बुधवार, 27 सितंबर 2023

👉 आत्मचिंतन के क्षण Aatmchintan Ke Kshan 27 Sep 2023

🔷 आत्म-विश्वासी भाग्य को अपने पुरुषार्थ का दास समझता है तथा उसे अपना इच्छानुवर्ती बना लेता है। इसके लिए आवश्यकता केवल इस बात की है कि उचित मूल्याँकन किया जाए और आत्मविश्वास को सुदृढ़। यदि अपना उचित मूल्याँकन किया जाये तो वह निष्कर्ष अपनी प्रतिभा का स्पर्श पाते ही जीवन्त हो उठता है तथा व्यक्ति बड़ी से बड़ी कठिनाइयों को लाँघ सकता है। नैपोलियन को अपने विजय अभियान में जब आल्पस् पर्वत पार करने का अवसर आया तो लोगों ने उसे बहुत समझाया कि आज तक आल्पस् पर्वत कोई भी पार नहीं कर सका है और इस तरह की चेष्टा करने वाले को मौत के मुँह में जाना पड़ा है। उन व्यक्तियों को नैपोलियन ने यही उत्तर दिया था कि मुझे मौत के मुंह में जाना मंजूर है, पर आल्पस् से हार मानना नहीं और इस निश्चय के सामने आल्पस् को झुकना ही पड़ा।

🔶 स्मरण रखा जाना चाहिए और विश्वास किया जाना चाहिए कि इस संसार में मनुष्य के लिए न तो कोई वस्तु या उपलब्धि अलभ्य है तथा न ही कोई व्यक्ति किसी प्रकार अयोग्य है। अयोग्यता एक ही है और वह है अपने आपको प्रति अविश्वास। यदि अपना उचित मूल्याँकन किया जाये तो कोई भी बाधा मनुष्य को उसके लक्ष्य तक पहुँचने से नहीं रोक सकती।  
                                              
🔷 अपने कार्यकारी जीवन में लोग कई तरह की अशुभ आशंकाओं से आतंकित रहते हैं। रोजगार ठीक से चलेगा या नहीं, कहीं व्यापार में हानि तो नहीं हो जाएगी, नौकरी से हटा तो नहीं दिया जायगा, अधिकारी नाराज तो नहीं हो जाएंगे जैसी चिन्ताएँ लोगों के मन मस्तिष्क पर हावी होने लगती हैं तो वह जो काम हाथ में होता है उसे भी सहज ढंग से नहीं कर पता। इन अशुभ आशंकाओं के करते रहने से मन में जो स्थाई गाँठ पड़ जाती है उसकी का नाम भय है।

✍🏻 पं श्रीराम शर्मा आचार्य

👉 क्षणिक अस्तित्व पर इतना अभिमान

अमावस की रात में दीप ने देखा-न चाँद और न कोई ग्रह नक्षत्र न कोई तारा-केवल वह एक अकेला संसार को प्रकाश दे रहा है। अपने इस महत्व को देख कर उसे अभिमान हो गया।

संसार को सम्बोधित करता हुआ अहंकारपूर्वक बोला-मेरी महिमा देखो, मेरी ज्योति-किरणों की पूजा करो, मेरी दया-दयालुता का गुणगान करो मैं तुम सबको राह दिखाता हूँ, प्रकाश देता हूँ इस प्रगाढ़ अन्धकार में तुम सब मेरी कृपा से ही देख पर रहे हो। मुझे मस्तक नवाओ, प्रणाम करो।

दीप के इस अहंकारोक्ति का उत्तर और किसी ने तो दिया नहीं, पर जुगनू से न रहा गया बोला-ऐ दीप! क्षणिक अधिकार पाकर इतना अभिमान, एक रात के अस्तित्व पर यह अहंकार केवल इस रात ठहरे रहो। प्रभात में तुमसे मिलूँगा तब तुम अपनी वास्तविकता से अवगत हो चुके होगे!

📖 अखण्ड ज्योति अप्रैल 1967 पृष्ठ 22


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