मनुष्य की दुर्बलता का अनुभव करके हमारे परम कारुणिक साधु संतों ने उद्धार के बहुत से रास्ते ढूँढ़े। अन्त में उन्हें भगवान का नाम मिला। इससे उन्होंने गाया कि-राम नाम ही हमारा आधार है। सब तरह से हारे हुए मनुष्य के लिए बस, राम नाम ही एक तारक मंत्र है। राम नाम यानी श्रद्धा-ईश्वर की मंगलमयता पर श्रद्धा। युक्ति, बुद्धि, कर्म, पुरुषार्थ, सब सत्य हैं, परन्तु अन्त में तो राम नाम ही हमारा आधार है।
लेकिन आजकल का जमाना तो बुद्धि का जमाना कहलाता है। इस तार्किक युग में श्रद्धा का नाम ही कैसे लिया जाए? सच है कि दुनिया में अबुद्धि और अन्धश्रद्धा का साम्राज्य छाया है। तर्क, युक्ति और बुद्धि की मदद के बिना एक कदम भी नहीं चला जा सकता। बुद्धि की लकड़ी हाथ में लिए बिना छुटकारा ही नहीं। परन्तु बुद्धि अपंगु है। जीवन यात्रा में आखिरी मुकाम तक बुद्धि साथ नहीं देती। बुद्धि में इतनी शक्ति होती तो पण्डित लोग कभी के मोक्ष धाम तक पहुँच चुके होते। जो चीज बुद्धि की कसौटी पर खरी न उतरे, उसे फेंक देना चाहिये।
बुद्धि जैसी स्थूल वस्तु के सामने भी जो टिक सके उसकी कीमत ही क्या है? परन्तु जहाँ बुद्धि अपना सर्वस्व खर्च करके थक जाती हैं और कहती है-’न एतदशकं विज्ञातुँ यदेतद्यक्षमिति।’ वहाँ श्रद्धा क्षेत्र शुरू हो जाता है। बुद्धि की मदद से कायर भी मुसाफिरी के लिए निकल पड़ता है। परन्तु जहाँ बुद्धि रुक जाती है, वहाँ आगे पैर कैसे रखा जाय? जो वीर होता है, वही श्रद्धा के पीछे-2 अज्ञान की अंधेरी गुफा में प्रवेश करके उस ‘पुराणह्वरेष्ठ’ को प्राप्त कर सकता है।
बालक की तरह मनुष्य अनुभव की बातें करता है। माना कि, अनुभव कीमती वस्तु है, परन्तु मनुष्य का अनुभव है ही कितना? क्या मनुष्य भूत भविष्य को पार पा चुका है? आत्मा की शक्ति अनन्त है। कुदरत का उत्साह भी अथाह है। केवल अनुभव की पूँजी पर जीवन का जहाज भविष्य में नहीं चलाया जा सकता। प्रेरणा और प्राचीन खोज हमें जहाँ ले जायं, वहाँ जाने की कला हमें सीखनी चाहिए। जल जाय वह अनुभव, धूल पड़े उस अनुभव पर जो हमारी दृष्टि के सामने से श्रद्धा को हटा देता है।
*( यदि नाथ का नाम दयानिधि है | Yadi Nath Ka Naam Dayanidhi Hai | Rishi Chintan, https://www.youtube.com/watch?v=gMTWKRAPZIs )*
दुनिया यदि आज तक बढ़ सकी है तो वह अनुभव या बुद्धि के आधार पर नहीं, परन्तु श्रद्धा के आधार पर ही। इस श्रद्धा का माथा जब तक खाली नहीं होता, जब तक यात्रा में पैर आगे पड़ते ही रहेंगे, तभी तक हमारी दृष्टि अगला रास्ता देख सकेगी और तभी तक दिन के अन्त होने पर आने वाली रात्रि की तरह बार-बार आने वाली निराशा की थकान अपने आप ही उतरती जायगी। इस श्रद्धा को जाग्रत रखने का-इस श्रद्धा की आग पर से राख उड़ाकर इसे हमेशा प्रदीप्त रखने का-एकमात्र उपाय है राम-नाम।
राम-नाम ही हमारे जीवन का साथी और हमारा हाथ पकड़ने वाला परम गुरु है।
📖 अखण्ड ज्योति-मार्च 1949 पृष्ठ 21
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