शुक्रवार, 18 अगस्त 2017

👉 हमारा युग निर्माण सत्संकल्प (भाग 45)

🌹  मनुष्य के मूल्यांकन की कसौटी उसकी सफलताओं, योग्यताओं एवं विभूतियों को नहीं, उसके सद्विचारों और सत्कर्मों को मानेंगे।

🔴 दूसरों को सन्मार्ग पर चलाने का, कुमार्ग की ओर प्रोत्साहित करने का एक बहुत बड़ा साधन हमारे पास मौजूद है, वह है आदर और अनादर। जिस प्रकार वोट देना एक छोटी घटना मात्र है, पर उसका परिणाम दूरगामी होता है उसी प्रकार आदर के प्रकटीकरण का भी दूरगामी परिणाम संभव है। थोड़े से वोट चुनाव संतुलन को इधर से उधर कर सकते हैं और उस चुने हुए व्यक्ति का व्यक्तित्व किसी महत्त्वपूर्ण स्थान पर पहुँचकर राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय क्षेत्रों में अप्रत्याशित भूमिका संपन्न कर सकता है। थोड़े से वोट व्यापक क्षेत्र में अपना प्रभाव दिखा सकते हैं और अनहोनी संभावनाएँ साकार बना सकते हैं, उसी प्रकार हमारी आदर बुद्धि यदि विवेकपूर्ण भूमिका प्रस्तुत करे तो कितने ही कुमार्ग पर बढ़ते हुए कदम रुक सकते हैं और कितने ही सन्मार्ग की ओर चलते हुए झिझकने वाले पथिक प्रेरणा और प्रोत्साहन पाकर उस दिशा में तत्परतापूर्वक अग्रसर हो सकते हैं।
 
🔵 जिन लोगों ने बाधाओं को सहते हुए भी अपने जीवन में कुछ आदर्श उपस्थित किए हैं, उनका सार्वजनिक सम्मान होना चाहिए, उनकी प्रशंसा मुक्तकंठ से की जानी चाहिए और जो लोग निंदनीय मार्गों द्वारा उन्नति कर रहे हैं, उनकी प्रशंसा एवं सहायता किसी भी रूप में नहीं करनी चाहिए। अवांछनीय कार्यों में सम्मिलित होना भी एक प्रकार से उन्हें प्रोत्साहन देना ही है क्योंकि श्रेष्ठ पुरुषों की उपस्थिति मात्र से लोग कार्य में उनका समर्थन मान लेते हैं और फिर स्वयं भी उनका सहयोग करने लगते हैं। इस प्रकार अनुचित कार्यों में हमारा प्रत्यक्ष और परोक्ष समर्थन अंततः उन्हें बढ़ाने वाला ही सिद्ध होता है।   
    
🔴 हमें मनुष्य का मूल्यांकन उसकी सफलताओं एवं विभूतियों से नहीं वरन् उस नीति और गतिविधि के आधार पर करना चाहिए, जिसके आधार पर वह सफलता प्राप्त की गई। बेईमानी से करोड़पति बना व्यक्ति भी हमारी दृष्टि में तिरस्कृत होना चाहिए और वह असफल और गरीब व्यक्ति जिसने विपन्न परिस्थितियों में भी जीवन के उच्च आदर्शों की रक्षा की, उसे प्रशंसा, प्रतिष्ठा, सम्मान और सहयोग सभी कुछ प्रदान किया जाना चाहिए।

🔵 यह याद रखने की बात है कि जब तक जनता का, निंदा- प्रशंसा का, आदर- तिरस्कार का मापदण्ड न बदलेगा, तब तक अपराधी मूँछों पर ताव देकर अपनी सफलता पर गर्व करते हुए दिन- दिन अधिक उच्छृंखलता होते चलेंगे और सदाचार के कारण सीमित सफलता या असफलता प्राप्त करने वाले खिन्न और निराश रहकर सत्पथ से विचलित होने लगेंगे। युग- निर्माण सत्संकल्प में यह प्रबल प्रेरणा प्रस्तुत की गई है कि हम मनुष्य के मूल्यांकन की कसौटी उसकी सफलताओं एवं विभूतियों को नहीं सज्जनता और आदर्शवादिता को ही रखें।
 
🌹 क्रमशः जारी
🌹 पं श्रीराम शर्मा आचार्य
http://literature.awgp.org/book/ikkeesaveen_sadee_ka_sanvidhan/v1.62

http://literature.awgp.org/book/ikkeesaveen_sadee_ka_sanvidhan/v2.10

👉 अपना मूल्य, आप ही न गिरायें (भाग 1)

🔵 अनेक लोगों का स्वभाव होता है कि वे अपने को अकारण ही दीन-हीन और क्षुद्र समझा करते हैं। सदैव ही अपना कम मूल्याँकन किया करते हैं। साथ ही इसे एक आध्यात्मिक गुण मानते हैं। उनका विचार रहता है कि ‘‘अपने को छोटा मानते रहने से, अपना महत्व कम करते रहने से मनुष्य अहंकार के पाप से बच जाता है। उसकी आत्मा में बड़ी शाँति और संतोष रहता है। यह एक विनम्रता है। छोटे बन कर चलने वाले समाज में बड़ा बड़प्पन पाते हैं।

🔴 यह विचार यथार्थ नहीं। मनुष्य को संसार में वही मूल्य और वही महत्व मिलता है, जो वह स्वयं अपने लिए आंकता है। उससे कम तो मिल सकता है लेकिन अधिक नहीं। सीधी-सी बात है कि जब कोई व्यक्ति स्वयं ही अपनी किसी वस्तु का एक पैसा मूल्य आँकता है तो समाज अथवा संसार को क्या गरज पड़ी कि वह उसका दो पैसा मूल्य लगाये। बाजारों में किसी समय भी मूल्याँकन की वह रीति देखी जा सकती है। जो दुकानदार अपनी किसी वस्तु का एक निश्चित मूल्याँकन कर लेता है और यह विश्वास रखता है कि उसकी वस्तु का उचित मूल्य यही है, जो समाज से अवश्य मिलेगा, तो वह उतना पाने में सफल भी हो जाता है।

🔵 यदि कोई उसके बतलाये मूल्य का अवमूल्यन भी करता है तो वह उससे सहमत नहीं होता। इसके विपरीत वह दुकानदार जो कहने-सुनने पर अपने बतलाये मूल्य को कम कर देता है कभी भी ठीक मूल्य नहीं पाता और उसी मूल्य पर संतोष करना पड़ता है जो ग्राहक से मिलता है।

🌹 क्रमशः जारी
🌹 ~पं श्रीराम शर्मा आचार्य
🌹 अखण्ड ज्योति जुलाई 1968 पृष्ठ 29

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