🔴 जिस काम को मनुष्य अपने आन्तरिक मन से नहीं करना चाहता, पर दिखावे के रूप में उसे बाध्य होता है तो उसे अनेक प्रकार की रुकावटें उत्पन्न होती हैं। ये रुकावटें उसे दर्शाती हैं कि तुम्हारा आन्तरिक मन उक्त काम के प्रतिकूल है। शान्त होकर यदि मनुष्य अपनी किसी प्रकार की भूल अथवा कार्य की विफलता पर विचार करें तो वह उसका कारण अपने आप ही पावेगा। जो काम अनुद्विग्न मन होकर किया जाता है, उसमें आत्म-विश्वास रहता है और उसमें सफलता अवश्य मिलती है। शान्त मन द्वारा विचार करने से स्मृति तीव्र हो जाती है। और इन्द्रियाँ स्वस्थ हो जाती हैं।
🔵 शान्त विचारों का चेतन मन नहीं होता। शान्त विचार ही आत्मनिर्देश शक्ति हैं। इन विचारों को प्राप्त करने के लिए वैयक्तिक इच्छाओं का नियन्त्रण करना पड़ता है। जिस व्यक्ति की इच्छायें जितनी ही नियंत्रित होती हैं, जिस मनुष्य में जितनी वैराग्य की अधिकता होती है उसके शान्त विचारों की शक्ति उतनी ही अधिक प्रबल होती है। जो मनुष्य अपने भावों के वेगों को रोक लेता है वह उन वेगों की शक्ति को मानसिक शक्ति के रूप में परिणत कर लेता है।
🔴 इच्छाओं की वृद्धि से इच्छा शक्ति का बल कम होता है और उसके विनाश से उसकी शक्ति बढ़ती है। इच्छाओं की वृद्धि शान्त विचारों का अन्त कर देती है जिस मनुष्य की इच्छायें जितनी ही अधिक होती हैं उसे भय, चिन्ता, सन्देह और मोह भी उतने ही अधिक होते हैं। भय, चिन्ता, सन्देह और मोह से मनुष्य की आध्यात्मिक शक्ति का ह्रास होता है। अतएव ऐसे व्यक्ति से संकल्प फलित नहीं होते। वह जो काम हाथ में लेता है उसे पूरे मन से नहीं करता। अधूरा काम अथवा आधे मन से किया गया काम कभी सफलता नहीं लाता। अधिक मन से किये गये कार्य में मनुष्य का चेतन मन से कार्य करता है पर अचेतन मन उसकी सहायता के लिये अग्रसर नहीं होता। ऐसी अवस्था में मनुष्य को शीघ्रता से थकावट आ जाती है। और वह अपने कार्य को अधूरा छोड़ने के लिये बाध्य हो जाता है।
🌹 ~पं श्रीराम शर्मा आचार्य
🔵 शान्त विचारों का चेतन मन नहीं होता। शान्त विचार ही आत्मनिर्देश शक्ति हैं। इन विचारों को प्राप्त करने के लिए वैयक्तिक इच्छाओं का नियन्त्रण करना पड़ता है। जिस व्यक्ति की इच्छायें जितनी ही नियंत्रित होती हैं, जिस मनुष्य में जितनी वैराग्य की अधिकता होती है उसके शान्त विचारों की शक्ति उतनी ही अधिक प्रबल होती है। जो मनुष्य अपने भावों के वेगों को रोक लेता है वह उन वेगों की शक्ति को मानसिक शक्ति के रूप में परिणत कर लेता है।
🔴 इच्छाओं की वृद्धि से इच्छा शक्ति का बल कम होता है और उसके विनाश से उसकी शक्ति बढ़ती है। इच्छाओं की वृद्धि शान्त विचारों का अन्त कर देती है जिस मनुष्य की इच्छायें जितनी ही अधिक होती हैं उसे भय, चिन्ता, सन्देह और मोह भी उतने ही अधिक होते हैं। भय, चिन्ता, सन्देह और मोह से मनुष्य की आध्यात्मिक शक्ति का ह्रास होता है। अतएव ऐसे व्यक्ति से संकल्प फलित नहीं होते। वह जो काम हाथ में लेता है उसे पूरे मन से नहीं करता। अधूरा काम अथवा आधे मन से किया गया काम कभी सफलता नहीं लाता। अधिक मन से किये गये कार्य में मनुष्य का चेतन मन से कार्य करता है पर अचेतन मन उसकी सहायता के लिये अग्रसर नहीं होता। ऐसी अवस्था में मनुष्य को शीघ्रता से थकावट आ जाती है। और वह अपने कार्य को अधूरा छोड़ने के लिये बाध्य हो जाता है।
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