🌹 चारों ओर मधुरता, स्वच्छता, सादगी और सज्जनता का वातावरण उत्पन्न करेंगे।
🔴 देहातों में तो और भी बुरी दशा का वातावरण, गंदगी, दुर्गंध और अस्वास्थ्यकर, घृणास्पद दृश्यों से भरा रहता है। कूड़े और गोबर के ढेर जहाँ-तहाँ लगे रहते हैं और उसकी सड़न सार्वजनिक स्वास्थ्य के लिए संकट उत्पन्न करती रहती है। इस दिशा में विशेष रूप से ध्यान दिया जाना चाहिए। सोखता पेशाब घर, सोखता नालियाँ तथा गड्ढे खोद कर लकड़ी के शौचालय बहुत सस्ते में तथा बड़ी आसानी से बनाए जा सकते हैं। गाँव में पानी का लोटा साथ ले जाने की तरह यदि खुरपी भी लोग साथ ले जाया करें और छोटा गड्ढा खोदकर उसमें शौच जाने के उपरांत गड्ढे को ढक दिया करें, तो जमीन को खाद भी मिले और गंदगी के कारण उत्पन्न होने वाली शारीरिक, मानसिक और सामाजिक अवांछनीयता भी उत्पन्न न हो।
🔵 स्वच्छता मानव जीवन की सुरुचि का प्रथम गुण है। हमें अपने शरीर, वस्त्र, उपकरण एवं निवास की स्वच्छता को ऐसा प्रबंध करना चाहिए जिससे अपने को संतोष और दूसरों को आनंद मिले। निर्मलता, निरोगिता, निश्चिंतता और निर्लिप्तता के आधार पर उत्पन्न की गई आत्मा की पवित्रता हमें ईश्वर से मिलाने का पथ प्रशस्त करती है। स्वच्छता को हम अनिवार्य मानें और अस्वच्छता का निष्कासन निरंतर करते रहें, यही हमारे लिए उचित है।
🔴 अच्छा हो हम समझदारी और सज्जनता से भरा हुआ, सादगी का जीवन जिएँ। अपनी बाह्य सुसज्जा वाले परिवार की तथा समाज की वास्तविक आवश्यकताओं को पूरा करने में लगाने लगें। सादगी सज्जनता का प्रतिनिधित्व करती है। जिसका वेश-विन्यास सादगीपूर्ण है, उसे अधिक प्रामाणिक एवं विश्वस्त माना जा सकता है। जो जितना ही उद्धतपन दिखाएगा, समझदारों की दृष्टि में उतनी ही इज्जत गिरा लेगा। इसलिए उचित यही है कि हम अपने वस्त्र सादा रखें, उनकी सिलाई भले-मानसों जैसी कराएँ, जेवर न लटकाए नाखून और होठ न रंगे, बालों को इस तरह से न सजाए जिससे दूसरों को दिखाने का उपक्रम करना पड़े। नर-नारी के बीच मानसिक व्यभिचार का बहुत कुछ सृजन इस फैशन-परस्ती में होता है।
🌹 क्रमशः जारी
🌹 पं श्रीराम शर्मा आचार्य
http://literature.awgp.org/book/ikkeesaveen_sadee_ka_sanvidhan/v1.52
http://literature.awgp.org/book/ikkeesaveen_sadee_ka_sanvidhan/v2.8
🔴 देहातों में तो और भी बुरी दशा का वातावरण, गंदगी, दुर्गंध और अस्वास्थ्यकर, घृणास्पद दृश्यों से भरा रहता है। कूड़े और गोबर के ढेर जहाँ-तहाँ लगे रहते हैं और उसकी सड़न सार्वजनिक स्वास्थ्य के लिए संकट उत्पन्न करती रहती है। इस दिशा में विशेष रूप से ध्यान दिया जाना चाहिए। सोखता पेशाब घर, सोखता नालियाँ तथा गड्ढे खोद कर लकड़ी के शौचालय बहुत सस्ते में तथा बड़ी आसानी से बनाए जा सकते हैं। गाँव में पानी का लोटा साथ ले जाने की तरह यदि खुरपी भी लोग साथ ले जाया करें और छोटा गड्ढा खोदकर उसमें शौच जाने के उपरांत गड्ढे को ढक दिया करें, तो जमीन को खाद भी मिले और गंदगी के कारण उत्पन्न होने वाली शारीरिक, मानसिक और सामाजिक अवांछनीयता भी उत्पन्न न हो।
🔵 स्वच्छता मानव जीवन की सुरुचि का प्रथम गुण है। हमें अपने शरीर, वस्त्र, उपकरण एवं निवास की स्वच्छता को ऐसा प्रबंध करना चाहिए जिससे अपने को संतोष और दूसरों को आनंद मिले। निर्मलता, निरोगिता, निश्चिंतता और निर्लिप्तता के आधार पर उत्पन्न की गई आत्मा की पवित्रता हमें ईश्वर से मिलाने का पथ प्रशस्त करती है। स्वच्छता को हम अनिवार्य मानें और अस्वच्छता का निष्कासन निरंतर करते रहें, यही हमारे लिए उचित है।
🔴 अच्छा हो हम समझदारी और सज्जनता से भरा हुआ, सादगी का जीवन जिएँ। अपनी बाह्य सुसज्जा वाले परिवार की तथा समाज की वास्तविक आवश्यकताओं को पूरा करने में लगाने लगें। सादगी सज्जनता का प्रतिनिधित्व करती है। जिसका वेश-विन्यास सादगीपूर्ण है, उसे अधिक प्रामाणिक एवं विश्वस्त माना जा सकता है। जो जितना ही उद्धतपन दिखाएगा, समझदारों की दृष्टि में उतनी ही इज्जत गिरा लेगा। इसलिए उचित यही है कि हम अपने वस्त्र सादा रखें, उनकी सिलाई भले-मानसों जैसी कराएँ, जेवर न लटकाए नाखून और होठ न रंगे, बालों को इस तरह से न सजाए जिससे दूसरों को दिखाने का उपक्रम करना पड़े। नर-नारी के बीच मानसिक व्यभिचार का बहुत कुछ सृजन इस फैशन-परस्ती में होता है।
🌹 क्रमशः जारी
🌹 पं श्रीराम शर्मा आचार्य
http://literature.awgp.org/book/ikkeesaveen_sadee_ka_sanvidhan/v1.52
http://literature.awgp.org/book/ikkeesaveen_sadee_ka_sanvidhan/v2.8