जीवन एक समझौता है, सिर उठाकर चलने में सिर कटने का खतरा है। जो पेड़ अकड़े खड़े रहते हैं वे ही आँधी से उखड़ते देखे गये हैं। बेंत की बेल जो सदा झुकी रहती है हर आँधी तूफान से बच जाती है। धरती पर उगी हुई घास को देखो वह आँधी से टकराती नहीं वरन हवा चलने पर उसी दिशा में मुझ जाती है जिधर को हवा का रुख होता है। इस परिस्थिति का परखने वाली घास का कोई आँधी तूफान कुछ बिगाड़ नहीं सकता।
नवकर चलो। मत कहो कि हमीं सही है और हमारी बात सब को माननी चाहिए। मत समझो कि तुम्हीं सबसे श्रेष्ठ निर्दोष और बुद्धिमान हो। दूसरे लोग भी अपने दृष्टिकोण के अनुसार सही हो सकते है और हो सकता है जिन परिस्थितियों में वे रहे है उनमें उनके लिए वैसा ही सोचना, बनना, करना भी स्वाभाविक हो। इसलिए दूसरों को समझने की कोशिश करो। उनके दृष्टि कोण की, उनकी परिस्थितियों की भिन्नता को स्वीकार करो।
इस दुनियाँ का सारा कारोबार एक दूसरे को समझने और सहन करने की नींव पर ठहरा हुआ है। समझौता ही जीवन का प्रधान आधार है। यदि तुम अड़ियल और जिद्दी बनकर अपने ही मत की श्रेष्ठता प्रतिपादन करते रहोगे तो कुछ ही दिन में अपने को अकेला पड़ा हुआ और असफलता के गर्त में गिरता हुआ पाओगे।
✍🏻 ~ पं श्रीराम शर्मा आचार्य
📖 अखण्ड ज्योति 1961 जून Page 23
नवकर चलो। मत कहो कि हमीं सही है और हमारी बात सब को माननी चाहिए। मत समझो कि तुम्हीं सबसे श्रेष्ठ निर्दोष और बुद्धिमान हो। दूसरे लोग भी अपने दृष्टिकोण के अनुसार सही हो सकते है और हो सकता है जिन परिस्थितियों में वे रहे है उनमें उनके लिए वैसा ही सोचना, बनना, करना भी स्वाभाविक हो। इसलिए दूसरों को समझने की कोशिश करो। उनके दृष्टि कोण की, उनकी परिस्थितियों की भिन्नता को स्वीकार करो।
इस दुनियाँ का सारा कारोबार एक दूसरे को समझने और सहन करने की नींव पर ठहरा हुआ है। समझौता ही जीवन का प्रधान आधार है। यदि तुम अड़ियल और जिद्दी बनकर अपने ही मत की श्रेष्ठता प्रतिपादन करते रहोगे तो कुछ ही दिन में अपने को अकेला पड़ा हुआ और असफलता के गर्त में गिरता हुआ पाओगे।
✍🏻 ~ पं श्रीराम शर्मा आचार्य
📖 अखण्ड ज्योति 1961 जून Page 23