आज हम चारों ओर भयंकर दावानल सुलगती हुई देखते हैं। महायुद्ध का दानव लाखों मनुष्यों को अपनी कराल दाढ़ों के नीचे कुचल कुचल कर चबाते जा रहा है। खून से पृथ्वी लाल हो रही है। आकाश से ऐसी अग्नि वर्षा हो रही है जिससे सहस्रों निरपराध प्राणी अकारण ही चबाने की तरह जल-भुन रहे हैं। कराह और चीत्कारों से सारा आकाश मण्डल गुँजित हो उठा है। नन्हें नन्हें बालक अपने माता पिताओं के लिए बिलख रहे हैं। माताएं अपने पुत्रों के लिए और पत्नियाँ अपने पतियों के लिए, अश्रुपात कर रहीं हैं। कितने घरों में, किस प्रकार करुण क्रन्दन हो रहें हैं, इन मर्म कथाओं को यदि प्रत्यक्ष रूप से प्रकट किया जाये तो वज्र का भी कलेजा फटने लगेगा।
अकेला युद्ध ही क्यों महामारियों का प्रचंड प्रकोप आप देखिए। अनेक प्रकार के नये-नये अश्रुत पूर्व रोग उठ खड़े हुए हैं। चिकित्सा करने वाले परेशान हैं, उपचार हतवीर्य साबित होते हैं, अर्धमृत या मृत लाशों के ढेर घर एवं मरघटों में आसानी से देखे जा सकते हैं। रोगी और उनकी परिचर्या करने वाले सभी की बेचैनी बढ़ती चली जा रही है। जीवन भर बने हुए हैं, जो साँसें बीत रही हैं वह भारी और कष्टकर प्रतीत होती हैं। दवा के लिए पैसा नहीं, पथ्य के लिए पैसा नहीं, असहायवस्था में पड़े हुए लोग बेबसी आँसू घूँट रहे हैं।
महंगी का तो कुछ कहना ही नहीं, हर चीज पर चौगुने आठ गुने दाम बढ़ते जा रहे हैं। पैसा खर्च करने पर भी वस्तुएं प्राप्त होती नहीं। अच्छा अब नसीब नहीं, खाद्य पदार्थों का लोप होता जाता है। व्यापार चौपट हो रहे हैं, उद्योग धंधे बढ़ते नहीं, बेकारी में कमी नहीं होती खर्च बढ़ रहे हैं पर आमदनी नहीं बढ़ती आधे पेट खाने वालों और आधे अंग ढकने वालो की संख्या बढ़ती जा रही है। जी तोड़ परिश्रम करने पर भी भोजन वस्त्र की आवश्यकताएं पूरी नहीं हो पाती। कुछ अमीरों या युद्ध सम्बन्धी कोई व्यवसाय प्राप्त कर लेने वाले भाग्यवानों की बात अलग है, किन्तु साधारण जनता की जीवन निर्वाह समस्या दिन-दिन गिरती चली जा रही है, तिल तिल करके अभावों की ज्वाला में लोगों को झुलसना पड़ रहा है।
आये दिन जो अज्ञात विपत्तियाँ सामने आती रहती हैं, उनकी भयंकरता भी कम नहीं। राजनैतिक संघर्षों के कारण जनता के कष्टों में वृद्धि होती है, कोई उपद्रव करता है दण्ड किसी को सहना पड़ता है। निर्दोष व्यक्ति का भी कलेजा काँपता रहता है कि कही अकारण ही कोई चपेट मुझे न लग जाये। देवी प्रकोप का भी पूरा जोर है। इस साल नदियों में बड़ी भारी बाढ़ें आईं, जिससे हजारों गाँव का नुकसान हुआ लाखों बीघा कृषि नष्ट हो गई, अतिवृष्टि, अनावृष्टि, भूचाल, तूफान, अंधड़ के कारण बहुत भारी क्षति उठानी पड़ी। गुँडे बदमाशों का जोर बढ़ने से आये दिन अपराध बढ़ते रहते हैं। आज का दिन किसी प्रकार कट गया हो कल के लिए आशंका बनी रहती है कि कही कोई नई विपत्ति न टूट पड़े। शान्ति, स्थिरता, संतोष में कमी होती जाती है और बेचैनी बढ़ती जाती है।
.... क्रमशः जारी
✍🏻 पं श्रीराम शर्मा आचार्य
📖 अखण्ड ज्योति जनवरी 1943 पृष्ठ 4
http://literature.awgp.org/akhandjyoti/1943/January/v1.4
अकेला युद्ध ही क्यों महामारियों का प्रचंड प्रकोप आप देखिए। अनेक प्रकार के नये-नये अश्रुत पूर्व रोग उठ खड़े हुए हैं। चिकित्सा करने वाले परेशान हैं, उपचार हतवीर्य साबित होते हैं, अर्धमृत या मृत लाशों के ढेर घर एवं मरघटों में आसानी से देखे जा सकते हैं। रोगी और उनकी परिचर्या करने वाले सभी की बेचैनी बढ़ती चली जा रही है। जीवन भर बने हुए हैं, जो साँसें बीत रही हैं वह भारी और कष्टकर प्रतीत होती हैं। दवा के लिए पैसा नहीं, पथ्य के लिए पैसा नहीं, असहायवस्था में पड़े हुए लोग बेबसी आँसू घूँट रहे हैं।
महंगी का तो कुछ कहना ही नहीं, हर चीज पर चौगुने आठ गुने दाम बढ़ते जा रहे हैं। पैसा खर्च करने पर भी वस्तुएं प्राप्त होती नहीं। अच्छा अब नसीब नहीं, खाद्य पदार्थों का लोप होता जाता है। व्यापार चौपट हो रहे हैं, उद्योग धंधे बढ़ते नहीं, बेकारी में कमी नहीं होती खर्च बढ़ रहे हैं पर आमदनी नहीं बढ़ती आधे पेट खाने वालों और आधे अंग ढकने वालो की संख्या बढ़ती जा रही है। जी तोड़ परिश्रम करने पर भी भोजन वस्त्र की आवश्यकताएं पूरी नहीं हो पाती। कुछ अमीरों या युद्ध सम्बन्धी कोई व्यवसाय प्राप्त कर लेने वाले भाग्यवानों की बात अलग है, किन्तु साधारण जनता की जीवन निर्वाह समस्या दिन-दिन गिरती चली जा रही है, तिल तिल करके अभावों की ज्वाला में लोगों को झुलसना पड़ रहा है।
आये दिन जो अज्ञात विपत्तियाँ सामने आती रहती हैं, उनकी भयंकरता भी कम नहीं। राजनैतिक संघर्षों के कारण जनता के कष्टों में वृद्धि होती है, कोई उपद्रव करता है दण्ड किसी को सहना पड़ता है। निर्दोष व्यक्ति का भी कलेजा काँपता रहता है कि कही अकारण ही कोई चपेट मुझे न लग जाये। देवी प्रकोप का भी पूरा जोर है। इस साल नदियों में बड़ी भारी बाढ़ें आईं, जिससे हजारों गाँव का नुकसान हुआ लाखों बीघा कृषि नष्ट हो गई, अतिवृष्टि, अनावृष्टि, भूचाल, तूफान, अंधड़ के कारण बहुत भारी क्षति उठानी पड़ी। गुँडे बदमाशों का जोर बढ़ने से आये दिन अपराध बढ़ते रहते हैं। आज का दिन किसी प्रकार कट गया हो कल के लिए आशंका बनी रहती है कि कही कोई नई विपत्ति न टूट पड़े। शान्ति, स्थिरता, संतोष में कमी होती जाती है और बेचैनी बढ़ती जाती है।
.... क्रमशः जारी
✍🏻 पं श्रीराम शर्मा आचार्य
📖 अखण्ड ज्योति जनवरी 1943 पृष्ठ 4
http://literature.awgp.org/akhandjyoti/1943/January/v1.4