असुरता इन दिनों अपने चरम उत्कर्ष पर हैं। दीपक की लौ जब बुझने को होती है तो अधिक तीव्र प्रकाश फेंकती और बुझ जाती है। असुरता भी जब मिटने को होती है तो जाते-जाते कुछ ना कुछ करके जाने की ठान लेती है। इन दिनों हो भी यही रहा है। असुर का अपने नए तेवर और नए हथियार के साथ आक्रमण करने पर उतारू है। यह भ्रम, अश्रद्धा, लांछन, लोकापवाद फैलाने तथा कोई आक्रमण करने या दुर्घटना उत्पन्न करने जैसे किसी भी रूप में हो सकता है। असुरता इस प्रकार के अपने षडयंत्रों को सफल बनाने में पूरी तत्परता के साथ लगी हुई है। उसका पूतना और ताड़का जैसा विकराल रूप देखने के लिए हम में से हरेक को तैयार रहना चाहिए।
समुद्र मंथन के समय सबसे पहले विष निकला था बाद में वारुणी, फिर धीरे-धीरे क्रमशः उसमें से रत्न निकलते गए। अमृत सबसे पीछे निकला था। गायत्री महायज्ञ की धर्म अनुष्ठान में भी पहले विष ही निकल रहा है ईष्यालु लोग विरोध और विलगता करते हैं, आगे और भी अधिक करेंगे। यह इस बात की परीक्षा के लिए है कि आयोजन के कार्यकर्ताओं में किसकी निष्ठा सच्ची, किसकी झूठी है। जो दृढ़ निश्चय ही है वहीं अंत तक ठहरे तो उन्हें लाभ मिलेगा। उथले स्वभाव और बालबुद्धि वाले सहयोगी यदि हट जाएँ तो कोई हर्ज भी नहीं है। इस छाँट का काम निंदको द्वारा बड़ी सरलता से पूरा हो जाता है। दुर्बल मनो भूमि वाले लोग तनिक थी संदेहास्पद बात सुनकर भाग खड़े होते हैं भीड़ को हटाने की दृष्टि से यह पलायन उचित भी है।...........
गायत्री आंदोलन के प्रभाव से अब साधकों की भीड़ भी बहुत बड़ी हो गई है इनमें उच्च श्रेणी की सच्चे साधकों की परीक्षा के लिए यह उचित भी है कि झूठे-सच्चे लोकापवाद फैलें। विवेकवान लोग इन निंदाओं का वास्तविक कारण ढूँढेंगे तो सच्चाई मालूम पड़ जाएगी और उनकी श्रद्धा पहले से भी दूनी- चौगुनी बढ़ जाएगी, और जो लोग दुर्बल आत्मा के है वे तलाश करने की झगडेमें ना पडकर सुनने मात्र से ही भाग खड़े होंगे। इस प्रकार दुर्बल आत्माओं की भीड़ सहज ही छूट जाएगी। असुरता के आक्रमणों से जहां यज्ञों में बड़ी और अड़चने पड़ती है वहाँ (1) संयोजक में दृढ़ता पुरुषार्थ का मुकाबला करने की शक्ति की अभिवृद्धि, (2) सच्चे धर्मप्रेमियों की सच्चाई जान लेने पर श्रद्धा का और अधिक विकास और (3) दुर्बल आत्माओं की अनावश्यक भीड़ की छँटनी यह यह तीन लाभ भी हैं।
📖 यज्ञ का ज्ञान विज्ञान, pg-5.8.
✍🏻 श्रीराम शर्मा आचार्य