सोमवार, 28 अगस्त 2023

👉 आत्मचिंतन के क्षण Aatmchintan Ke Kshan 28 Aug 2023

🔷 आज भड़कीला शृंगार फैशन कहा जाता है और उसे कला, सुरुचि एवं सभ्यता का चिह्न कहकर पुकारा जाता है। कहा और माना जो कुछ भी जाय वास्तविकता ज्यों की त्यों रहेगी। हमारे उठती उम्र के बच्चे और बच्ची इस पतन पथ पर कदम न बढ़ाएँ इसका ख्याल रखा जाना चाहिए। उत्तेजक शृंगार की जड़ में वासना का विकार स्पष्ट है इससे देखने वालों के मन में विक्षोभ उत्पन्न होता है। इसलिए हम सफाई से रहें, स्वच्छता पसंद करें, सादगी से रहें और सभ्य वेशभूषा धारण करें।

🔶 वर्तमान परिस्थितियों में प्रजनन कर्म में प्रवृत्त होने से पूर्व हर विवेकशील नर-नारी को हजार बार विचार करना चाहिए कि क्या वह सचमुच समुन्नत स्तर की संतान का निर्माण करने की मनःस्थिति और परिस्थिति में है? यदि नहीं, तो बुद्धिमत्ता इसी में है कि अपनी आर्थिक जननी की शारीरिक स्थिति को, बच्चों के भविष्य और देश की प्रगति को बर्बादी से बचाने के लिए संतानोत्पादन पर विराम लगाकर ही रखा जाय।

🔷 आज उस समय की उन मान्यताओं का समर्थन नहीं किया जा सकता जिनमें संतान वालों को सौभाग्यवान और संतानरहित को अभागी कहा जाता था। आज तो ठीक उलटी परिभाषा करनी पड़ेगी। जो जितने अधिक बच्चे उत्पन्न् करता है, वह संसार में उतनी ही अधिक कठिनाई उत्पन्न करता है और समाज का उसी अनुपात से भार बढ़ाता है, जबकि करोड़ों लोगों को आधे पेट सोना पड़ता है, तब नई आबादी बढ़ाना उन विभूतियों के ग्रास छीनने वाली नई भीड़ खड़ी कर देना है। आज के स्थित में संतानोत्पादन को दूसरे शब्दों में समाज द्रोह का पाप कहा जाय तो तनिक भी अत्युक्ति नहीं होगी।

✍🏻 पं श्रीराम शर्मा आचार्य

👉 धैर्य

मनु भगवान ने धर्म के दस लक्षणों का वर्णन करते हुए धृति (धैर्य) को पहला स्थान दिया है। वास्तव में धैर्य का स्थान जीवन में इतना ही ऊँचा है कि उसे प्रारम्भिक सद्गुण माना जाए। हर एक कार्य कुछ समय उपरान्त फल देता है, हथेली पर सरसों जमते नहीं देखी जाती, किसान खेत बोता है और फसल की प्रतीक्षा करता रहता है। यदि हम अधीर होकर बोये हुए दानों का फल उसी दिन लेना चाहे तो उसे निराश ही होना पड़ेगा।

लोग किसी कार्य को उत्साहपूर्वक आरम्भ कर हैं किन्तु फल की शीघ्रता के लिए इतने उतावले होते हैं कि थोड़े समय तक प्रतीक्षा करना या धैर्य धारण करना उन्हें सहन नहीं होता, फलस्वरूप निराश होकर वे उस काम को छोड़ देते हैं और दूसरा काम आरम्भ करते हैं, फिर वह दूसरा काम छोड़ना पड़ता है, इसी प्रकार अनेकों अधूरे कार्य छोड़ते जाते हैं, सफलता किसी में भी प्राप्त नहीं होती। असफलताओं की एक लम्बी सूची अपने साथ लिये फिरते हैं, अयोग्य और मूर्ख बनते हैं तथा लोक हँसाई कराते हैं। प्रतिभा, योग्यता, कार्यशीलता, बुद्धिमत्ता सभी कुछ उनमें होती है पर अधीरता और उतावलेपन का एक ही दोष उन सारे गुणों पर पानी फेर देता है।

धर्म का आरम्भिक लक्षण धैर्य है। हमें चाहिए कि किसी कार्य को खूब आगा-पीछा सोच-समझने के बाद आरम्भ करें किन्तु जब आरम्भ कर दें तो दृढ़ता और धैर्य के साथ उसे पूरा करने में लगे रहें। विषम कठिनाइयाँ, असफलताएं, हानियाँ प्रायः हर एक अच्छे कार्य के आरम्भ में आती देखी गई हैं पर यह बात भी निश्चय है कि कोई व्यक्ति शान्त चित्त से उस मार्ग पर डटा रहे तो एक दिन पथ के वे काँटे फूल बन जाते हैं और सफलता प्राप्त होकर रहती है।

📖 अखण्ड ज्योति अक्टूबर 1943 पृष्ठ 9

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