🔶 अखण्ड-ज्योति का कलेवर छपे कागजों के छोटे पैकेट जैसा लग सकता है, पर वास्तविकता यह है कि उसके पृष्ठों पर किसी की प्राण चेतना लहराती है और पढ़ने वालों को अपने आँचल में समेटती है, कहीं-से-कहीं पहुँचाती है। बात लेखन तक नहीं सीमित हो जाती, उसका मार्गदर्शन और अनुग्रह अवतरण किसी ऊपर की कक्षा से होता है। इसका अधिक विवरण जानना हो, तो एक शब्द में इतना ही कहा जा सकता है कि यह हिमालय के देवात्मा क्षेत्र में निवास करने वाले ऋषि चेतना का समन्वित अथवा उसके किसी प्रतिनिधि का सूत्र संचालन है, अन्यथा साधना विहीन एकाकी, व्यवहार कुशलता की दृष्टि से पिछड़ा हुआ व्यक्ति बड़े सपने तो देख सकता है; पर बड़े कामों का भार अपने दुर्बल कंधों पर नहीं उठा सकता। विशेषतया उन कामों का जिनकी कल्पनाएँ करते रहने वाले, योजनाएँ बनाते रहने वाले थोड़े बहुत कदम बढ़ाते रहने पर भी हवा में उड़ने वाले गुब्बारों की तरह कुछ ही समय में ठण्डे होते और अपने अस्तित्व को समाप्त करते देखे गये।
🔷 सोचा जाता है कि गुरुजी 80 वर्ष का आयुष्य पूरा करना चाहते है। इस दृष्टि से माताजी भी उतनी आयु का लाभ ले सकेंगी, जितनी कि गुरुदेव। इस महाप्रयाण का समय अब बहुत दूर नहीं है। हाथ के नीचे वाले वाले अनिवार्य कामों को जल्दी-जल्दी निपटाने की बात बनते ही चार्ज दूसरों के हाथों चला जायगा। सन्देह है कि उस दशा में वर्तमान प्रगति रुक सकती है और व्यवस्था बिगड़ सकती है। ऐसे लोग व्यवस्था में आने वाले उतार–चढ़ावों के आधार पर अनुमान लगाते है। उनमें ही प्रतिभावान व्यक्तियों के हट जाने पर भट्ठा बैठ जाता है और सरंजाम बिखर जाता है; पर यहाँ वैसी कोई बात नहीं। न व्यक्ति विशेष ने कुछ असाधारण किया है, और न ही उसे भूतकाल पर गर्व है। न वर्तमान को देखते हुए उत्साह और न भविष्य की गिरावट सम्बन्धी कोई आशंका। कारण स्पष्ट है।
🔶 कठपुतली न अपने अभिनय पर गर्व करती है, और न पिटारी में बन्द कर दिये जाने की शिकायत। यदि वह समझ होती, तो निश्चित ही उसकी सोच यही होती कि वह बाजीगर की उँगलियों में बँधे हुए धागों से हलचल करने वाली लकड़ी की टुकड़ी मात्र है। उसे गर्व किस बात का होना चाहिए और अपने भविष्य की चिन्ता क्यों करनी चाहिए? यह काम बाजीगर का है। वही कोई गड़बड़ी होते देखेगा और तत्परतापूर्वक सुधारेगा। आखिर लाभ-हानि तो उसी का है। लकड़ी के टुकड़े तो निर्जीव एवं निमित्त मात्र है। मिशन के भविष्य के सम्बन्ध में भी हर किसी को इसी प्रकार सोचना चाहिए और निराशा जैसे अशुभ चिन्तन को पास भी नहीं फटकने देना चाहिए।
.... क्रमशः जारी
✍🏻 पं श्रीराम शर्मा आचार्य
📖 अखण्ड ज्योति जनवरी पृष्ठ 29
http://literature.awgp.org/akhandjyoti/1988/January/v1.29
🔷 सोचा जाता है कि गुरुजी 80 वर्ष का आयुष्य पूरा करना चाहते है। इस दृष्टि से माताजी भी उतनी आयु का लाभ ले सकेंगी, जितनी कि गुरुदेव। इस महाप्रयाण का समय अब बहुत दूर नहीं है। हाथ के नीचे वाले वाले अनिवार्य कामों को जल्दी-जल्दी निपटाने की बात बनते ही चार्ज दूसरों के हाथों चला जायगा। सन्देह है कि उस दशा में वर्तमान प्रगति रुक सकती है और व्यवस्था बिगड़ सकती है। ऐसे लोग व्यवस्था में आने वाले उतार–चढ़ावों के आधार पर अनुमान लगाते है। उनमें ही प्रतिभावान व्यक्तियों के हट जाने पर भट्ठा बैठ जाता है और सरंजाम बिखर जाता है; पर यहाँ वैसी कोई बात नहीं। न व्यक्ति विशेष ने कुछ असाधारण किया है, और न ही उसे भूतकाल पर गर्व है। न वर्तमान को देखते हुए उत्साह और न भविष्य की गिरावट सम्बन्धी कोई आशंका। कारण स्पष्ट है।
🔶 कठपुतली न अपने अभिनय पर गर्व करती है, और न पिटारी में बन्द कर दिये जाने की शिकायत। यदि वह समझ होती, तो निश्चित ही उसकी सोच यही होती कि वह बाजीगर की उँगलियों में बँधे हुए धागों से हलचल करने वाली लकड़ी की टुकड़ी मात्र है। उसे गर्व किस बात का होना चाहिए और अपने भविष्य की चिन्ता क्यों करनी चाहिए? यह काम बाजीगर का है। वही कोई गड़बड़ी होते देखेगा और तत्परतापूर्वक सुधारेगा। आखिर लाभ-हानि तो उसी का है। लकड़ी के टुकड़े तो निर्जीव एवं निमित्त मात्र है। मिशन के भविष्य के सम्बन्ध में भी हर किसी को इसी प्रकार सोचना चाहिए और निराशा जैसे अशुभ चिन्तन को पास भी नहीं फटकने देना चाहिए।
.... क्रमशः जारी
✍🏻 पं श्रीराम शर्मा आचार्य
📖 अखण्ड ज्योति जनवरी पृष्ठ 29
http://literature.awgp.org/akhandjyoti/1988/January/v1.29