शनिवार, 7 मार्च 2020

👉 तू ही है

मैं की भ्रान्ति से समस्त भ्रान्तियाँ पनपती हैं। जिन्हें अपने मैं पर भारी अभिमान है, उन्हें भी ठीक से नहीं पता कि आखिर यह मैं है क्या? रोगी, बीमार, अशक्त होने वाला यह शरीर मैं है? जो बचपन, यौवन और बुढ़ापे के जाने कितने रंग बदलता है। अथवा फिर वह मन है, जो विचारों और भावनाओं के ऊहापोह में पल-पल डूबता-उतराता है। अनुभवी कहते हैं कि मैं तो वह गाँठ है जो आत्मा ने प्रकृति से भ्रमवश बाँध ली है। भ्रम की इस गाँठ के कारण ही जीवन के सारे अनुभवों में भ्रम और भटकन घुल गयी है। यह गाँठ दुखती है, कसकती है, पर खुलती नहीं है। यह खुले तो तब, जब चेत हो।
    
जीवन के अनन्त-असीम प्रवाह पर इस मैं की गाँठ का बन्धन सम्पूर्ण जीवन प्रवाह में अनेकों विसंगतियाँ पैदा कर देता है। इससे व्यक्ति सत्य और स्वयं से टूट जाता है। मैं का बुद्बुदा सत्ता-प्रवाह से अपने को अलग समझ बैठता है। जबकि बुद्बुदे की कोई सत्ता नहीं है, उसका कोई केन्द्र नहीं है। वह सागर ही है, सागर ही उसका जीवन है। सागर से पृथक् सत्ता का बोध ही अज्ञान है। बुद्बुदे के मूल में भी तो सागर की अनन्त जलराशि ही है।
    
सूफी सन्तों में एक कथा कही जाती है- प्रेयसी के द्वार पर किसी ने दस्तक दी। भीतर से आवाज आयी, कौन है? जो द्वार के बाहर खड़ा था, उसने कहा, मैं हूँ। उत्तर में उसे सुनायी दिया, यह घर ‘मैं’ और ‘तू’ दो को नहीं सँभाल सकता है। और बंद द्वार बंद ही रहा। प्रेमी वन में चला गया। उसने तप किया, उपासनाएँ की, भक्ति में स्वयं को समर्पित किया। बहुत सालों बाद वह लौटा और पुनः उसने द्वार खटखटाए। दुबारा फिर वही सवाल पूछा गया- बाहर कौन है? लेकिन इस बार द्वार खुल गए, क्योंकि उसका उत्तर दूसरा था- ‘तू ही है’। यह उत्तर तू ही है, समस्त आध्यात्मिक जीवन का सार है। क्योंकि इसमें अपने क्षुद्र मैं की सर्वव्यापी परमात्मा की सत्ता में विलय की दिव्य अनुभूति है।

✍🏻 डॉ. प्रणव पण्ड्या
📖 जीवन पथ के प्रदीप से पृष्ठ २०१

👉 आप के निमार्ण-कार्य (अन्तिम भाग)

देश के प्रति भी आपका कुछ कर्तव्य है। राष्ट्र को आपकी सेवाओं की आवश्यकता है। आज हमारे देश में उत्साह है, जनता में हलचल है, प्रत्येक हृदय में प्रेरणा है कि राष्ट्र निर्माण किया जाये। किन्तु क्या किया जाय? हम कहते हैं आपको अपनी शक्ति के अनुसार नागरिक शिक्षा, जनता को उसके अधिकार और कर्त्तव्यों की शिक्षा देना, प्रवासी भारतीय, रंग-भेद को दूर करना, नाना वादों की शिक्षा, राजनीति का ज्ञान प्रदान करना है। राष्ट्र-निर्माण का क्षेत्र अत्यन्त विस्तृत है और समस्याएं भी गम्भीर हैं। सम्भव है आपके लिए यही क्षेत्र उपयुक्त हो।

राष्ट्र भाषा के निर्माण की समस्या यथेष्ट महत्व की है। मद्रास, बंगाल, पंजाब, महाराष्ट्र इत्यादि भागों में हिन्दी प्रचार का बीड़ा उठाकर आप अमर बन सकते हैं अपने समय का सदुपयोग हिन्दी के लेख, पुस्तकें लिखकर, हिन्दी में भाषण देकर, जन जागृति द्वारा, अशिक्षित जनता में ज्ञान का प्रकाश प्रदान कर अन्य भारत की 90 प्रतिशत जनता को हिन्दी बोलना लिखना सिखा सकते हैं।

हमारे देश के 75 प्रतिशत व्यक्तियों को भरपेट भोजन तक प्राप्त नहीं होता। उनके लिए उद्योग, धन्धे, घरेलू कार्य, स्त्रियों के लिए सिलाई, बुनाई, कताई, नर्सिंग अध्यापन इत्यादि की शिक्षा दे सकते हैं। जिस देश में जनसंख्या में निरन्तर वृद्धि हो रही हो, तथा अस्पृश्यता हो, धर्म में मायाचार लूट-पाट चल रही हो, पंडित महन्त इत्यादि जनता को ठग रहे हों, नारियों का निरादर हो, उस देश में आपके लिए निर्माण कार्य की न्यूनता नहीं है।

अवकाश निकालिये। विद्यार्थियों को यथेष्ट समय निर्माण-कार्य के लिए प्राप्त हो सकता है, जैसे रविवार दो-दो चार-चार दिन की छुट्टियाँ, दशहरे और बड़े दिन की छुट्टियाँ, ग्रीष्मावकाश। इसी प्रकार अन्य व्यक्ति भी अपना समय निकाल कर सार्वजनिक सेवा में लगा सकते हैं। राष्ट्र निर्माण में प्रत्येक व्यक्ति को सहयोग देकर जीवन सफल करना चाहिये।

.... समाप्त
📖 अखण्ड ज्योति दिसम्बर 1950 पृष्ठ 14

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