🔵 मनुष्य-जीवन नगण्य सी- ऐसी तुच्छ वस्तु नहीं है, जिसे हलकी दृष्टि से देखा जाय और हलके कार्यों में खर्च कर दिया जाय। यह निरन्तर प्रगति और निरन्तर तप का परिणाम है। उसके मूल्य और महत्व को समझा जाना चाहिए, यह सोचा जाना चाहिए कि इस सुअवसर का लाभ किस प्रकार उठाया जाय। ऐसे अवसर जो बार-बार हाथ नहीं आते, उपेक्षा और उपहास में गँवाने नहीं चाहिए। वरन् सतर्कतापूर्वक यह चेष्टा करनी चाहिए कि उसका समुचित सदुपयोग हो और परिपूर्ण लाभ मिले।
🔴 मनुष्य-जीवन इसलिए है कि उसे पाकर जीवात्मा अपनी महान् उत्कृष्टता को विकसित करने पर निर्भर अलौकिक शान्ति और सन्तोष का आनन्द लाभ करे। आन्तरिक उत्कृष्टता सत्कार्यों के निरन्तर अभ्यास पर निर्भर है। पढ़ते-सुनते या सोचते-विचारते रहने में आत्म-कल्याण की हलकी जानकारी तो प्राप्त होती है, पर उससे जीवन-क्रम में किसी महानता का अवतरण होने की आशा नहीं की जा सकती।
🔵 श्रेष्ठ कार्यों की श्रृंखला का दिनचर्या में अविच्छिन्न सम्बन्ध होना ही केवल मात्र वह उपाय है, जिससे मनुष्य ऊँचा उठता है और सफल जीवन का लक्ष्य प्राप्त कर सकने में समर्थ होता है। उचित है कि हम इस दृष्टि बिन्दु को विकसित करें और इस सुअवसर का परिपूर्ण लाभ उठावें जो हमें मनुष्य-जीवन के रूप में आज उपलब्ध है।
🌹 ~सन्त वास्वानी
🌹 अखण्ड ज्योति 1968 अगस्त पृष्ठ 1
🔴 मनुष्य-जीवन इसलिए है कि उसे पाकर जीवात्मा अपनी महान् उत्कृष्टता को विकसित करने पर निर्भर अलौकिक शान्ति और सन्तोष का आनन्द लाभ करे। आन्तरिक उत्कृष्टता सत्कार्यों के निरन्तर अभ्यास पर निर्भर है। पढ़ते-सुनते या सोचते-विचारते रहने में आत्म-कल्याण की हलकी जानकारी तो प्राप्त होती है, पर उससे जीवन-क्रम में किसी महानता का अवतरण होने की आशा नहीं की जा सकती।
🔵 श्रेष्ठ कार्यों की श्रृंखला का दिनचर्या में अविच्छिन्न सम्बन्ध होना ही केवल मात्र वह उपाय है, जिससे मनुष्य ऊँचा उठता है और सफल जीवन का लक्ष्य प्राप्त कर सकने में समर्थ होता है। उचित है कि हम इस दृष्टि बिन्दु को विकसित करें और इस सुअवसर का परिपूर्ण लाभ उठावें जो हमें मनुष्य-जीवन के रूप में आज उपलब्ध है।
🌹 ~सन्त वास्वानी
🌹 अखण्ड ज्योति 1968 अगस्त पृष्ठ 1