प्रगति के मार्ग में अवरोध का- विशेषतया श्रेष्ठ सम्भावनाओं में अड़चने आने का अपना इतिहास है, जिसकी पुनरावृत्ति अनादिकाल से होती रहीं हैं। जिस प्रकार आसुरी सक्रमणों को निरस्त करने के लिए दैवी सन्तुलन की सृजन शक्तियों का अवतरण होता हैं उसी प्रकार श्रेष्ठता की अभिवृद्धि को आसुरी तत्व सहन नहीं कर पाते। उसमें अपना पराभव देखते हैं और बुझते समय दीपक के अधिक तेजी के साथ जलने की तरह अपनी दुष्टता का परिचय देते हैं। मरते समय चींटी के पंख उगते हैं। पागल कुत्ता जब मरने को होता हैं तो तालाब में डूबने को दौड़ता हैं। पागल हाथी पर्वत पर आक्रमण करता हैं और उससे टकरा-टकराकर अपना सिर फोड़ लेता हैं। आसुरी तत्व भी जब अन्तिम साँस लेते हैं और एक वारगी मरणासन्न की तरह उच्छास खींचकर अपनी शक्ति का प्रदर्शन करते है। अवतारों में पुष्प-प्रक्रियाओं भी निर्बाध रीति से बिना किसी अड़चन के सम्पन्न नहीं हो तो जाती, उसमें पग-पग पर अवरोध और आक्रमण आड़े आते है।
भगवान कृष्ण पर जन्म काल से ही एक के बाद एक आक्रमण हुए। वसुदेव जब उन्हें टोकरी में रखकर गोकुल ले जा रहें थे तो सिंह गर्जन, घटाओं का वर्षण, सर्पों का आक्रमण जैसे व्यवधान उत्पन्न हुए। इसके बाद पूतना, वृत्तासुर, तृणावत, कालिया, सर्प आदि द्वारा उनके प्राण हरण की दुरभिसन्धियाँ रची जाती रही। कस, जरासंध, शिशुपाल जैसे अनेकों शत्रु बन गये। चारुढ़, मुष्टिकासुर आदि ने उन पर अकारण आक्रमण बोले। अन्ततः भीलों ने गोपियों का हरण-व्याध द्वारा प्रहार करने जैसी घटनाएं घटित हुई।
कृष्ण की चरित्र-निष्ठा और न्याय-निष्ठा उच्च स्तरीय थी तो भी उन्हें रुक्मिणी चुराने का दोष लगाया गया। चरित्र हनन की चोट भगवान राम को भी सहनी पड़ी। सीता जैसी सती को लोगों ने दुराचारिणी कहा और अग्नि परीक्षा देने के लिए विवश किया। अपवादियों के दोषारोपण फिर भी समाप्त नहीं हुए और स्थिति यहाँ तक आ पहुंची कि सीता परित्याग जैसी दुःखदायी दुर्घटना सामने आई। जयंती ने सीताजी पर अश्लील आक्रमण किया। सूर्पणखा राम के स्तर को गिरा कर असुरों के समतुल्य ही बनाना चाहती है। चाहना अस्वीकार करने पर उसने जो विपत्ति ढाई वह सर्वविदित है। सत्यता और कर्त्तव्यों के प्रति राम के व्यवहार में कहीं अनौचित्य नहीं था। फिर भी उसने वह षड़यंत्र रचा जिससे उन्हें चौदह वर्ष के एकाकी वनवास में प्राण खो बैठने जैसा ही त्रास सहना पड़ा। खरदूषण, मारीच, अहिरावण, रावण, कुम्भकरण ने आक्रमण पर आक्रमण किये इनमें से किसी से भी राम की ओर से पहल नहीं हुई थी। वे तो मात्र आत्म-रक्षा की ही लड़ाई लड़ते रहे।
.... क्रमशः जारी
✍🏻 पं श्रीराम शर्मा आचार्य
📖 अखण्ड ज्योति अगस्त 1979 पृष्ठ 53
भगवान कृष्ण पर जन्म काल से ही एक के बाद एक आक्रमण हुए। वसुदेव जब उन्हें टोकरी में रखकर गोकुल ले जा रहें थे तो सिंह गर्जन, घटाओं का वर्षण, सर्पों का आक्रमण जैसे व्यवधान उत्पन्न हुए। इसके बाद पूतना, वृत्तासुर, तृणावत, कालिया, सर्प आदि द्वारा उनके प्राण हरण की दुरभिसन्धियाँ रची जाती रही। कस, जरासंध, शिशुपाल जैसे अनेकों शत्रु बन गये। चारुढ़, मुष्टिकासुर आदि ने उन पर अकारण आक्रमण बोले। अन्ततः भीलों ने गोपियों का हरण-व्याध द्वारा प्रहार करने जैसी घटनाएं घटित हुई।
कृष्ण की चरित्र-निष्ठा और न्याय-निष्ठा उच्च स्तरीय थी तो भी उन्हें रुक्मिणी चुराने का दोष लगाया गया। चरित्र हनन की चोट भगवान राम को भी सहनी पड़ी। सीता जैसी सती को लोगों ने दुराचारिणी कहा और अग्नि परीक्षा देने के लिए विवश किया। अपवादियों के दोषारोपण फिर भी समाप्त नहीं हुए और स्थिति यहाँ तक आ पहुंची कि सीता परित्याग जैसी दुःखदायी दुर्घटना सामने आई। जयंती ने सीताजी पर अश्लील आक्रमण किया। सूर्पणखा राम के स्तर को गिरा कर असुरों के समतुल्य ही बनाना चाहती है। चाहना अस्वीकार करने पर उसने जो विपत्ति ढाई वह सर्वविदित है। सत्यता और कर्त्तव्यों के प्रति राम के व्यवहार में कहीं अनौचित्य नहीं था। फिर भी उसने वह षड़यंत्र रचा जिससे उन्हें चौदह वर्ष के एकाकी वनवास में प्राण खो बैठने जैसा ही त्रास सहना पड़ा। खरदूषण, मारीच, अहिरावण, रावण, कुम्भकरण ने आक्रमण पर आक्रमण किये इनमें से किसी से भी राम की ओर से पहल नहीं हुई थी। वे तो मात्र आत्म-रक्षा की ही लड़ाई लड़ते रहे।
.... क्रमशः जारी
✍🏻 पं श्रीराम शर्मा आचार्य
📖 अखण्ड ज्योति अगस्त 1979 पृष्ठ 53