किसी को हमारा स्मारक बनाना हो तो वह वृक्षा लगाकर बनाया जा सकता है। वृक्षा जैसा उदार, सहिष्णु और शान्त जीवन जीने की शिक्षा हमने पाई। उन्हीं जैसा जीवनक्रम लोग अपना सकें तो बहुत है। हमारी प्रवृत्ति, जीवन विद्या और मनोभूमि का परिचय वृक्षों से अधिक और कोई नहीं दे सकता। अतएव वे ही हमोर स्मारक हो सकते हैं।
गायत्री परिवार में बुद्धिमानों की, भावनाशीलों की, प्रतिभावनों की, साधना संपन्नों की कमी नहीं, पर देखते हैं कि उत्कृष्टता को व्यवहार में उतारने के लिए जिस साहस की आवश्यकता है, उसे वे जुटा नहीं पाते। सोचते बहुत हैं, पर करने का समय आता है तो बगलें झाँकने लगते हैं। यदि ऐसा न होता तो अब तक अपने ही परिवार में से इतनी प्रतिभाएँ निकल पड़तीं जो कम से कम भारत भूमि को नर-रत्नों की खदान होने का श्रेय पुनः दिला देतीं।
स्मरण रखा जाय हम चरित्र निष्ठा और समाज निष्ठा का आन्दोलन करने चले हैं। यह लेखनी या वाणी से नहीं, उपदेशकों की व्यक्तिगत चरित्र निष्ठा में से ही संभव होगा। उसमें कमी पड़ी तो बकझक, विडम्बना भले ही होती रहे, लक्ष्य की दिशा में एक कदम भी बढ़ सकना संभव न होगा। हममें से अग्रिम पंक्ति में जो भी खड़े हों, उन्हें अपने तथा अपने साथियों के संबंध में अत्यन्त पैनी दृष्टि रखनी चाहिए कि आदर्शवादी चरित्र निष्ठा में कहीं कोई कमी तो नहीं आ रही है। यदि आ रही हो तो उसका तत्काल पूरे साहस के साथ उन्मूलन करना चाहिए और यही हमारी स्पष्ट नीति रहनी चाहिए।
गायत्री परिवार में बुद्धिमानों की, भावनाशीलों की, प्रतिभावनों की, साधना संपन्नों की कमी नहीं, पर देखते हैं कि उत्कृष्टता को व्यवहार में उतारने के लिए जिस साहस की आवश्यकता है, उसे वे जुटा नहीं पाते। सोचते बहुत हैं, पर करने का समय आता है तो बगलें झाँकने लगते हैं। यदि ऐसा न होता तो अब तक अपने ही परिवार में से इतनी प्रतिभाएँ निकल पड़तीं जो कम से कम भारत भूमि को नर-रत्नों की खदान होने का श्रेय पुनः दिला देतीं।
स्मरण रखा जाय हम चरित्र निष्ठा और समाज निष्ठा का आन्दोलन करने चले हैं। यह लेखनी या वाणी से नहीं, उपदेशकों की व्यक्तिगत चरित्र निष्ठा में से ही संभव होगा। उसमें कमी पड़ी तो बकझक, विडम्बना भले ही होती रहे, लक्ष्य की दिशा में एक कदम भी बढ़ सकना संभव न होगा। हममें से अग्रिम पंक्ति में जो भी खड़े हों, उन्हें अपने तथा अपने साथियों के संबंध में अत्यन्त पैनी दृष्टि रखनी चाहिए कि आदर्शवादी चरित्र निष्ठा में कहीं कोई कमी तो नहीं आ रही है। यदि आ रही हो तो उसका तत्काल पूरे साहस के साथ उन्मूलन करना चाहिए और यही हमारी स्पष्ट नीति रहनी चाहिए।
✍🏻 पं श्रीराम शर्मा आचार्य
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