मंगलवार, 21 फ़रवरी 2023

👉 पुस्तक-प्रेम

दार्शनिक एमर्सन कहा करते थे, कि “पुस्तकों का स्नेह ईश्वर के राज्य में पहुँचने का विमान है।” निस्संदेह मनुष्य की अपूर्णता को पूर्णता की ओर ले जाने में, अज्ञ से विज्ञ बनाने में जितना काम पुस्तक ने किया उतना और पदार्थ द्वारा नहीं हुआ। निस्संदेह मनुष्य की अपूर्णता को पूर्णता की ओर ले जाने में, अज्ञ से विज्ञ बनाने में जितना काम पुस्तक ने किया उतना और पदार्थ द्वारा नहीं हुआ। श्रेष्ठ महापुरुषों, दिव्य दार्शनिकों और खोज करने वाले तपस्वियों के घोर परिश्रम द्वारा प्राप्त हुए बहुमूल्य रत्न पुस्तकों की तिजोरी में बन्द हैं। यह हमारा सौभाग्य है कि इतने अनुभव पूर्ण ज्ञान को हम इतनी आसानी से पुस्तकों द्वारा प्राप्त कर लेते हैं।

सिसरो ने कहा है कि अच्छी पुस्तकों को घर में इकट्ठा करना मानो घर को देव मंदिर बना लेना है। कार्लाईल ने लिखा है—”जिन घरों में अच्छी किताबें नहीं वे जीवित मुर्दों के रहने के कब्रिस्तान हैं।” जीवन कला एवं सरसता का समावेश पुस्तकों की सहायता से होता है। जिन्दगी की पेचीदा समस्याओं के ऊपर विचार करने के लिए पुस्तकें प्रोत्साहन देती हैं और प्रकाश—दीप की भाँति सत्मार्ग की ओर हमारा पथ प्रदर्शन करती हैं।

कैम्पिस ने एक बार लोगों को उपदेश दिया था कि—’अपना कोट बेचकर भी अच्छी किताबें खरीदो।’ उनका कहना था कि कोट के अभाव में जाड़े के कारण आपके शरीर को कुछ कष्ट होगा, परन्तु पुस्तकों के अभाव में आत्मा को भूखा मरना पड़ेगा। भौतिक जगत की जड़ता नीरसता ओर बहिरंगता की कर्कशता से छुड़ाने की शक्ति पुस्तकों में हैं उन्हीं में जीवन का अमृत रस भरा हुआ है जिसे पान करके तुच्छ जीव से ऊँचे उठकर हम महामानव बनते हैं। हर मनुष्य को पुस्तक प्रेमी होना चाहिए विचारपूर्ण सत ग्रन्थों का संग्रह और स्वाध्याय करना अपने को पशुता से देवत्व की ओर ले जाना का स्पष्ट चिन्ह है।

📖 अखण्ड ज्योति अक्टूबर 1944 पृष्ठ 8

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👉 अवकाश के क्षण

हम अपने निर्धारित काम करते हैं। किन्तु काम को करते हुए भी बहुत सी फुरसत की घड़ियाँ मिलती हैं यदि उनका उपयोग ठीक प्रकार किया जावे तो इस थोड़े-थोड़े समय से ही बहुत काम हो सकता है।

पार्लियामेण्ट के प्रमुख वक्ता एल हुवरिट का ओजस्वी भाषण सुनकर उसके भाई प्रभावित हुए और प्रशंसा करते हुए बोले-”हमारे कुटुम्ब में सबसे प्रतिभावान हुवरिट है। मुझे याद है कि जब हम लोग खेला करते थे तब उस फुरसत के वक्त में वह अपना काम किया करता था।” हेरेट बीचरस्होव ने अपनी सर्वोत्तम कृति ‘टाम काका की कुटिया’ की रचना घर गृहस्थी के झंझटों के बीच फंसे रहते हुए ही की है। भोजन की प्रतीक्षा में जितना समय लगता था उतने ही क्षणों के नियमपूर्वक काम में लाकर वीचर महोदन ने एक महाग्रन्थ को पढ़ डाला। महाशय लाँग फेलो ने चाय उबलने तक की फुरसत को काम में लाकर ‘इन करनो’ नामक ग्रन्थ का अनुवाद कर डाला था। कवि वर्न्स खेती का काम करते थे जब जहाँ मौका मिलता तो कविता करने लगते उनकी अमर रचनाओं का बड़ा मान है। महाकवि मिल्टन राज्य मंत्री था उसे बड़ा काम रहता था फिर भी उसने कुछ घड़ियाँ नित्य बचाकर ‘पेरेडाइज लाँस्ट’ नामक महाकाव्य रच डाला। ईस्ट इण्डिया हाउस में क्लर्की करते करते जान स्टुअर्ट मिल ने अपना सर्वोत्तम ग्रन्थ लिखा।

डॉक्टर गेलीलियो को अपने बीमारों की देख-भाल में बड़ा सर पचाना पड़ता था फिर भी वह कुछ समय बचाकर विज्ञान की शोध करता। अन्त में उसने ऐसे-ऐसे आविष्कार किये जिनके लिये संसार सदा उनका कृतज्ञ रहेगा। माइकिल फेर्ड नामक जिल्द साज ने कुछ घंटे बचाकर बड़ी-बड़ी वैज्ञानिक शोधे कर डाली। चार्ल्स फास्ट नामक चमार एक घंटे प्रतिदिन अध्ययन करके अमेरिका का सर्वोपरि गणिताचार्य हो गया। रोज थोड़ा-थोड़ा काम करने से कुछ ही दिनों में उसका आश्चर्यजनक परिणाम दिखाई देता है। प्रति दिन एक घंटा भी किसी काम के सीखने में लगाया जाये तो मनुष्य उसमें बहुत उन्नति प्राप्त कर सकता है।

मि. माजर्ट प्रतिक्षण कुछ न कुछ करते रहते थे उन्होंने अपनी मृत्यु शैय्या पर ‘रेक्यूयम’ नामक पुस्तक को लिखा। डॉक्टर मारसन गुड लंदन में एक बीमार को देखने गये रास्ते में उन्होंने ‘लुक्रेशियश’ का अनुवाद कर डाला। हेनरी क्रिक ह्वाइट ने दफ्तर आने जाने के समय में ग्रीक भाषा सीखी थी और डॉक्टर वर्नें ने इटालियन और फ्रेंच भाषाओं को घोड़े की पीठ पर पढ़ा था। समय जैसी अमूल्य वस्तु दुनियाँ में और कोई नहीं हो सकती। जार्ज स्टीफ नसन कहते हैं-फुरसत के वक्त को मैं सुवर्ण समझता हूँ और उसे कभी व्यर्थ नहीं जाने देता। सिसरो कहता था- ‘जिस समय को अन्य व्यक्ति दिखावे तथा आराम में खर्च करते हैं उसे ही मैं तत्वज्ञान के अध्ययन में लगाता हूँ। इटली के एक विद्वान ने अपने दरवाजे पर लिख रखा था-’जो यहाँ आवे वह मेरे काम में मदद करे।’ जान एड्यस का समय जब कोई नष्ट करता था तो उसे बड़ा बुरा लगता था। ह्टियर कहता है-’आज के दिन में हमारा भविष्य छिपा हुआ है। आज का दिन नष्ट करने का अर्थ है अपने भाग्य को कुचलना।’

समय ही सम्पत्ति है। सच बात तो यह है कि पैसे की अपेक्षा समय कहीं अधिक मूल्यवान है समय को बरबाद करने के माफिक हैं-शक्ति को नष्ट करना, योग्यता को नष्ट करना, सौभाग्य को नष्ट करना, और अपना लोक परलोक नष्ट करना। समझदार व्यक्ति फुरसत के समय के छोटे-छोटे टुकड़ों को बचाकर महान् बन जाते हैं किन्तु उन्हें योंही लापरवाही में उड़ा देने वाले अपनी असफलता पर रोते हैं और भाग्य को कोसते हैं। समय मित्र के वेश में हमारे सम्मुख उपस्थित होता है और ईश्वर की भेजी हुई बहुमूल्य नियामतें हमारे लिए लाता हैं किन्तु जब हम उसका उचित आदर नहीं करते तो उलटे पावों लौट जाता है। फ्रेंकलिन कहते हैं-”क्या तुम्हें अपने जीवन से प्रेम है? यदि है तो समय को व्यर्थ नष्ट न करो क्योंकि जीवन समय से ही बना हुआ है।” शेक्सपियर के यह शब्द कितने मार्मिक हैं-”मैंने समय को नष्ट किया और अब समय मुझे नष्ट कर रहा है।”

✍🏻 स्वेट मार्डेन
📖 अखण्ड ज्योति नवम्बर 1941 पृष्ठ 13

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