते हैं।

◾  भविष्य की आशंकाओं से चिंतित और आतंकित कभी नहीं होना चाहिए। आज की अपेक्षा कल और भी अच्छी परिस्थितियों की आशा करना यही वह सम्बल है, जिसके आधार पर प्रगति के पथ पर मनुष्य सीधा चलता रह सकता है। जो निराश हो गया, जिसकी हिम्मत टूट गई, जिसकी आशा का दीपक बुझ गया, जिसे अपना भविष्य अंधकार मय दीखता रहता है, वह तो मृतक समान है। जिंदगी उसके लिए भार बन जावेगी और वह काटे नहीं कटेगी।

◾  देवत्व हमारी आवश्यकता है। दुष्प्रवृत्तियों से भय लगता है। पवित्रता हमें प्रिय है। अपवित्रता से दुःख मिलता है। निश्छलता से सुख मिलता है। छल और कपट के कारण जो संकीर्ण स्वभाव बनता है, उससे अपमान मिलता है। जो कुछ भी श्रेष्ठ है, सार्थक है, वही आत्मा है और उसी को प्राप्त करना मनुष्य जीवन का मूल उद्देश्य है। जब तक इस बात को समझ नहीं लेते कोई भी समस्या हल नहीं होती।

✍🏻 पं श्रीराम शर्मा आचार्य
 
समय नहीं मिलता कहना छोड़े
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https://youtu.be/iLsccN62T6s
 

👉 महिमा गुणों की ही है

🔷 असुरों को जिताने का श्रेय उनकी दुष्टता या पाप-वृति को नहीं मिल सकता। उसने तो अन्तत: उन्हें विनाश के गर्त में ही गिराया और निन्दा के न...