🔵 इसी के साथ तुम्हें मानवीय हृदय में झाँकने की कला सीखनी होगी। हमेशा मानव हृदय से उफनती भाव संवेदनाओं की गंगोत्री में स्नान करने की कोशिश करो। तभी तुम जान पाओगे कि यह जगत् कैसा है और जीवन के रूप कितने विविध हैं। इसे जानने के लिए निष्पक्षता और तटस्थता अपनाओ। बुद्धि को साक्षी बने रहने दो। तभी तुम समझ पाओगे कि न कोई तुम्हारा शत्रु है और न कोई मित्र। सभी समान रूप से तुम्हारे शिक्षक हैं। तुम्हारा शत्रु, तुम्हारे लिए एक रहस्यमय प्रश्र की भाँति है, जिसे तुम्हें हल करना है। एक अनबूझ पहेली की भाँति है, जिसे बूझना है। भले ही इसे हल करने में, बूझने में युगों का समय लग जाये। क्योंकि मानव को समझना तो है ही। तुम्हारा मित्र तुम्हारा ही अंग बन जाता है, तुम्हारे ही विस्तार का एक अंश हो जाता है, जिसे समझना कठिन होता है।’
🔴 बड़ी मार्मिक बातें उजागर हुई हैं इस सूत्र में। अगर सार रूप में इस सूत्र को एक पंक्ति में परिभाषित करें तो यही कहना होगा कि जो साधना की डगर पर चलना चाहते हैं वे समग्र जीवन का सम्मान करना सीखें। इसके प्रत्येक हिस्से में महत्त्वपूर्ण संदेश है। हाँ, उसमें भी जिसे हम दुःख कहकर परिभाषित करते हैं और रो- पीटकर पूरे संसार को अपने सिर पर उठा लेते हैं। दरअरसल यदि सच्चाई जाने- परखें तो पता यही चलेगा कि जीवन में दुःख नहीं है। जीवन को देखने के ढंग में दुःख है। यह देखने का ढंग लेकर जो जहाँ भी जायेगा, वही दुःखी होता रहेगा। फिर चाहे वह जगह स्वर्ग ही क्यों न हो।
🔵 यही वजह है कि चमड़ा भिगोते जूता गाँठते हुए रैदास परम आनन्दित हो सकते हैं। चरखा कातते हुए कबीर इतने आनन्द विभोर होते हैं कि उनके जीवन में संगीत और काव्य फूटता है। और फिर मिट्टी के बर्तन बनाते- पकाते गोरा कुम्हार, उनके तो आनन्द की कोई सीमा ही नहीं। तो यह आनन्द और इसका स्रोत इनकी परिस्थिति में नहीं, इनकी मनःस्थिति में है। इनके दृष्टिकोण में है, जो कहीं भी आनन्द की सृष्टि करने में सक्षम है। इनके स्वर्गीय दृष्टिकोण में स्वर्ग के निर्माण की क्षमता है और ऐसा केवल इसलिए है, क्योंकि ये समग्र जीवन का सम्मान करना जानते हैं। जीवन का प्रत्येक अंश इनके लिए मूल्यवान् है। फिर भले ही वह कंटकाकीर्ण हो या सुकोमल पुष्पों से सजा।
🌹 क्रमशः जारी
🌹 डॉ. प्रणव पण्डया
http://hindi.awgp.org/gayatri/AWGP_Offers/Literature_Life_Transforming/Books_Articles/Devo/time
🔴 बड़ी मार्मिक बातें उजागर हुई हैं इस सूत्र में। अगर सार रूप में इस सूत्र को एक पंक्ति में परिभाषित करें तो यही कहना होगा कि जो साधना की डगर पर चलना चाहते हैं वे समग्र जीवन का सम्मान करना सीखें। इसके प्रत्येक हिस्से में महत्त्वपूर्ण संदेश है। हाँ, उसमें भी जिसे हम दुःख कहकर परिभाषित करते हैं और रो- पीटकर पूरे संसार को अपने सिर पर उठा लेते हैं। दरअरसल यदि सच्चाई जाने- परखें तो पता यही चलेगा कि जीवन में दुःख नहीं है। जीवन को देखने के ढंग में दुःख है। यह देखने का ढंग लेकर जो जहाँ भी जायेगा, वही दुःखी होता रहेगा। फिर चाहे वह जगह स्वर्ग ही क्यों न हो।
🔵 यही वजह है कि चमड़ा भिगोते जूता गाँठते हुए रैदास परम आनन्दित हो सकते हैं। चरखा कातते हुए कबीर इतने आनन्द विभोर होते हैं कि उनके जीवन में संगीत और काव्य फूटता है। और फिर मिट्टी के बर्तन बनाते- पकाते गोरा कुम्हार, उनके तो आनन्द की कोई सीमा ही नहीं। तो यह आनन्द और इसका स्रोत इनकी परिस्थिति में नहीं, इनकी मनःस्थिति में है। इनके दृष्टिकोण में है, जो कहीं भी आनन्द की सृष्टि करने में सक्षम है। इनके स्वर्गीय दृष्टिकोण में स्वर्ग के निर्माण की क्षमता है और ऐसा केवल इसलिए है, क्योंकि ये समग्र जीवन का सम्मान करना जानते हैं। जीवन का प्रत्येक अंश इनके लिए मूल्यवान् है। फिर भले ही वह कंटकाकीर्ण हो या सुकोमल पुष्पों से सजा।
🌹 क्रमशः जारी
🌹 डॉ. प्रणव पण्डया
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