दोष दृष्टि रखने से हमें हर वस्तु दोषयुक्त दीख पड़ती है। उससे डर लगता है, घृणा होती है। जिससे घृणा होती है, उसके प्रति मन सदा शंकाशील रहता है, साथ ही अनुदारता के भाव भी पैदा होते हैं। ऐसी स्थिति में उस व्यक्ति या वस्तु से न तो प्रेम रह सकता है और न उसके गुणों के प्रति आकर्षण उत्पन्न होना ही सम्भव रहता है।
दोष दृष्टि रखने वाले व्यक्ति को धीरे-धीरे हर वस्तु बुरी, हानिकारक और त्रासदायक दीखने लगती है। उसकी दुनियाँ में सभी विराने, सभी शत्रु और सभी दुष्ट होते है। ऐसे व्यक्ति को कहीं शान्ति नहीं मिलती।
दूसरों की बुराइयों को ढूँढ़ने में, चर्चा करने में जिन्हें प्रसन्नता होती है वे वही लोग होते हैं जिन्हें अपने दोषों का पता नहीं है। अपनी ओर दृष्टिपात किया जाय तो हम स्वयं उनसे अधिक बुरे सिद्ध होंगे, जिनकी बुराइयों की चर्चा करते हुये हमें प्रसन्नता होती है। दूसरों के दोषों को जिस पैनी दृष्टि से देखा जाता है। यदि अपने दोषों का उसी बारीकी से पता लगाया जाय तो लज्जा से अपना सिर झुके बिना न रहेगा और किसी दूसरे का छिद्रान्वेषण करने की हिम्मत न पड़ेगी
✍🏻 पं श्रीराम शर्मा आचार्य