शुक्रवार, 14 जुलाई 2023

👉 आत्मचिंतन के क्षण Aatmchintan Ke Kshan 14 July 2023

युग निर्माण परिवार के तथाकथित अछूतों को यह कहा गया है कि अपने वर्ग में जितनी अच्छी तरह, जितनी अधिक मात्रा में काम कर सकते हैं, उतना दूसरे लोग नहीं कर सकते। उनमें से जिनमें जीवन हो, प्रकाश हो, उत्पीड़न के प्रति दर्द, विद्रोह तो वे भी निरी सुख-सुविधाओं की योजनान बनाएँ, वरन् पिछड़े वर्ग में प्रगतिशीलता उत्पन्न करने के लिए अपनी समस्त योग्यताओं को, साधनों को समर्पित कर दें।

पुरुष का विशेष उत्तरदायित्व है कि वे नारी उत्कर्ष में अतिरिक्त योगदान देकर पिछले दिनों किये गये अन्याय का प्रायश्चित करें, इसी प्रकार सवर्ण लोगों का कर्त्तव्य है कि तथाकथित अछूतों को पिछले दिनों लांछित किया गया है उतनी ही अधिक सुविधाएँ उन्हें ऊँचा उठाने तथा आगे बढ़ाने के लिए प्रदान करें। नीचे वाले ऊपर उठने के लिए अपनी सारी शक्ति लगा दें और ऊपर वाले पूरा सहारा देकर उन्हें ऊपर उठायें तथी वर्तमान विषमता का अंत हो सकेगा।

नारी समाज के उत्कर्ष में नारी को ही आगे आना पड़ेगा। भारतीय समाज की दशा विचित्र है। उसमें नर और नारी का सम्मिश्रण विचित्र शंका-कुशंकाओं, अविश्वासों और कुकल्पनाओं से घिरा रहता है। इसलिए नारी वर्ग के उत्कर्ष की अगणित योजनाओं को कार्यान्वित कर सकना नर को उतना सुगम नहीं, जितना नारी के लिए।

✍🏻 पं श्रीराम शर्मा आचार्य

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👉 दाम्पत्य-जीवन को सफल बनाने वाले कुछ स्वर्ण-सूत्र (भाग 4)

अपने से अच्छे कपड़े पत्नी को पहनाने वाले पति अपनी पत्नी पर बिना मंत्र के वशीकरण कर देते हैं और प्यार में बदली उसकी कृतज्ञता का आनन्द प्राप्त करते हैं। यदि अपने से अच्छे न भी पहनाये जायें तो कम से कम उस स्तर और उस मात्रा का तो प्रबन्ध किया ही जाना चाहिये, जो स्वयं अपने लिये करते हैं। इसी प्रकार साबुन, तेल आदि का भी प्रबन्ध पत्नी के लिये अपने से अच्छा ही करना चाहिये।

इन कतिपय पदार्थिक कर्तव्यों के साथ-साथ पति को कुछ मनोवैज्ञानिक कर्तव्यों का भी निर्वाह करना चाहिये। इनमें से सबसे पहला कर्तव्य है प्रशंसा। उसके भोजन, और श्रृंगार की प्रशंसा कीजिये और प्रशंसा की आँखों से ही उसे देखिये। इससे उसको बड़ी पुलक और सुख की सिरहन प्राप्त होती है। उसे यह विश्वास रहता है कि पति को मैं और मेरे काम पसन्द हैं। यह पसन्दगी की भावना हर नारी की एक साथ होती है। इस पर वह अपना आराम और सुख-सुविधा तक निछावर करने को तैयार रहती है।

पत्नी के सेवा करते समय कभी भी उदास, उदासीन व तटस्थ मत रहिये। उससे हँसते-मुस्काते और एकाग्र होकर बात करने का प्रयत्न करिये। इससे उसको यह बड़ा संतोष रहता है कि पति उसको देखकर खिल उठता है, मेरी साधारण-सी बात में भी उसे रस आता है और शीघ्र ही मुझमें खो जाता है। वह इसे नारीत्व की विजय समझती है और नारी होने का अभिमान करने लगती है, जिसको प्रेम रूप में वह आभार स्वरूप समर्पित कर देती है।

बाजार से जब भी आइये कुछ न कुछ उसकी पसन्द की वस्तु अवश्य लेकर आइये। स्त्रियों का स्वभाव भी कुछ बच्चों जैसा होता है, अपनी पसन्द की छोटी-सी वस्तु भी पाकर बहुत अधिक प्रसन्न हो जाती हैं। यह और इस प्रकार के अन्य बाह्य और मनोवैज्ञानिक कर्तव्यों का पालन करने वाले पतियों की पत्नियाँ सदा प्रसन्न रहती हैं और किसी भी स्थिति में गृह-कलह उपस्थित नहीं कर पाती हैं।

.... क्रमशः जारी
✍🏻 पं श्रीराम शर्मा आचार्य
📖 अखण्ड ज्योति जुलाई 1968 पृष्ठ 27

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