सोमवार, 10 जून 2019

👉 The Absolute Law Of Karma (Part 23)

WHO ARE YOU?

Each individual has different identities for different roles in life. This identity depends on the relationship with the person with whom he/she interacts. For mother he/she may be an object of maternal affection, for father an obedient child, for the teacher an intelligent pupil and for friends a dependable good-humoured buddy. Wife looks at a man as her beloved darling, whereas his son relates to him as his father. The same person appears to his enemy as an adversary; to the shopkeeper as a customer; to the servant as a master; to the horse as a rider; to the caged bird as the jailor. Bed bugs and mosquitoes find him as nothing else but a source of delicious blood. If one could visualize the various mental images, which people have for an individual, it would be found that each person has one’s own peculiar concept and none of these conform to the other. Besides, none of these images identifies the whole individual accurately.

Everyone conceptualizes an individual according to the particular bend with which they are mutually related to each other. It is even more amusing that man himself lives confused in his multi-personal bends. Throughout life he lives with multiple self-identifications. Various thoughts like “I am an adulterer”; “I am wealthy”; “I am old”; “I have no family”; “I am ugly”; “I am popular”; “I am unhappy”; “I am surrounded by vile persons”;……….keep on changing and churning his ideosphere. As other persons form an image about an individual according to their interests, the individual too builds an eccentric lop-sided image of himself based on perceptions of his sense organs. Like a drugged person he keeps on hallucinating in his numerous momentary identities. If he could truly identify with his own inner self, he would be surprised to know how far he has strayed away from Truth. (Read, “What am I” by the author).

Man always lives in a make-believe world created by his own imagination. In this dream world, one man builds castles in the air, the other fights with the windmills like Don Quixote and yet other derives pleasure of embracing and kissing his beloved while fondling his pet dog. Deluded by ignorance, we are all hallucinating in an imaginary world. One thinks that he is living in a palace.

The other trembles because of imaginary fears. Yet another daydreams of being engaged to the most beautiful damsel in the world. Some insane person is found rejoicing in showing off wealth and ‘kingdom’. This world is like a mental asylum where we find all types of mad caps. Each has one’s own eccentricity. Everyone considers himself as the most intelligent person. Go to a mental asylum and observe the fantasies of the long-term inmates. You will find a close parallel to the daydreamers of this world, who very much consider themselves as sane and sober.

.... to be continue
✍🏻 Pt. Shriram Sharma Acharya
📖 The Absolute Law Of Karma Page 40-41

👉 Bapu Roti Laya बापू रोटी लाया...

डाइनिंग टेबल पर खाना देखकर बच्चा भड़का, फिर वही सब्जी, रोटी और दाल में तड़का...? मैंने कहा था न कि मैं पिज्जा खाऊंगा, रोटी को बिलकुल हाथ नहीं लगाउंगा! बच्चे ने थाली उठाई और बाहर गिराई...

बाहर थे कुत्ता और आदमी, दोनों रोटी की तरफ लपके.. कुत्ता आदमी पर भोंका, आदमी ने रोटी में खुद को झोंका और हाथों से दबाया.. कुत्ता कुछ भी नहीं समझ पाया उसने भी रोटी के दूसरी तरफ मुहं लगाया..

दोनों भिड़े जानवरों की तरह एक तो था ही जानवर, दूसरा भी बन गया था जानवर.. आदमी ज़मीन पर गिरा, कुत्ता उसके ऊपर चढ़ा कुत्ता गुर्रा रहा था और अब आदमी कुत्ता है या कुत्ता आदमी है कुछ भी नहीं समझ आ रहा था...

नीचे पड़े आदमी का हाथ लहराया, हाथ में एक पत्थर आया कुत्ता कांय-कांय करता भागा.. आदमी अब जैसे नींद से जागा हुआ खड़ा और लड़खड़ाते कदमों से चल पड़ा.... वह कराह रहा था रह-रह कर हाथों से खून टपक रहा था बहते खून के साथ ही आदमी एक झोंपड़ी पर पहुंचा..

झोंपड़ी से एक बच्चा बाहर आया और ख़ुशी से चिल्लाया.. आ जाओ, सब आ जाओ बापू रोटी लाया, देखो बापू रोटी लाया, देखो बापू रोटी लाया..

👉 आज का सद्चिंतन10 June 2019


👉 प्रेरणादायक गायत्री मंत्र की महिमा


👉 अध्यात्म से मानव-जीवन का चरमोत्कर्ष (भाग 3)

वरदायी अथवा अलौकिक ऐश्वर्य का आधार अध्यात्म सामान्य उपासना मात्र नहीं है। उसका क्षेत्र आत्मा के सूक्ष्म संस्थानों की साधना है। उन शक्तियों के प्रबोधन की प्रक्रिया है, जो मनुष्य के अन्तःकरण में बीज रूप में सन्निहित रहती है। आत्मिक अध्यात्म के उस क्षेत्र में एक से एक बढ़कर सिद्धियाँ एवं समृद्धियाँ भरी पड़ी है। किन्तु उनकी प्राप्ति तभी सम्भव है, जब मन, बुद्धि, चित, अहंकार से निर्मित अन्तःकरण पंचकोशों, छहों चक्रों, मस्तिष्कीय ब्रह्म-रन्ध्र में अवस्थित कमल, हृदय स्थित सूर्यचक्र, नाभि की ब्रह्म-ग्रन्थि और मूलाधार वासिनी कुण्डलिनी आदि के शक्ति संस्थानों और कोश-केन्द्रों को प्रबुद्ध, प्रयुक्त और अनुकूलता पूर्वक निर्धारित दिशा में सक्रिय बनाया जा सके। यह बड़ी गहन, सूक्ष्म और योग साध्य तपस्या है। जन्म-जन्म से तैयारी किए हुये कोई बिरले ही यह साधना कर पाते है और अलौकिक सिद्धियों को प्राप्त करते है। यह साधना न सामान्य है और न सर्वसाधारण के वश की।

तथापि असम्भव भी नहीं है। एक समय था, जब भारतवर्ष में अध्यात्म की इस साधना पद्धति का पर्याप्त प्रचलन रहा। देश का ऋषि वर्ग उसी समय की देन है। जो-जो पुरुषार्थी इस सूक्ष्म साधना को पूरा करते गये, वे ऋषियों की श्रेणी में आते गये। यद्यपि आज इस साधना के सर्वथा उपयुक्त न तो साधन है और न समय, तथापि वह परम्परा पूरी तरह से उठ नहीं गई है। अब भी यदाकदा, यत्र-तत्र इस साधना के सिद्ध पुरुष देखे सुने जाते है। किन्तु इनकी संख्या बहुत विरल है। वैसे योग का स्वांग दिखा कर और सिद्धों का वेश बनाकर पैसा कमाने वाले रगें सियार तो बहुत देखे जाते है। किन्तु उच्च स्तरीय अध्यात्म विद्या की पूर्वोक्त वैज्ञानिक पद्धति से सिद्धि की दिशा में अग्रसर होने वाले सच्चे योगी नहीं के बराबर ही है। जिन्होंने साहसिक तपस्या के बल पर आत्मा की सूक्ष्म शक्तियों को जागृत कर प्रयोग योग्य बना लिया होता है, वे संसार के मोह जाल से दूर प्रायः अप्रत्यक्ष ही रहा करते है। शीघ्र किसी को प्राप्त नहीं होते और पुण्य अथवा सौभाग्य से जिसको मिल जाते है, उसका जीवन उनके दर्शनमात्र से ही धन्य हो जाता है।

इतनी बड़ी तपस्या को छोटी-मोटी साधना अथवा थोड़े से कर्मकाण्ड द्वारा पूरी कर लेने की आशा करने वाले बाल-बुद्धि के व्यक्ति ही माने जायेंगे। यह उच्च स्तरीय आध्यात्मिक साधना शीघ्र पूरी नहीं की जा सकती। स्तर के अनुरूप ही पर्याप्त समय, धैर्य, पुरुषार्थ एवं शक्ति की आवश्यकता होती है। इस आवश्यकता की पूर्ति धीरे धीरे अपने बाह्य जीवन के परिष्कार से प्रारम्भ होती है। बाह्य की उपेक्षा कर सहसा है, जिसमें सफलता की आशा नहीं की जा सकती।

.... क्रमशः जारी
✍🏻 पं श्रीराम शर्मा आचार्य
📖 अखण्ड ज्योति जनवरी 1969 पृष्ठ 9

http://literature.awgp.org/akhandjyoti/1969/January/v1.9

👉 आध्यात्मिक चिकित्सा एक समग्र उपचार पद्धति (भाग 11)

👉 मानवी जीवन आध्यात्मिक रहस्यों से भरा

अपनी इस अनुभूति के बाद उन्होंने कहा- आइन्स्टीन का सूत्र E=mc2 वैज्ञानिक ही नहीं आध्यात्मिक सूत्र भी है। आध्यात्मिक अनुभव भी यही कहता है कि पदार्थ और ऊर्जा आपस में रूपान्तरित होते हैं। मानव जीवन भी इसी रूपान्तरण का परिणाम है। जिसे हम देह, प्राण एवं मन, अन्तःकरण एवं अन्तरात्मा के संयोग से बना व्यक्तित्व कहते हैं वह दरअसल कुछ विशिष्ट ऊर्जा तरंगों का सुखद संयोग है। कर्म, इच्छा एवं भावना के अनुसार इन ऊर्जा तरंगों में न्यूनता व अधिकता होती रहती है। स्थिति में होने वाले इस परिवर्तन के लिए वर्तमान जीवन के साथ अतीत में किए गए कर्म, इच्छाएँ व भावनाएँ जिम्मेदार होती हैं।

इन्हीं की उपयुक्त एवं अनुपयुक्त स्थिति के अनुसार जीवन में सुखद एवं दुःखद परिवर्तन आते हैं। किसी विशिष्ट ऊर्जा तरंग की न्यूनता जब जीवन में होती है, तो स्वास्थ्य, मानसिक स्थिति, पारिवारिक एवं सामाजिक परिस्थिति में तदानुरूप परिवर्तन आ जाते हैं। इस स्थिति को तप, योग, मंत्रविद्या आदि प्रयासों से ठीक भी किया जा सकता है। सत्प्रेम ने ये सभी प्रयोग एक वैज्ञानिक की भाँति किए। साथ ही उन्होंने अपने निष्कर्षों को लिपिबद्ध भी किया। जो भी मानव जीवन के आध्यात्मिक रहस्यों को विस्तार से जानना चाहते हैं उनके लिए सत्प्रेम की रचनाएँ मार्गदर्शक प्रदीप की भाँति हैं।

प्रयोगिक निष्कर्ष के क्रम में उन्होंने सबसे पहले ‘श्री अरविन्द ऑर द एडवेन्चर ऑफ कॉन्शसनेस’ लिखा। इसके कुछ ही बाद उन्होंने ‘ऑन द वे ऑफ सुपरमैनहुड’ प्रकाशित किया। श्री मां के संग साथ की अनुभूतियों को उन्होंने ‘मदर्स एजेण्डा’ के १३ खण्डों में लिखा। इसके बाद ‘द डिवाइन मैटीरियलिज़्म,’ ‘द न्यू स्पेसीज़, द म्यूटेशन ऑफ डेथ’ की एक ग्रन्थ त्रयी लिखी। इसके बाद ‘द माइण्ड ऑफ सेल्स’ प्रकाश में आया। सन् १९८९ में अपनी साधना कथा को ‘द रिवोल्ट ऑफ अर्थ’ नाम से प्रकाशित किया।
सत्प्रेम ने अपना सम्पूर्ण जीवन मानव जीवन के आध्यात्मिक रहस्यों की खोज में बिताया। एक गम्भीर वैज्ञानिक की भाँति उन्होंने अपने शोध निष्कर्ष प्रस्तुत किए। सार रूप में उनके निष्कर्षों के बारे में दो बातें कही जा सकती हैं-

१. हम सभी, सृष्टि एवं स्रष्टा के साथ एक दूसरे से गहराई में गुँथे हैं।
२. कर्म चक्र ही हम सबके जीवन को प्रवर्तित, परिवर्तित कर रहा है।

इन दो बातों के साथ दो बातें और भी हैं- १. इच्छा, संकल्प, साहस एवं श्रद्धा के द्वारा हम सभी अपनी अनन्त शक्तियों को जाग्रत् कर सकते हैं। २. आध्यात्मिक चिकित्सा ही मानव व्यक्तित्व का एक मात्र समाधान है। इसे आस्तिकता के अस्तित्त्व में अनुभव किया जा सकता है।

.... क्रमशः जारी
✍🏻 डॉ. प्रणव पण्ड्या
📖 आध्यात्मिक चिकित्सा एक समग्र उपचार पद्धति पृष्ठ 16

👉 Motivational Story

A wandering monk once visited the city of Mithila, ruled by the Sage King Janaka. “Who is the best teacher around here?” He asked around. To his surprise every spiritual person around referred to him the name of King Janaka. The monk was both puzzled and furious. “How can a King be spiritually that high? These people don’t know what true spirituality is.” he thought.

He went to the King and asked him “O King, learned people around here, speak highly of you, how can you a worldly man of pleasures be more spiritual than those who have given up their everything for the sake of knowing the highest truth?” “Dear one, you have come from a far place, you must have been tired. Let’s eat and rest for the day, we can discuss further tomorrow.”
The King took him to the royal dinner table, fed him variety of foods, and pleased his palates. He took him to a spacious room and told him to rest there.

There was a huge sword hung from the ceiling, hanging just above the bed. “What is this?” asked the monk. “Oh don’t mind it, it has been there for ages, it is an old custom, just have a good sleep. See you in the morning.” said the King and rushed out hurriedly.

The monk was worried that the sword might fall on him and kill him during the night; he couldn’t close his eyes even if he tried.
The king met him the next day, “Sir, how was the night. I hope you slept well” asked the King.

“How could I sleep? there was a huge sword hanging on my neck.” monk explained his trouble.

“When one knows death is certain, how the pleasures of world can sway him away, how can the worldly duties ever limit his eyes from the supreme goal?” said the King answering the Monk’s earlier question.

👉 प्रेरणादायक प्रसंग 30 Sep 2024

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