मंगलवार, 26 दिसंबर 2023

👉 आत्मचिंतन के क्षण Aatmchintan Ke Kshan 26 Dec 2023

यदि तुम एक विद्वान बनने की चेष्टा कर रहे हो तो अपने आपको एक विद्वान की ही भाँति रखो वैसा ही वातावरण एकत्रित करो, निराशा निकाल कर यह उम्मीद रखो कि मूर्ख कालिदास की भाँति हम भी महान बनेंगे। निराशा निकाल कर तुम इस एकटिंग को पूर्ण करने की चेष्टा करो। तुम अनुभव करो कि मैं विद्वान हूँ, सोचो कि मैं अधिकाधिक विद्वान बन रहा हूँ। मेरी विद्वता की निरंतर अभिवृद्धि हो रही है। तुम्हारे व्यवहार से लोगों को यह ज्ञात होना चाहिए कि तुम सचमुच विद्वान हो। तुम्हारा आचरण भी पूर्ण विश्वास युक्त हो शंका, शुबाह या निराशा का नाम निशान भी न हो। अपने इस विश्वास पर तुम्हें पूरी दृढ़ता का प्रदर्शन करना उचित है। यह अभिनय करते-करते एक दिन तुम स्वयमेव अपने कार्य को पूर्ण करने की क्षमता प्राप्त कर लोगे।

जिस वस्तु को हमें प्राप्त करना है उसके लिए जितनी मानसिक क्रिया होगी, जितना उसकी प्राप्ति का विचार किया जायगा, उतनी ही शीघ्रता से वह वस्तु हमारी ओर आकर्षित होगी। प्रत्येक वस्तु पहले मन में उत्पन्न की जाती है फिर वस्तु जगत में उसकी प्राप्ति होती है। तुम अपने विषय में अयोग्यता की भावना रखते हो अतः उसी प्रकार की तुम्हारे अन्तःकरण की सृष्टि होती जाती है। तुम्हारी भय की डरपोक कल्पनाएं ही तुम्हारे मन में निराशा के काले बादलों की सृष्टि कर रही है। मनःस्थिति के ही अनुसार अन्य व्यक्ति तुमसे द्वेष अथवा प्रेम करते हैं। और संसार की, समस्त वस्तुएं तुम्हारे पास आकर्षित होकर आती या मुड़कर दूर भागती हैं।

जब तुम निश्चय कर लोगे कि मेरा निराशा से जीवन का कोई संबंध नहीं होगा। मुझे नाउम्मीदों से कोई सरोकार नहीं है, मैं अब से वस्त्रभूषा पर शरीर पर, व्यवहार में, अपने कार्यों में निराशा का कोई चिन्ह भी न रहने दूँगा मैं पूर्ण शक्ति और मनोरथ सिद्धि में प्रवृत्त हूँगा, निराशापूर्ण वातावरण से मेरा कुछ लेना देना नहीं है। मैंने तो अपनी प्रवृत्ति ही उत्तम पदार्थों की ओर कर दी है। लता और मनोरथ सिद्धि मेरे बाएं हाथ का खेल है मुझे संसार की कठिनाई अपने श्रेय के मार्ग विचलित नहीं कर सकतीं तब याद रखो तुम्हारे हृदय में एक दिव्य शक्ति-शासनकर्ता शक्ति प्रसन्न होगी।

✍🏻 पं श्रीराम शर्मा आचार्य

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👉 शुभ विचारों का प्रभाव

दूषित विचारों से वातावरण की सारी सुंदरता नष्ट हो गई है। अब मनुष्य-जीवन का कुछ मूल्य नहीं रहा है; क्योंकि कुविचारों के फेर में इतनी अधिक अशांति उत्पन्न कर ली गई है कि उसमें थोड़े से से विचारवान व्यक्तियों को भी चैन से रहने का अवसर नहीं मिलता। इस संसार की सुखद रचना और इसके सौंदर्य को जाग्रत करना चाहते हो, तो वैयक्तिक तथा सामाजिक जीवन में सद्विचारों की प्रतिष्ठा करनी ही पड़ेगी। इसके लिए केवल कुछ व्यक्तियों को नहीं, वरन बुराइयों की तुलना कुछ अधिक प्रभावशाली सामूहिक प्रयास करने पड़ेंगे; तभी सबके हित संरक्षित रह सकेंगे।

यह कल्पना तभी साकार हो सकेगी; जब अपने विचारों के :परिवर्तन से सभ्य-सुसंस्कृत समाज की रचना का प्रयत्न करोगे। तुम उसी पदार्थ को अपनी ओर आकृष्ट करते हो; जिसके लिए अंतर में विचार होते हैं। अब तक बुरे विचार उठ रहे थे। अत: वातावरण भी कुरूप-सा, अशांत-सा लग रहा है। भ्रम और द्वेषपूर्ण विचारों से दुर्भावनाओं को मार्ग मिलता रहा। अब इसे छोड़ने का क्रम अपनाना चाहिए और शुभ विचारों की परंपरा डालनी चाहिए।

प्रेममय विचारों से हम अपने प्रेमास्पद को आकृष्ट करते हैं। ये विचार भी अप्रकट न रह सकेंगे। शीघ्र ही स्वभाव रूप में प्रकट होंगे और शीघ्र ही स्वभाव, क्रिया तथा कर्म के रूप में परिणत होकर वैसे ही परिणाम उपस्थित कर देंगे।


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👉 महिमा गुणों की ही है

🔷 असुरों को जिताने का श्रेय उनकी दुष्टता या पाप-वृति को नहीं मिल सकता। उसने तो अन्तत: उन्हें विनाश के गर्त में ही गिराया और निन्दा के न...