फिर से गूँजा है बसन्ती राग अब जागें सभी,
जुट पड़ें निर्माण में अब छोड़कर आलस सभी।
पौष में हम जम गए थे, राह में हम थम गये थे,
बैठे थे खुद में सिमटकर, अपने में ही रम गए थे,
जो न अब भी जाग पाया, जाग पायेगा कभी?
फिर से गूँजा है बसन्ती राग अब जागें सभी।
माघ है लाया नया संदेश फिर उत्साह का,
फिर उठो पाथेय ले चिंतन करो नव राह का,
जो समय आया है दुर्लभ वो न आएगा कभी,
फिर से गूँजा है बसन्ती राग अब जागें सभी।
ये न समझो है कठिन भव बंधनो को तोड़ना,
त्यागकर निज स्वार्थ सब जन-जन से खुद को जोड़ना,
फागुनी उल्लास में अब मन मुदित होंगे सभी,
फिर से गूँजा है बसन्ती राग अब जागें सभी।
रंग बसंती है मिला गुरुवर से ये अनुदान में,
हम नहीं पीछे हटेंगे, त्याग में बलिदान में,
संकल्प पूरे होते हैं जब मिलके करते हैं सभी,
फिर से गूँजा है बसन्ती राग अब जागें सभी।
~ सुधीर भारद्वाज