बुधवार, 12 सितंबर 2018

👉 एक कहानी

🔶 पत्नी बार बार मां पर इल्जाम लगाए जा रही थी और पति बार बार उसको अपनी हद में रहने की कह रहा था. लेकिन पत्नी चुप होने का नाम ही नही ले रही थी व् जोर जोर से चीख चीखकर कह रही थी कि "उसने अंगूठी टेबल पर ही रखी थी और तुम्हारे और मेरे अलावा इस कमरें मे कोई नही आया अंगूठी हो ना हो मां जी ने ही उठाई है।

🔷 बात जब पति की बर्दाश्त के बाहर हो गई तो उसने पत्नी के गाल पर एक जोरदार तमाचा दे मारा अभी तीन महीने पहले ही तो शादी हुई थी।

🔶 पत्नी से तमाचा सहन नही हुआ। वह घर छोड़कर जाने लगी और जाते जाते पति से एक सवाल पूछा कि तुमको अपनी मां पर इतना विश्वास क्यूं है..??

🔷 तब पति ने जो जवाब दिया उस जवाब को सुनकर दरवाजे के पीछे खड़ी मां ने सुना तो उसका मन भर आया पति ने पत्नी को बताया कि "जब वह छोटा था तब उसके पिताजी गुजर गए मां मोहल्ले के घरों मे झाडू पोछा लगाकर जो कमा पाती थी उससे एक वक्त का खाना आता था मां एक थाली में मुझे परोसा देती थी और खाली डिब्बे को ढककर रख देती थी और कहती थी मेरी रोटियां इस डिब्बे में है बेटा तू खा ले मैं भी हमेशा आधी रोटी खाकर कह देता था कि मां मेरा पेट भर गया है मुझे और नही खाना है।

🔶 मां ने मुझे मेरी झूठी आधी रोटी खाकर मुझे पाला पोसा और बड़ा किया है आज मैं दो रोटी कमाने लायक हो गया हूं लेकिन यह कैसे भूल सकता हूं कि मां ने उम्र के उस पड़ाव पर अपनी इच्छाओं को मारा है, वह मां आज उम्र के इस पड़ाव पर किसी अंगूठी की भूखी होगी.... यह मैं सोच भी नही सकता।

🔷 तुम तो तीन महीने से मेरे साथ हो मैंने तो मां की तपस्या को पिछले पच्चीस वर्षों से देखा है...

🔶 यह सुनकर मां की आंखों से आँसू छलक उठे वह समझ नही पा रही थी कि बेटा उसकी आधी रोटी का कर्ज चुका रहा है या वह बेटे की आधी रोटी का कर्ज...

👉 प्रेरणादायक प्रसंग 12 September 2018


👉 आज का सद्चिंतन 12 September 2018


👉 परिवर्तन के महान् क्षण (भाग 10)

👉 असमंजस की स्थिति और समाधान  
 
🔶 सुविधाएँ सुहावनी लग सकती हैं। उनकी समय-समय पर आवश्यकता भी हो सकती है। पर यह तथ्य भी ध्यान में रखने, गाँठ में बाँध लेने योग्य है कि पारस्परिक श्रद्धा, सद्भावना, सहकारिता, नीति-निष्ठा अपनाए बिना पारस्परिक सद्भाव एवं स्नेह संवेदना नहीं उभर सकती और इसके बिना उस आचरण को पनपने की कोई सम्भावना नहीं बनती, जिसमें मनुष्य अपना ही नहीं दूसरों का भी हित सोचता है। न्याय को प्रश्रय देता है और अनीति के आधार पर उद्भूत सुविधाओं को स्वीकारने से इंकार कर देता है। सर्वजनीन सुख, शान्ति के लिए इससे कम में काम चलता नहीं और इससे अधिक की कुछ और आवश्यकता नहीं।
  
🔷 यह संसार, विश्व ब्रह्माण्ड जड़ और चेतन दोनों के ही सम्मिश्रण से बना है। यहाँ प्रकृति और प्राण का ही सामंजस्य है। चेतन को परिष्कृत करने पर जो उपलब्धियाँ हस्तगत होती हैं, उन्हें ऋषि युग में, सतयुग में लम्बी अवधि तक जाना परखा जा चुका है। इस देश की गौरव-गरिमा का इतिहास उसी वर्चस्व से ऐतिहासिक बना और प्रख्यात रहा है। अब बीसवीं शताब्दी में प्रधानतया भौतिकता की सत्ता को प्रमुखता मिली है। इस अवधि में दो विश्व युद्ध और १०० से अधिक क्षेत्रीय युद्ध हो चुके हैं। भौतिकवादी ललक की यह संरचना है, जिसके कारण अपार धन-जन की हानि हुई है। चिन्तन, चरित्र और व्यवहार सभी कुछ लड़खड़ा गया है। प्रगति युग के अगले चरण कितने भयावह हो सकते हैं, इसकी कल्पनामात्र से दिल दहल जाता है।
  
🔶 यह विचारने के लिए नए सिरे से बाधित होना पड़ रहा है कि भौतिक मान्यताओं के आधार पर संसार को क्या इसी गति से चलने दिया जाना है या अतीत में बरते गए उन सिद्धान्तों को फिर से अपनाया जाना है, जिनके आधार पर मनुष्यों में देवत्व और धरती पर स्वर्ग जैसा वातावरण बना रहा।
      
.... क्रमशः जारी
✍🏻 पं श्रीराम शर्मा आचार्य
📖 परिवर्तन के महान् क्षण पृष्ठ 12

👉 How to Stay Happy? (Part 3)

🔶 When we identify our core strengths and put in 100% effort, success is guaranteed in any field of work. However, it should be remembered that the path to success is not a bed of roses. There will be many challenges that will come our way. Whoever has reached the pinnacle of success has gone through excruciating circumstances. That is why, whatever task we take up, must be done with complete dedication. Majority of us put in half-hearted efforts to do something and fall into depths of disappointment when we fail. In order to ensure that happiness stays for long, we must express our sincere gratitude to all those who have helped us in one way or the other.

🔷 It is said that we can receive only two things from any incident or a person in our life - happiness or learning. It is good to learn a lesson because it gives us a chance to start afresh. It is extremely important that we don’t harbor any anger. It is best to resolve it with the concerned person. We should express clearly and always be ready to receive criticism and feedback. If we have any issues against someone, approach him/her in a proper manner and resolve them amicably. Try not to let negativity and complaints breed for long.

🔶 According to Robert Waldinger, director of the Harvard Study of Adult Development, ‘‘The clearest message that we get from this 75-year study is this: Good relationships keep us happier and healthier.... It’s not just the number of friends you have, and it’s not whether or not you’re in a committed relationship. It’s the quality of your close relationships that matters.’’
Yugrishi Pandit Shriram Sharma Acharya says – ‘Expanding the horizons of love and affection is the only way for never-ending happiness. You cannot be happy by hoarding; you can multiply your happiness only by giving and sharing.’

To be continued...

👉 मन को उद्विग्न न कीजिए (भाग 3)

🔶 संगति और वातावरण मानसिक संतुलन को सुधारते बिगाड़ते रहते हैं। जिसकी संगति सदाचारी विद्वान, त्यागी, निस्पृह, उदार व्यक्तियों की हैं, जो अच्छे विचारों वाले व्यक्तियों के संपर्क में रहते हैं, वे व्यक्ति शान्त रहते हैं। प्राचीन ऋषि मुनि संसार के कोलाहल से दूर प्रकृति के उन्मुक्त प्रशान्त वातावरण में कल कल झरते हुए झरनों के किनारे विचार तथा ब्रह्म चिन्तन किया करते हैं। उस स्थिति में उनका सन्तुलन स्थिर रहता था। यदि हम सन्तुलित मनः अवस्था के इच्छुक हैं, तो हमें भोजन, संगति और वातावरण तीनों ओर से आत्म−सुधार करना चाहिये।

🔷 सहिष्णुता की वृद्धि करें। सहिष्णुता का तात्पर्य न केवल कष्ट और विरोध सहन शक्ति है, प्रत्युत आने वाले संकट में शान्त और सन्तुलित रहने का गुण भी है। सहिष्णु व्यक्ति गहन गम्भीर समुद्र की तरह है जिसके अनन्त गहराई पर मामूली तूफानों का कोई प्रभाव नहीं पड़ता। वह अनायास ही आए हुए कष्टों से घबराता या पथ−च्युत नहीं होता। शान्ति से कठिनाइयों को अपने ऊपर झेलता है। खतरे में ठण्डे दिमाग से काम करता है। यह शान्त और नित्य साथ करने वाला गुप्त साहस है।

🔶 सहिष्णुता निष्क्रिय साहस और वीरत्व है। ऐसा व्यक्ति अन्तःकरण से एक गुप्त सामर्थ्य पाता रहता है, जिसके कारण वह शत्रुओं के सम्मुख अजेय, स्थिर, साहसपूर्ण हृदय से खड़ा रहता है सहिष्णुता कुछ तो शारीरिक होती है, किन्तु मुख्यतः यह मानसिक दृढ़ता पर निर्भर है। सहिष्णु व्यक्ति मान−अपमान, हानि−लाभ, हर्ष−विषाद में विचलित नहीं होता। वह प्रलोभन, क्षुधा, सर्दी, गर्मी, वासना, उत्तेजना पर काबू पा लेता है।

.... क्रमशः जारी
📖 अखण्ड ज्योति, फरवरी 1955 पृष्ठ 13

http://literature.awgp.org/akhandjyoti/1955/February/v1.13

👉 परिवर्तन चिह्न है प्रगति का

🔶 स्थिरता जड़ता का चिन्ह है और परिवर्तन प्रगति का। स्थिरता में नीरसता एवं निष्क्रियता है। किन्तु परिवर्तन नये चिन्तन और नये अनुभव का पथ प्रशस्त करता रहता है। जीवन प्रगतिशील है, अस्तु इसमें परिवर्तन आवश्यक होता है और अनिवार्य भी।

🔷 प्रगतिशील परिवर्तन से डरते नहीं, उसका समर्थन करते हैं और स्वागत भी। आकाश में सभी ग्रह गोलक गतिशील हैं। इससे उनका चुम्बकत्व स्थिर रहता और उसके सहारे उनका मध्यवर्ती सहकार बना रहता है। यदि वे निक्रिय रहे होते, तो अपनी ऊर्जा गँवा बैठते ।। जो आगे नहीं बढ़ता वह स्थिर भी नहीं रह सकता। स्थिरता पर संकट आते ही, विकल्प विनाश ही रह जाता है। अस्तु जीवन को गतिशील रहना पड़ता है। जो निर्जीव है- वह भी गतिहीन नहीं है।

🔶 युग बदलते हैं। परिवर्तन क्रम में आशा और निराशा के अवसर आते हैं और चले जाते हैं। रात्रि और दिन, स्वप्न और जागृति, जीवन और मरण, शीत और ग्रीष्म, हानि और लाभ, संयोग और वियोग का अनुभव लगता तो परस्पर विरोधी हैं, अन्ततः वे एक दूसरे के साथ गुँथे रहते हैं और दुहरे रसास्वादन का आनन्द देते हैं। ऋण और धन धाराओं का मिलन ही बिजली की सामर्थ्य भरे प्रभाव को जन्म देता है।

✍🏻 पं श्रीराम शर्मा आचार्य

👉 प्रेरणादायक प्रसंग 30 Sep 2024

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