🔶 क्या किताब ने यह क्रान्ति की? अरे किताब नहीं, दर्शन। किताब की बात नहीं कहता मैं आपसे। मैं कहता हूँ दर्शन। दर्शन अलग चीज है। विचार बेहूदगी का नाम है जो अखबारों में, नॉवेलों में, किताबों में छपता रहता है। विचार हमेशा आदमी के दिमाग पर छाया रहता है। कभी खाने-कमाने का, कभी खेती-बाड़ी का, कभी बदला लेने का यही विचार मन पर छाया रहता है और दर्शन, वह आदमी के अन्तरंग से ताल्लुक रखता है। जो सारे समाज को एक दिशा में कहीं घसीट ले जाने का काम करता है, उसको दर्शन कहते हैं। आदमी की जिन्दगी में, उसकी संस्कृति में सबसे मूल्यवान चीज का नाम है—दर्शन।
🔷 हिन्दुस्तान की तारीख में जो विशेषता है आदमी के भीतर का भगवान् क्या जिन्दा है, यह किसने पैदा किया? दर्शन ने। इतने ऋषि, इतने महामानव, इतने अवतार किसने पैदा कर दिए? यह है दर्शन जो आदमी को हिला देता है, ढाल देता है, गला देता है, बदल देता है। हमारी दौलत नहीं, दर्शन शानदार रहा है। हमारी आबो-हवा नहीं, शिक्षा नहीं, दर्शन बड़ा शानदार रहा है। इसी ने आदमियों को ऐसा शानदार बना दिया कि यह मुल्क देवताओं का देश कहलाया जाने लगा। दूसरी उपमा स्वर्ग से दी जाने लगी। स्वर्ग कहाँ रहेगा? जहाँ देवता रहेंगे। देवता ही स्वर्ग पैदा करते हैं।
🔶 इमर्सन ने बहुत सारी किताबें लिखी हैं और प्रत्येक किताब के पहले पन्ने पर लिखा है ‘‘मुझे नरक में भेज दो मैं वहीं स्वर्ग बनाकर दिखा दूँगा।’’ यह है दर्शन। आज की स्थिति हम क्या कहें मित्रो! हम सबके दिमाग पर एक घिनौना तरीका, छोटा वाला तरीका, नामाकूल तरीका हावी हो गया है। हमारे सोचने का तरीका इतना वाहियात कि सारी जिन्दगी को हमने, हीरे-मोती जैसी जिन्दगी को हमने खत्म कर डाला। आदमी की ताकत, विचारों की ताकत को हमने तहस-नहस कर दिया। हमें कोढ़ी बना दिया। कसूर किसका है? सिर्फ एक ही कमी है, वह है आदमी का दर्शन। वह कमजोर हो गया है।
....क्रमशः जारी
✍🏻 पं श्रीराम शर्मा आचार्य (अमृतवाणी)