बुधवार, 5 फ़रवरी 2020

👉 QUERIES ABOUT GAYATRI YAGYA (Part 5)

Q.9. Is Akhand Yagya permissible?

Ans. Scriptures do not permit Akhand Yagya.  Yagya should
be completed in a fixed time during the day only. The reason being the possibility of insects, worms etc. getting killed in the sacred fire, which makes it a violent and profane act.

Q.10. How are ‘Tantrik Mukhs’ different from Vedic Yagyas?

Ans. As opposed to Vedic Yagya performed during the day, Tantrik Mukhs are executed at night. ‘Holika Dahan’, burning of ‘funeral pyre’ etc. fall in the category of Mukh.
Mukhs are performed during night for various reasons. The oblations consist of non-eatable and untouchable objects. The sight too is not pleasant. The associated rituals are predominantly full of Tamogun. There is also no consideration for violence or non-violence during the performance. For all these considerations and to avoid interference from prying, Mukhs are organized at solitary, unknown places in utmost privacy.

✍🏻 Pt. Shriram Sharma Acharya
📖 Gayatri Sadhna truth and distortions Page 69

👉 दुखी नहीं प्रसन्न होवें

बहुत बार लोग इस बात से दुखी रहते हैं, कि हमारे कई मित्र संबंधी रिश्तेदार हमें सिर्फ उसी दिन याद करते हैं, जिस दिन उनको हमारी आवश्यकता होती है। साल भर हमें पूछते भी नहीं। जिस दिन काम पड़ता है, उस दिन खूब आगे पीछे घूमते हैं।

तो इस बात से वे लोग दुखी, परेशान रहते हैं। मेरा आप सब से निवेदन है कि इस बात से परेशान न होवें। जरा सोचिए, अगर एक व्यक्ति मुसीबत में है, और वह आपको याद करता है, तो इसका अर्थ हुआ, कि वह आपको अपनी समस्या के समाधान के रूप में देखता है। अर्थात आपके पास उसकी समस्या का समाधान है। तो इसमें बुरा क्या है?
वह आपको याद करता है, यह तो आप के लिए सौभाग्य की बात है।

जरा सोचिए, क्या कोई व्यक्ति हर रोज मोमबत्ती को याद करता है? नहीं न! वह उसी दिन याद करता है, जिस दिन लाइट चली जाती है। तो इसी प्रकार से समस्या उत्पन्न होने पर,कोई आपको समाधान के रूप में याद करता है, तो आपके लिए तो खुशी की बात है। आप उससे ऊंचे हैं। इसलिए दुखी न हों, बल्कि ऐसा सोचकर प्रसन्न होवें,  कि किसी को मेरी जरुरत है। मैं भी किसी से ऊंची स्थिति में हूँ, जिस को मेरी जरुरत है।

👉 पूर्णता का प्रत्यावर्तन

गुरु पूर्णिमा- पूर्णता के प्रत्यावर्तन का महोत्सव है। इन पुण्य-पलों में सद्गुरु अपनी पूर्णता सुपात्र-सत्शिष्य में उड़ेलते हैं। परन्तु यह विरल सौभाग्य मिलता उन्हीं को है, जो अपने अस्तित्त्व को पूर्ण रूप से सद्गुरु के श्री चरणों में अर्पित करने का साहस जुटाते हैं। शिष्य का सम्पूर्ण समर्पण ही सद्गुरु द्वारा प्रत्यावर्तित की जाने वाली पूर्णता का आधार बनता है।
  
समर्पण ही पूर्णता के प्रत्यावर्तन की साधना है। हालांकि साधना की यह डगर कठिन है। जो शिष्य इस पर चलने का साहस कर रहे हैं, वे जानते हैं कि अपने ही अस्तित्त्व में छुपे हुए जड़ता-वासना और अहंता के दुर्गम शैल शिखरों को पार करना आसान नहीं है। और इन्हें पार किए बिना समर्पण सम्भव नहीं है। समर्पण की डगर पर चलने पर अपना ही मन अनेक मायावी खेल रचता है।
  
प्रारम्भिक क्षणों में तो कई बार शिष्य साधक अपनी जड़ता व निष्क्रियता को ही समर्पण समझ लेते हैं। परन्तु जब गुरु कृपा से विवेक की किरणें झिलमिलाती हैं तो बोध होता है कि समर्पण जड़-निष्क्रियता में नहीं बल्कि सद्गुरु के लिए निरन्तर कर्मरत रहने में है। इस अवरोध को पार कर लेने पर वासना अगला अवरोध बनती है। लेकिन जब गुरु कृपा शिष्य में बोध बनकर प्रकट होती है, तो शिष्य की चेतना में यह रहस्य उजागर होता है कि वासना के दुर्गम शैल शिखर को लांघने का रहस्य भक्तिपूर्ण तप में है।
  
इसके बाद अहंता का अन्तिम अवरोध बचा रहता है। समर्पण की डगर पर सतत् चलते रहने वाले शिष्य सद्गुरु कृपा से यह जान लेते हैं कि निष्काम सेवा की निरन्तरता से यह अन्तिम अवरोध भी विलीन हो जाता है। इस विलीनता के साथ ही पूर्णता की प्रत्यावर्तन प्रक्रिया पूर्ण हो जाती है।

✍🏻 डॉ. प्रणव पण्ड्या
📖 जीवन पथ के प्रदीप से पृष्ठ १८१

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