गुरुवार, 13 अप्रैल 2017

👉 आज का सद्चिंतन 14 April 2017


👉 प्रेरणादायक प्रसंग 14 April 2017


👉 आत्मचिंतन के क्षण 14 April

🔴 प्रकृति में सदैव मौन का साम्राज्य रहता है। पुष्प वाटिका से हमें कोई पुकारता नहीं, पर हम अनायास ही उस ओर खिंचते चले जाते हैं। बड़े से बड़े वृक्षों से लदे सघन वन भी मौन रहकर ही अपनी सुषमा से सारी वसुधा को सुशोभित करते हैं। धरती अपनी धुरी पर शान्त चित्त बैठी सबका भार सम्भाले हुए है। पहाड़ों की ध्वनि किसी ने सुनी नहीं, पर उन्हें अपनी महानता का परिचय देने के लिए उद्घोष नहीं करना पड़ा। पानी जहाँ गहरा होता है, वहाँ अविचल शान्ति संव्याप्त होती है।

🔵 व्यावहारिक जीवन में भी मौन विशेष महत्वपूर्ण है। जीवन मार्ग में आयी बाधाओं को मौन रहकर ही चिन्तन कर टालना सम्भव हो पाता है। ‘‘सौ वक्ताओं को एक चुप हराने’’ वाली बात बिल्कुल सही है। व्यर्थ की बकवाद में अपनी ही शक्ति नष्ट होती है, यह स्पष्ट जानना चाहिए। आध्यात्मिक साधनाओं में मौन का अपना विशेष महत्व है क्योंकि उसके सहारे अंतर्मुखी बनने का अवसर मिलता है।

🔴 श्रद्धा का अर्थ है- आत्म-विश्वास। इस विश्वास के सहारे मनुष्य अभाव में, तंगी में, निर्धनता में कष्ट में, एकान्त में भी घबराता नहीं। जीवन के अन्धकार में श्रद्धा प्रकाश बनकर मार्गदर्शन करती है और मनुष्य को उस शाश्वत लक्ष्य से विलग नहीं होने देती। आत्मदेव के प्रति, ईश्वर के प्रति, जीवन लक्ष्य के प्रति हृदय में कितनी प्रबल जिज्ञासा है, जीवन की इस विशालता को जानना हो तो मनुष्य के अन्तःकरण की श्रद्धा को नापिये। यह वह दैवी मार्गदर्शन है जिसे प्राप्त कर साँसारिक बाधाओं का विरोध कर लेना सहज हो जाता है।

🌹 ~पं श्रीराम शर्मा आचार्य

👉 समय का सदुपयोग करें (भाग 7)

🌹 समय का सदुपयोग करिये, यह अमूल्य है

🔴 अपने कार्यों का वर्गीकरण (1) स्वास्थ्य (2) धन और (3) सामाजिक सदाचार की दृष्टि से कीजिये और एक दिन के वक्त को इसी क्रम से बांट कर अपने लिये एक व्यवस्थित दिनचर्या बांध लीजिये और उसी के अनुसार चलते रहिये। इसी में आपको सारी बातों का समावेश किया जाना चाहिये और उसी के अनुरूप जीवन-क्रम चलता रहना चाहिए। इससे आप अधिक सुखमय जीवन जी सकेंगे।

🔵 वैयक्तिक सुखोपभोग और सांसारिक कार्यों में क्षमतावान् होने के लिये आपका स्वस्थ रहना बहुत जरूरी है। स्वास्थ्य सुखी जीवन की प्रमुख शर्त है, अतः उन सभी नियमों को प्राथमिकता दीजिये जिनसे आपका शरीर और मन स्वस्थ व अवृद्ध रहता है। हमेशा सूर्योदय से कम से कम एक घण्टा पहले उठा कीजिये और शौच, स्नान आदि से निवृत्त होकर कुछ टहलने या व्यायाम आदि की व्यवस्था बना लीजिये। प्रातःकाल की मुक्त वायु शरीर को शक्ति और पोषण प्रदान करता है, दिन-भर देह स्फूर्ति और ताजगी से भरी रहती है। इस अवसर को गंवाना रोग और दुर्बलता को निमन्त्रण देने से कम नहीं। जो लोग बिस्तरों में पड़े सोते रहते हैं वे प्रातःकालीन ऊषीय-रश्मियों निर्दोष वायु से वंचित रह जाते हैं और उनका शरीर सुस्त और निस्तेज हो जाता है। वे कोई कार्य आधी रुचि से करते हैं तदनुकूल सफलता भी आधी ही मिलती है।

🔴 दिन-भर के कार्यों का अनुमानित आकार भी आप बिस्तर से उठते ही बना लीजिये और फिर उसमें परिश्रमपूर्वक लग जाया कीजिये। सफलता के लिये खीझ या परेशानी मन में न आने देकर मस्ती पूर्वक सुबह से शाम तक काम में जुटे रहिये। यह क्रियाशीलता आपको रोगों और दुश्चिन्ताओं से दूर रखेगी। यह याद रखिये कि नियमित वक्त पर किया हुआ काम पूर्ण रूप से भली-भांति सम्पन्न होता है और उसके पूरा हो जाने से आन्तरिक उल्लास और प्रसन्नता की वृद्धि होती है। इससे शारीरिक स्वास्थ्य के साथ-साथ मनोबल तथा आत्मबल भी बढ़ता रहता है। इसी तरह सायंकाल को भी अपने उन सभी कार्यों की समीक्षा करनी चाहिए जो दिन-भर आपने किये हैं उनमें से कोई ऐसा दीखे जिससे आपके शारीरिक अथवा मानसिक स्वास्थ्य पर कुप्रभाव पड़ता हो तो उसे आगे के लिये रोकने या कम करने का प्रयत्न कीजिये।

🌹 क्रमशः जारी
🌹 पं श्रीराम शर्मा आचार्य

👉 स्रष्टा का परम प्रसाद-प्रखर प्रज्ञा (भाग 35)

🌹 सद्बुद्धि का उभार कैसे हो?

🔵 अभावों और संकटों में से कितने ही ऐसे हैं, जिनके कारण मनुष्य को आए दिन बेचैन रहना पड़ता है। ऐसी स्थिति में वह दूसरे संपन्नों से आशा भी करता है कि उसकी कुछ मदद की जाए। करने वाला इसमें कर्तव्यपालन और पुण्यपरमार्थ अनुभव करता है।

🔴 दुर्बलता, रुग्णता, दरिद्रता, शत्रुता, मूर्खता व आशंका जैसे कितने ही कारण ऐसे हैं जो दु:खों को बढ़ाते और त्रास देते रहते हैं, पर इन सबके मूल में एक ही विपत्ति सर्वोपरि है, जिसका नाम है-अदूरदर्शिता अविवेक भी इसी को कहते हैं। दिग्भ्रांत मनुष्य अपने को समझदार मानते हुए भी कुचक्र में फँसते और भटकाव के कारण पग-पग पर ठोकरें खाते हैं। अनाचार भी इस कारण बनते हैं। गुण, कर्म, स्वभाव में निकृष्टता इसी कारण घुस पड़ती है। जड़ में से अनेक टहनियाँ, पत्तियाँ फूटती हैं, इसी प्रकार एक अविवेकशीलता का बाहुल्य रहने पर कारणवश या अकारण ही समस्याओं में उलझना और विपत्तियों में फँसना पड़ता है।                       

🔵 पत्ते सींचने से पेड़ की सुव्यवस्था नहीं बन पड़ती, इसलिए जड़ में खाद-पानी लगाने और उजाड़ करने वालों से रखवाली करनी पड़ती है। इतना प्रबंध किये बिना अच्छी भूमि में बोया गया अच्छा बीज भी फूलने-फलने की स्थिति तक नहीं पहुँचता।

🔴 सद्ज्ञान को समस्त विपत्तियों का निवारक माना गया है। रामायण का कथन है कि ‘जहाँ सुमति तहाँ संपत्ति नाना’ अर्थात् जहाँ विचारशीलता विद्यमान रहेगी वहाँ अनेकानेक सुविधाओं-संपदाओं की शृंखला अनायास ही खिंचती चली आएगी। यही कारण है कि सद्बुद्धि की अधिष्ठात्री गायत्री को माना गया है। मन:स्थिति परिस्थितियों का निर्माण करती है। परिस्थितियाँ ही दु:ख का, उत्थान-पतन का निमित्त कारण बनकर सामने आती हैं। गीताकार ने सच ही कहा है कि मनुष्य ही अपना शत्रु है और वही चाहे तो अपने को सघन सहयोगी मित्र बना सकता है, इसलिए अपने आपको गिराना नहीं, उठाना चाहिए।  

🌹 क्रमशः जारी
🌹 पं श्रीराम शर्मा आचार्य

👉 कौन-कौन गुण गाऊँ गुरु तेरे

🔵 मेरे पिता जी सन् १९६४ में ही गुरुदेव के संपर्क में आए। पिताजी के मन में उनके प्रति अनन्य श्रद्धा थी। मुझे याद है जब भी हमारे परिवार में कोई समस्या आती, गुरुदेव से प्रार्थना करते ही पता नहीं, कैसे सारी समस्या सुलझती चली जाती थी। इसलिए हम सभी के मन में उनके प्रति गहरी श्रद्धा का भाव था।
  
🔴 १९७३ में गुरुदेव ने प्राण प्रत्यावर्तन शिविर शुरू किया था। मैं भी शिविर में जाने के लिए तैयार हो गया। मन में शांतिकुंज जाने के लिए उत्साह तो था ही, गुरु देव से मिलने की ललक भी थी; क्योंकि पिताजी से गुरुदेव के बारे में बहुत कुछ सुन रखा था। उन्हें प्रत्यक्ष देखने का अवसर पहली बार मिल रहा था।
  
🔵 आखिर वह दिन आ ही गया जब हम शान्तिकुञ्ज पहुँच गए। शान्तिकुञ्ज पहुँचते ही वहाँ के वातावरण को देख हृदय पुलकित हो उठा, जैसा नाम वैसा ही काम शान्तिकुञ्ज को देखते ही मन में साधना की तरंगें उठने लगीं।
  
🔴 मैं जैसे ही गेट के पास पहुँचा। गुरु देव गेट पर ही खड़े मिले। मैंने झुककर प्रणाम किया। वे बोले- मैं तुम्हारी प्रतीक्षा कर रहा था। उनके इन शब्दों को सुनकर हृदय में ऐसी भाव तरंगे उठीं कि शब्दों में व्यक्त नहीं कर सकता। मेरे हृदय में उनके प्रति सम्मान दूना हो गया। भगवान स्वरूप गुरुदेव की मुझ अकिंचन पर ऐसी कृपा!
  
🔵 मैं मन ही मन बहुत प्रसन्न था। दूसरे दिन मिलने के ख्याल से गुरु देव के पास गया। उन्होंने प्यार से अपने पास बैठाया। कुशल समाचार पूछे। इसके बाद बोले-कोई समस्या हो तो बताओ। मैंने कहा- गुरु देव! मैं बोल नहीं सकता। गुरु देव ने मुस्कुराते हुए कहा- क्यों, बोल तो रहा है। मैंने कहा मैं हकलाता हू। उन्होंने कहा मैं भी हकलाता हूँ, मेरा कोई काम रु का है आज तक? तुम्हारा भी काम नहीं रुकेगा। मैंने कहा- नहीं गुरु देव, मैं प्रवचनकर्ता बनना चाहता हू। गुरु देव थोड़ा रु के, फिर बोले- तू बनेगा, जरूर बनेगा। मैं गायत्री माँ से प्रार्थना करूँगा।
  
🔴 करीब एक हफ्ते बाद मेरी आवाज में सुधार होने लगा। मुझे स्वयं पर आश्चर्य होता। धीरे-धीरे एक महीने के अन्दर मेरी हकलाहट पूरी तरह दूर हो गई। गुरुदेव ने मुझसे कहा कि बनेगा तो बना भी दिया। मुझे अच्छी सर्विस भी मिल गई और एक अच्छा वक्ता भी बना दिया, जो बहुत दिनों की मेरी दिली इच्छा रही थी। मैं आज भी गुरुकृपा से अभिभूत हूँ।
  
🔵 जिनने स्वयं की हकलाहट दूर करने के लिए चमत्कारी शक्ति का सहारा नहीं लिया; अपनी सन्तान के लिए माता से प्रार्थना नहीं की, उनने मेरी कमियों को दूर कर मुझे आत्महीनता की ग्रन्थि से उबार लिया; जीवन पथ पर मजबूती से खड़ा होने लायक बना दिया। आज मैं धन्य हू उनकी कृपा पाकर।                   
  
🌹 कृष्ण कुमार विनोद दुर्ग (छत्तीसगढ़)
🌹 अदभुत, आश्चर्यजनक किन्तु सत्य पुस्तक से
http://hindi.awgp.org/gayatri/AWGP_Offers/Literature_Life_Transforming/Samsarn/won/kon

👉 13 अप्रैल 1919

🔴 बैसाखी के दिन 13 अप्रैल 1919 को अमृतसर के जलियांवाला बाग में रोलेट एक्ट, अंग्रेजों की दमनकारी नीतियों व दो नेताओं सत्यपाल और सैफ़ुद्दीन किचलू की गिरफ्तारी के विरोध में एक सभा रखी गई, जिसमें कुछ नेता भाषण देने वाले थे। शहर में कर्फ्यू लगा हुआ था, फिर भी इसमें सैंकड़ों लोग ऐसे भी थे, जो बैसाखी के मौके पर परिवार के साथ मेला देखने और शहर घूमने आए थे और सभा की खबर सुन कर वहां जा पहुंचे थे। करीब 5,000 लोग जलियांवाला बाग में इकट्ठे थे। ब्रिटिश सरकार के कई अधिकारियों को यह 1857 के गदर की पुनरावृत्ति जैसी परिस्थिति लग रही थी जिसे न होने देने के लिए और कुचलने के लिए वो कुछ भी करने के लिए तैयार थे।

🔵 जब नेता बाग में पड़ी रोड़ियों के ढेर पर खड़े हो कर भाषण दे रहे थे, तभी ब्रिगेडियर जनरल रेजीनॉल्ड डायर 90 ब्रिटिश सैनिकों को लेकर वहां पहुँच गया। उन सब के हाथों में भरी हुई राइफलें थीं। सैनिकों ने बाग को घेर कर बिना कोई चेतावनी दिए निहत्थे लोगों पर गोलियाँ चलानी शुरु कर दीं। १० मिनट में कुल 1650 राउंड गोलियां चलाई गईं। जलियांवाला बाग उस समय मकानों के पीछे पड़ा एक खाली मैदान था। वहां तक जाने या बाहर निकलने के लिए केवल एक संकरा रास्ता था और चारों ओर मकान थे। भागने का कोई रास्ता नहीं था। कुछ लोग जान बचाने के लिए मैदान में मौजूद एकमात्र कुएं में कूद गए, पर देखते ही देखते वह कुआं भी लाशों से पट गया।

🔴 अमृतसर के डिप्टी कमिश्नर कार्यालय में 484 शहीदों की सूची है, जबकि जलियांवाला बाग में कुल 388 शहीदों की सूची है। ब्रिटिश राज के अभिलेख इस घटना में 200 लोगों के घायल होने और 379 लोगों के शहीद होने की बात स्वीकार करते है जबकि अनाधिकारिक आँकड़ों के अनुसार 1000 से अधिक लोग मारे गए और 2000 से अधिक घायल हुए। इस घटना के प्रतिघात स्वरूप सरदार उधमसिंह ने 13 मार्च 1940 को उन्होंने लंदन के कैक्सटन हॉल में इस घटना के समय ब्रिटिश लेफ़्टिनेण्ट गवर्नर मायकल ओ ड्वायर को गोली चला के मार डाला। उन्हें 31 जुलाई 1940 को फाँसी पर चढ़ा दिया गया।

🔵 यदि किसी एक घटना ने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम पर सबसे अधिक प्रभाव डाला था तो वह घटना यह जघन्य हत्याकाण्ड ही था।


👉 प्रेरणादायक प्रसंग 30 Sep 2024

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