रविवार, 19 नवंबर 2017

👉 शोभा


🔶 सुकरात ज्ञान चर्चा में लगे हुए थे कि एक उजड्ड ईर्ष्यालु ने उनकी पीठ पर लात मारी और वे औंधे मुँह गिर पड़े।

🔷 अपने को सँभाल कर सुकरात उठे और बात जहाँ से छूटी थी वहीं से फिर कहानी आरंभ कर दी।

🔶 अपमान का कुछ भी ख्याल न करते देख- उपस्थित लोगों ने कहा - इस दुष्ट को सजा क्यों न दी जाय?

🔷 सुकरात ने कहा- कोई गधा हमें लात मार दे तो क्या हमारे लिए यह शोभा की बात होगी कि हम भी उसे लात मारें ?

👉 हृदय का संस्कार

🔷 बुद्धि का संस्कार करना उचित है। पर हृदय का संस्कार करना तो नितान्त आवश्यक है। बुद्धिमान और विद्वान बनने से मनुष्य अपने लिए धन और मान प्राप्त कर सकता है। पर नैतिक दृष्टि से वह पहले दर्जे का पतित भी हो सकता है। आत्मा को ऊँचा उठाना और मानवता के आदर्शों पर चलने के लिए प्रकाश प्राप्त करना हृदय के विकास पर ही निर्भर है। बुद्धि हमें तर्क करना सिखाती है और आवश्यकताओं की पूर्ति का साधन खोजती है। जैसी आकाँक्षा और मान्यता होती है उसके अनुरूप दलील खोज निकालना भी उसका काम है पर धर्म कर्तव्यों की ओर चलने की प्रेरणा हृदय से ही प्राप्त होती है।

🔶 जब कभी बुद्धि और हृदय में मतभेद हो, दोनों अलग अलग मार्ग सुझाते हो तो हमें सदा हृदय का सम्मान और बुद्धि का तिरस्कार करना चाहिए। बुद्धि धोखा दे सकता है पर हृदय के दिशासूचक यंत्र (कुतुबनुमा) की सुई सदा ठीक ही दिशा के लिए मार्ग दर्शन करेगी।

📖 अखण्ड ज्योति जून 1961

👉 युग-मनीषा जागे, तो क्रान्ति हो (भाग 2)

🔶 क्या किताब ने यह क्रान्ति की? अरे किताब नहीं, दर्शन। किताब की बात नहीं कहता मैं आपसे। मैं कहता हूँ दर्शन। दर्शन अलग चीज है। विचार बेहूदगी का नाम है जो अखबारों में, नॉवेलों में, किताबों में छपता रहता है। विचार हमेशा आदमी के दिमाग पर छाया रहता है। कभी खाने-कमाने का, कभी खेती-बाड़ी का, कभी बदला लेने का यही विचार मन पर छाया रहता है और दर्शन, वह आदमी के अन्तरंग से ताल्लुक रखता है। जो सारे समाज को एक दिशा में कहीं घसीट ले जाने का काम करता है, उसको दर्शन कहते हैं। आदमी की जिन्दगी में, उसकी संस्कृति में सबसे मूल्यवान चीज का नाम है—दर्शन।
            
🔷 हिन्दुस्तान की तारीख में जो विशेषता है आदमी के भीतर का भगवान् क्या जिन्दा है, यह किसने पैदा किया? दर्शन ने। इतने ऋषि, इतने महामानव, इतने अवतार किसने पैदा कर दिए? यह है दर्शन जो आदमी को हिला देता है, ढाल देता है, गला देता है, बदल देता है। हमारी दौलत नहीं, दर्शन शानदार रहा है। हमारी आबो-हवा नहीं, शिक्षा नहीं, दर्शन बड़ा शानदार रहा है। इसी ने आदमियों को ऐसा शानदार बना दिया कि यह मुल्क देवताओं का देश कहलाया जाने लगा। दूसरी उपमा स्वर्ग से दी जाने लगी। स्वर्ग कहाँ रहेगा? जहाँ देवता रहेंगे। देवता ही स्वर्ग पैदा करते हैं।
 
🔶 इमर्सन ने बहुत सारी किताबें लिखी हैं और प्रत्येक किताब के पहले पन्ने पर लिखा है ‘‘मुझे नरक में भेज दो मैं वहीं स्वर्ग बनाकर दिखा दूँगा।’’ यह है दर्शन। आज की स्थिति हम क्या कहें मित्रो! हम सबके दिमाग पर एक घिनौना तरीका, छोटा वाला तरीका, नामाकूल तरीका हावी हो गया है। हमारे सोचने का तरीका इतना वाहियात कि सारी जिन्दगी को हमने, हीरे-मोती जैसी जिन्दगी को हमने खत्म कर डाला। आदमी की ताकत, विचारों की ताकत को हमने तहस-नहस कर दिया। हमें कोढ़ी बना दिया। कसूर किसका है? सिर्फ एक ही कमी है, वह है आदमी का दर्शन। वह कमजोर हो गया है।

....क्रमशः जारी
✍🏻 पं श्रीराम शर्मा आचार्य (अमृतवाणी)

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