🔶 उत्कृष्ट या निकृष्ट जीवन यथार्थतः मनुष्य के विचारों पर निर्भर है। कर्म हमारे विचारों के रूप हैं। जिस बात की मन में प्रतिक्रिया उत्पन्न होती है, वह अपनी पसन्द या दृढ़ इच्छा के कारण गहरी नींव पकड़ लेती है, उसी के अनुसार बाह्य जीवन का निर्माण होने लगता है।
🔷 संसार में कोई भी वस्तु ऐसी दुर्लभ नहीं है जिसे आप प्राप्त न कर सकते हों, पर इसके लिये आपका हृदय परमात्मा जितना विशाल होना चाहिये। आपको अपनी आत्म-स्थिति घुलाकर परमात्मा के साथ तादात्म्य की अवस्था बनाने में देर है। इतना उदार दृष्टिकोण आप का हुआ कि सारी धरती पर आपका अधिकार हुआ। सबको प्यार कीजिये, सब आपके हैं, जी चाहे जहाँ विचरण कीजिये, सारी धरती आपके पिता परमात्मा की है। सबको अपना समझने, सबको पवित्र दृष्टि से देखने, जीव मात्र के प्रति प्रेम और आत्मीयता का व्यवहार करने से आप यह उत्तराधिकार पा सकेंगे।
🔶 कमजोरी और कायरता का कारण लोगों में सही दृष्टिकोण का अभाव है। मनुष्य शरीर के अभिमान में पड़कर आत्मा के वास्तविक स्वरूप को भूल जाने के कारण ही व्यवहार में इतना संकीर्ण हो रहा है। जाति-पाँति, भाषा-भाव के भेद के कारण हमने पारस्परिक विलगाव पैदा कर लिया है, इसी से हम छोटे हैं, हमारी शक्तियाँ अल्प हैं। किन्तु जब आत्म-ज्ञान प्राप्त कर लेते हैं तो संसार का स्वरूप ही बदल जाता है। भेदभाव की नासमझी निजत्व के ज्ञान के प्रकाश में मिट जाती हैं। सब अपने ही समान, अपने ही भाई और एक ही परमात्मा के अंश होंगे तो फिर किसी के साथ धृष्टता करने का साहस किस तरह पैदा होगा।
🔷 संसार में कोई भी वस्तु ऐसी दुर्लभ नहीं है जिसे आप प्राप्त न कर सकते हों, पर इसके लिये आपका हृदय परमात्मा जितना विशाल होना चाहिये। आपको अपनी आत्म-स्थिति घुलाकर परमात्मा के साथ तादात्म्य की अवस्था बनाने में देर है। इतना उदार दृष्टिकोण आप का हुआ कि सारी धरती पर आपका अधिकार हुआ। सबको प्यार कीजिये, सब आपके हैं, जी चाहे जहाँ विचरण कीजिये, सारी धरती आपके पिता परमात्मा की है। सबको अपना समझने, सबको पवित्र दृष्टि से देखने, जीव मात्र के प्रति प्रेम और आत्मीयता का व्यवहार करने से आप यह उत्तराधिकार पा सकेंगे।
🔶 कमजोरी और कायरता का कारण लोगों में सही दृष्टिकोण का अभाव है। मनुष्य शरीर के अभिमान में पड़कर आत्मा के वास्तविक स्वरूप को भूल जाने के कारण ही व्यवहार में इतना संकीर्ण हो रहा है। जाति-पाँति, भाषा-भाव के भेद के कारण हमने पारस्परिक विलगाव पैदा कर लिया है, इसी से हम छोटे हैं, हमारी शक्तियाँ अल्प हैं। किन्तु जब आत्म-ज्ञान प्राप्त कर लेते हैं तो संसार का स्वरूप ही बदल जाता है। भेदभाव की नासमझी निजत्व के ज्ञान के प्रकाश में मिट जाती हैं। सब अपने ही समान, अपने ही भाई और एक ही परमात्मा के अंश होंगे तो फिर किसी के साथ धृष्टता करने का साहस किस तरह पैदा होगा।
✍🏻 पं श्रीराम शर्मा आचार्य
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