बुधवार, 18 अक्टूबर 2017

👉 देवत्व विकसित करें, कालनेमि न बनें (भाग 6)

🔴 यह तो नमूने के लिए बता रहा हूँ। उसकी ऐसी भविष्यवाणियाँ कवितामय पुस्तक में लिपिबद्ध हैं, जिसे फ्रान्स के राष्ट्रपति मितरॉ सिरहाने रखकर सोया करते हैं। उस कवितामय पुस्तक पर हजारों आदमियों ने टिप्पणियाँ की हैं। उसी में से एक आप अखण्ड-ज्योति अगले अंक में पढ़ेंगे, जो उसने हिन्दुस्तान के बारे में की है। उसकी भविष्यवाणी है कि हिन्दुस्तान का अध्यात्म और पाश्चात्य का तत्व-विज्ञान यह दोनों आपस में मिल जाएँगे, पाश्चात्य भौतिक विज्ञान और अध्यात्म मिल जाएँगे, रूस और हिन्दुस्तान मिल जाएँगे, चीन से अमेरिका की लड़ाई हो जाएगी, आदि-आदि बहुत-सी भविष्यवाणियाँ हैं।
      
🔵 उन बहुत-सी भविष्यवाणियों में से आपके काम की एक ही है कि हिन्दुस्तान सारी दुनिया का नेतृत्व करेगा, जैसा कि आजकल अमेरिका कर रहा है। चाहे वह बम बनाए, चैलेंजर बनाए, स्टारवार की योजना बनाए, किन्तु बाद का नेतृत्व भारत करेगा। हिन्दुस्तान को सारी दुनिया का नेतृत्व करने के लिए बड़े कर्मठ व्यक्ति चाहिए, बड़े शक्तिशाली और क्षमता सम्पन्न व्यक्ति चाहिए, बड़े लड़ाकू योद्धा चाहिए, बड़े इंजीनियर चाहिए, बड़े-बड़े समर्थ आदमी चाहिए और वही मैं तलाश कर रहा हूँ। बेटे, तुममें योग्यता नहीं है तो तुम्हें योग्यता हम देंगे। तुम्हारी खेती-बाड़ी को ही नहीं सँभालूँगा, वरन् योग्यता भी दूँगा, ताकि तुम संसार का नेतृत्व कर सको।

🔴 नालन्दा विश्वविद्यालय के तरीके से हमने यहाँ नेता बनाने का एक विद्यालय बनाया है। नालन्दा विश्वविद्यालय में चाणक्य जहाँ पढ़ाता था, उसमें दस हजार विद्यार्थी पढ़ते थे एक साथ। हमारी भी इच्छा है कि हम दस हजार विद्यार्थी एक साथ पढ़ाएँ, पर यहाँ इतने विद्यार्थियों के लिए जगह नहीं है। अभी यहाँ कल तक साढ़े अट्ठाइस सौ आदमी थे, आज चार हजार से अधिक व्यक्ति नहीं आ सकते, जबकि हमारा मन है कि जिस तरीके से चाणक्य दस हजार आदमियों को पढ़ाता था और पढ़ाकर के हिन्दुस्तान से लेकर सारे विश्व में अपने आदमी भेजता था। चन्द्रगुप्त को उसने चक्रवर्ती राजा बनाया था। हमारी भी इच्छा है कि ऐसे-ऐसे नेता बनाएँ, पर बना नहीं सकते, क्योंकि जगह हमारे पास कम है। ऐसे में पढ़ा नहीं सकते, तो फिर क्या योजना है?
 
🌹 क्रमशः जारी
🌹 पं श्रीराम शर्मा आचार्य (अमृतवाणी)

👉 आस्तिक बनो (भाग 2)

🔴 बुरा काम करने वाला पहले यह भली प्रकार देखता है कि मुझे देखने वाला या पकड़ने वाला तो कोई यहाँ नहीं है। जब वह भली-भाँति विश्वास कर लेता है कि उसका पाप कर्म किसी भी दृष्टि या पकड़ में नहीं आ रहा है तभी वह अपने काम में हाथ डालता है। इसी प्रकार जो व्यक्ति अपने का परमात्मा की दृष्टि या पकड़ से बाहर मानते हैं वे ही दुष्कर्म करने को उद्यत हो सकते हैं। पाप कर्म करने का स्पष्ट अर्थ यह है कि यह व्यक्ति ईश्वर का मानने का दंभ भले ही करता हो पर वास्तव में वह परमात्मा के आस्तित्व से इनकार करता है। उसके मन को इस बात पर भरोसा नहीं है कि परमात्मा यहाँ मौजूद है।

🔵 यदि विश्वास होता तो इतने बड़े हाकिम के सामने किस प्रकार उसके कानूनों का तोड़ने का साहस करता है। जो व्यक्ति एक पुलिस के चपरासी को देखकर भय से थर-थर कापा करते हैं वे लोग इतने दुस्साहसी नहीं हो सकते कि परमात्मा जैसे सृष्टि के सर्वोच्च अफसर की आँखों के आगे, न करने योग्य काम करें, उसके कानून को तोड़े, उसको क्रुद्ध बनावें, उसका अपमान करें। ऐसा दुस्साहस तो सिर्फ वही कर सकता है जो यह समझता हो कि ‘परमात्मा’ कहने, सुनने भर की चीज है। वह पोथी पत्रों में मन्दिर मठों में नदी, तालाबों में या कहीं स्वर्ग नरक में भले ही रहना चाहेगा, पर हर जगह वह नहीं है। मैं उसकी दृष्टि और अकड़ से बाहर हूँ।

🔴 जो लोग परमात्मा की सर्व व्यापकता पर विश्वास नहीं करते, वे ही नास्तिक है। जो प्रकट या अप्रकट रूप से दुष्कर्म करने का साहस कर सकते हैं वे ही नास्तिक हैं। इन नास्तिकों में कुछ तो भजन पूजा बिल्कुल नहीं करते, कुछ करते हैं। जो ही करते ही वे सोचते हैं व्यर्थ का झंझट मोल लेकर उसमें समय गंवाने से क्या फायदा? जो पूजन भजन करते हैं वे भीतर से तो न करने वालों के समान ही होते हैं पर व्यापार बुद्धि से रोजगार के रूप में ईश्वर की खाल ओढ़ लेते हैं। कितने ही लोग ईश्वर के नाम के बहाने ही अपने जीविका चलाते हैं हमारे देश में करीब 56 लाख आदमी ऐसे हैं जिनकी कमाई पेशा, रोजगार ईश्वर के नाम पर है।

🔵 यदि वे यह प्रकट करें कि हम ईश्वर को नहीं मानते तो उसी दिन उनकी ऐश आराम देने वाली बिना परिश्रम की कमाई हाथ से चली जायेगी। इसलिए इन्हें ईश्वर को उसी प्रकार ओढ़े रहना पड़ता है। जैसे जाड़े से बचने के लिए गर्मी देने वाले कम्बल को ओढ़े रहते हैं जैसे ही वह जरूरत पूरी हुई वैसे ही कम्बल को एक कोने में पटक देते हैं। यह तिजारती लोग जनता के समझ अपनी ईश्वर भक्ति का बड़ा भारी घटाटोप बाँधते हैं क्योंकि जितना बड़ा घटाटोप बाँध सकेंगे उतनी ही अधिक कमाई होगी। तिजारती उद्देश्य पूरा होते ही वे अपने असली रूप में आ जाते हैं। पापों से खुलकर खेलते हुए एकान्त में उन्हें जरा भी झिझक नहीं होती।

🌹 क्रमशः जारी
🌹 पं श्रीराम शर्मा आचार्य
🌹 अखण्ड ज्योति- दिसम्बर 1945 पृष्ठ 3

http://literature.awgp.org/akhandjyoti/1945/December/v1.3

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