पूर्ण के प्रतिनिधि ‘गुरु’ हैं, बताती गुरुपूर्णिमा। सृजन पोषण और रक्षण में, निरत तप-साधना
‘गुरु’ ब्रह्मा, विष्णु, शिव हैं अर्चना कर लीजिये। ‘पूर्ण’ की गुरु-पूर्णिमा पर धारणा कर लीजिये॥2॥
शिष्य-अनगढ़ को बनाती सुगढ़, उनकी साधना। स्नेह का अमृत पिलाती, भव्य उनकी भावना॥
अमंगल के शत्रु-शिव की साधना कर लीजिये। ‘पूर्ण’ की गुरु-पूर्णिमा पर धारणा कर लीजिये॥3॥
काटते अज्ञान-तम को, ज्ञान-गुरुता से सदा-ज्ञान-किरणें प्रस्फुटित हैं, देव-सविता से सदा॥
ज्योति के चिरपुँज की आराधना की लीजिये। ‘पूर्ण’ की गुरु-पूर्णिमा पर धारणा कर लीजिये॥4॥
ग्रसित हो अज्ञान-तम से, भटकती है मनुजता। दाँव ऐसे में लगाती है मनुज पर, दनुजता॥
मनुजता की मुक्ति की संवेदना कर लीजिये। ‘पूर्ण’ की गुरु-पूर्णिमा पर धारणा कर लीजिये॥5॥
प्रज्वलित कर प्राण-दीपक ज्योति को चिरपुँज से। शाँति का संदेश लेकर, शाँति के गुरु-कुँज से॥
अमावस्या को पतन की, पूर्णिमा कर लीजिये॥ ‘पूर्णिमा’ की गुरु-पूर्णिमा पर धारणा कर लीजिये॥6॥
ज्ञानमय की ले मशालें, सँवारें उज्ज्वल-भविष्य-लोक मंगल-यज्ञ में गुरुदक्षिणा में दे हविष्य।
गुरुकृपा से ‘स्वर्ग’ की अवतरण कर लीजिये। ‘पूर्ण’ की गुरु-पूर्णिमा पर धारणा कर लीजिये॥7॥
- मंगल विजय ‘विजय वर्गीय’
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