शुक्रवार, 7 दिसंबर 2018

👉 Character Speaks for Itself

If someone wishes to convey everyday information or some news, or to teach mathematics or geography or any other subject for that matter, they can simply do it by speaking, explaining or writing. On the other hand, if he/she wishes to shape or transform someone's character, then the only effective way to accomplish it would be to set an example of their own for others to emulate.

People with captivating character inspire others through their powerful manners, approaches and practices and thus enthuse them to follow their shining example. We can witness this truth in the life history of any great personality throughout the world. They practiced what they wished to preach. Their words in action worked like a charm in influencing others. Gautama Buddha, Gandhi, Harish Chandra, etc. made their life a shining example. Their illustrious life  served as a template or mould for several others who started casting their life in the mould of their role model.

✍🏻 Pt. Shriram Sharma Acharya
📖 YUG NIRMAN YOJANA – DARSHAN, SWAROOP & KARYAKRAM -Vangmay 66 Page 1.27

👉 चरित्र से जो बोला जाएगा

किसी को बाहरी जानकारी देनी हो, सामाचार सुनाना हो, गणित, भूगोल पढ़ाना हो तो यह कार्य वाणी मात्र से भी हो सकता है, लिखकर भी किया जा सकता है और वह प्रयोजन आसानी से पूरा हो सकता है। पर यदि चरित्र निर्माण या व्यक्तित्व का परिवर्तन करना है तो फिर उसके सामने आदर्श उपस्थित करना ही प्रभावशाली उपाय रह जाता है।

प्रभावशाली व्यक्तित्व अपनी प्रखर कार्यपद्धति से अनुप्राणित करके दूसरों को अपना अनुयायी बनाते हैं । संसार के समस्त महामानवों का यही इतिहास है। उन्हें दूसरों से जो कहना था, कराना था, वह उन्होंने पहले स्वयं किया।

उसी कर्तृत्व का प्रभाव पड़ा। बुद्ध, गाँधी, हरिश्चन्द्र आदि ने अपने को एक साँचा बनाया, तब कहीं दूसरे खिलौने, दूसरे व्यक्तित्व उसमें ढलने शुरू हुए।

✍🏻 पं श्रीराम शर्मा आचार्य
📖 युग निर्माण योजना - दर्शन, स्वरूप व कार्यक्रम- वांग्मय 66 पृष्ठ-1.27

हम बदलेंगे युग यूग बदलेगा हम सुधरेंगे युग सुधरेगा

👉 आत्मचिंतन के क्षण 7 Dec 2018

संसार में जितने भी प्राणी रहते हैं सभी में कुछ गुण और कुछ दोष रहते हैं। सर्वथा निर्दोष तो परमात्मा ही माना जाता है। शेष सभी में कुछ अंश भलाई है कुछ बुराई। किसी में गुणों का आधिक्य है किसी में बुराइयों का बाहुल्य, जिसे एकदम अवगुणों का अवतार माना जाता है। कंस महा क्रूर शासक था, रावण का अत्याचार जगत् विख्यात है किन्तु दोनों ही पराक्रमी, पुरुषार्थी और साहसी थे। सिकन्दर दूरदर्शी था। हिटलर विचारवान था, चंगेज खाँ में और कुछ नहीं संगठन शक्ति थी। बुरे से बुरे व्यक्तियों में भी प्रेरणा और प्रसन्नता देने वाला कोई न कोई गुण अवश्य होता है। जिस प्रकार संसार में कोई भी व्यक्ति पूर्ण रूप से अच्छा नहीं, न पूर्णतः बुरा। संसार में पूर्ण कोई नहीं।
 
बुराई करनी हो, निन्दा करनी हो तो अपने ही बहुत से गुण खराब होंगे, कई बुरी आदतें पड़ गई होगी उनकी की जानी चाहिये पर गुणवान बनने का, सफलता प्राप्त करने का और प्रसन्नता की मात्रा बढ़ाने की- इच्छा हो तो हमारे विचार गुणों मे, कल्याण करने वाले, दृश्यों, संदर्भों और व्यक्तियों पर केन्द्रित रहना चाहिये। ऐसे व्यक्तियों और परिस्थितियों के प्रति हमारी विचारधारा केन्द्रित रहेगी तो गुण ग्राहकता हमारा स्वभाव बन जायेगा। हृदय शुद्ध और मन बलवान होता चला जाएगा। अच्छे गुणों और कार्यों का चिन्तन करना आत्म-विकास के लिये हितकर ही होता है। अच्छे विचार ही मनुष्य को सफलता और जीवन देते हैं।  
                                             
मनुष्य को चाहिये कि वह सदा ही किसी न किसी भले काम, भले व्यक्ति और भलाई के गुण का चिन्तन किया करे इससे उसके अन्तःकरण से अपने आप भलाई की शक्ति जन्मती है। उसे प्रेरणा और पुलक प्रदान करती है। इस तरह निरन्तर पुलकित रहने का जिसका स्वभाव बन जाता है संसार में उसके लिए न तो कुछ अमंगल रह जाता है और न अहितकर। यह केवल अपने मन को गुण ग्रहण करने की दिशा में लगा देने का चमत्कार मात्र है।

✍🏻 ~पं श्रीराम शर्मा आचार्य

👉 आज का सद्चिंतन 7 December 2018


👉 प्रेरणादायक प्रसंग 7 December 2018


भगवान की कृपा या अकृपा

एक व्यक्ति नित्य हनुमान जी की मूर्ति के आगे दिया जलाने जाया करता था। एक दिन मैंने उससे इसका कारण पूछा तो उसने कहा-”मैंने हनुमान जी की मनौती मानी थी कि यदि मुकदमा जीत जाऊँ तो रोज उनके आगे दिया जलाया करूंगा। मैं जीत गया और तभी से यह दिया जलाने का कम चल रहा है।

मेरे पूछने पर मुकदमे का विवरण बताते हुए उसने कहा- एक गरीब आदमी की जमीन मैंने दबा रखी थी, उसने अपनी जमीन वापिस छुड़ाने के लिए अदालत में अर्जी दी, पर वह कानून जानता न था और मुकदमें का खर्च भी न जुटा पाया। मैंने अच्छे वकील किए खर्च किया और हनुमान जी मनौती मनाई। जीत मेरी हुई। हनुमान जी की इस कृपा के लिए मुझे दीपक जलाना ही चाहिए था, सो जलाता भी हूँ।

मैंने उससे कहा-भोले आदमी, यह तो हनुमान जी की कृपा नहीं अकृपा हुई। अनुचित कार्यों में सफलता मिलने से तो मनुष्य पाप और पतन के मार्ग पर अधिक तेजी से बढ़ता है, क्या तुझे इतना भी मालूम नहीं। मैंने उस व्यक्ति को एक घटना सुनाई-’एक व्यक्ति वेश्यागमन के लिए गया। सीढ़ी पर चढ़ते समय उसका पैर फिसला और हाथ की हड्डी टूट गई। अस्पताल में से उसने सन्देश भेजा कि मेरी हड्डी टूटी यह भगवान की बड़ी कृपा है। वेश्यागमन के पाप से बच गया।

मनुष्य सोचता है कि जो कुछ वह चाहे उसकी पूर्ति हो जाना ही भगवान ही कृपा है। यह भूल है। यदि उचित और न्याययुक्त सफलता मिले तो ही उसे भगवान की कृपा कहना चाहिए। पाप की सफलता तो प्रत्यक्ष अकृपा है। जिससे अपना पतन और नाश समीप आता है उसे अकृपा नहीं तो और क्या कहें?

दे प्रभो! वरदान ऐसा (kavita)

दे प्रभा! वरदान ऐसा,दे विभो वरदान ऐसा।
भूल जाऊँ भेद सब, अपना पराया मान वैसा॥

मुक्त होऊँ बंधनों से मोह माया पाश टूटे|
स्वार्थ, ईर्ष्या, द्वेष आदिक दुर्गुणों का संग छूटे॥

प्रेम मानस में भरा हो, हो हृदय में शान्ति छाई।
देखता होऊँ जिधर मैं, दे उधर तू ही दिखाई॥

नष्ट हो सब भिन्नता, फिर बैर और विरोध कैसा।
दे प्रभो! वरदान ऐसा, दे विभो! वरदान ऐसा॥

ज्ञान के आलोक से उज्ज्वल बने यह चित्त मेरा।
लुप्त हो अज्ञान का, अविचार का छाया अंधेरा॥

हो प्रभो, परमार्थ के शुभ कार्य में रुचि नित्य मेरी।
दीन दुखियों की कुटी में ही मिले अनुभूति तेरी॥

दूसरों के दुःख को समझूँ सदा मैं आप जैसा।
दे प्रभो! वरदान ऐसा, दे विभो! वरदान ऐसा॥

हो अभय, अविवेक तज, शुचि सत्य पथगामी बनूँ मैं।
आपदाओं से भला क्या, काल से भी ना डरूं मैं॥

सत्य को ही धर्म मानूं, सत्य को ही साधना मैं।
सत्य के ही रूप में तेरी करूं आराधना मैं॥

भूल जाऊँ भेद सब अपना पराया मान तैसा।
दे प्रभो! वरदान ऐसा, दे विभो! वरदान ऐसा॥

👉 महिमा गुणों की ही है

🔷 असुरों को जिताने का श्रेय उनकी दुष्टता या पाप-वृति को नहीं मिल सकता। उसने तो अन्तत: उन्हें विनाश के गर्त में ही गिराया और निन्दा के न...