शनिवार, 19 मई 2018

👉 कृपा कर क्रोध मत कीजिए (भाग 1)

🔷 क्रोध शक्ति की कमी का परिचायक है। मानसिक शक्ति की कमी हो जाने पर क्रोध का वेग विवेक से रुकता नहीं। जब क्रोध आता है तब विवेक दूर भाग जाता है जैसे कि उन्मत्त हाथी जब जंजीर तोड़ लेता है, तो महावत दूर भाग जाता है। क्रोध के द्वारा मानसिक शक्ति का ह्रास भी होता है। कारण और कार्य एक ही वस्तु के दो पहलू हैं। मानसिक शक्ति की कमी से क्रोध आता है और क्रोध से मानसिक शक्ति की कमी भी होती है। साधारणतया क्रोध दूसरे पर प्रकाशित होता है। उसका लक्ष्य दूसरों की हानि करना होता है।

🔶 जब वह अपने लक्ष्य में सफल होता है, तो मानसिक शक्ति के ह्रास का शीघ्र पता नहीं चलता किन्तु जिस समय वह अपने लक्ष्य में सफल नहीं होता, वह अपने प्रति ही झीखने लगता है। इस स्थिति में मनुष्य अपने आप को कोसने लगता है। अपनी कमजोरी को बड़ी तीव्रता से अनुभूति करने लगता है। यह अनुभूति आत्म निर्देश बन जाती है जिसके कारण मनुष्य वास्तव में कमजोर और निराशावादी बन जाता है।

🔷 क्रोध का आवेश एक बार आने पर साधारण चतुराई के विचारों से वह नियन्त्रित नहीं होता। क्रोध की अवस्था में मनुष्य विक्षिप्त मन हो जाता है, उसकी चतुराई उसके काम नहीं आती। चतुराई साँसारिक दृष्टि का नाम है। क्रोध इससे अधिक प्रबल होता है। क्रोध के रोकने के लिये विशेष दृष्टि की आवश्यकता है। क्रोध उसके रोकने अथवा निराकरण के पूर्व अभ्यास से रुकता है। क्रोध का निराकरण विरक्ति और प्रेम से होता है। यदि संसार के प्रति अमोह का व्यवहार तथा उसके प्राणियों के प्रति मैत्री भावना का अभ्यास मनुष्य ने पहले किया है तो वह अभ्यास क्रोध आने की अवस्था में उसे अविवेकयुक्त काम करने से रोक देता है।

📖 अखण्ड ज्योति, अप्रैल 1955 पृष्ठ 6

👉 दया की देवी

🔷 सन् 1813 में इंग्लैंड के जेलखानों की बड़ी बुरी दशा थी। एक एक कोठे में 300 तक अधनंगी औरतें बन्द कर दी जाती थीं। उनके पास न ओढ़ने बिछाने को होता था, और न पहनने को कपड़े। युवा एवं वृद्ध स्त्रियाँ तथा छोटी उम्र की बालिकाएं घास और कूड़े के ढेर पर चिथड़े में लिपट कर सो जाती थीं। उनकी सुधि लेने वाला कोई न था। अधिकारी उन्हें सिर्फ इतना भोजन देते थे, जिससे वे किसी प्रकार जीवित रह सकें।

🔶 यह दशा एलिजाबेथ फ्राय नामक एक देवी ने देखी तो उसकी आंखें भर आई। फ्राय लिखी- पढ़ी थीं, और उनके पास आनंद और ऐश्वर्य की जिन्दगी बिताने योग्य बुद्धि थी। परन्तु जीवन के मधुर फल को चुपचाप खुद ही कुतर-कुतर कर खाते रहना उन्हें पसन्द न आया। सामने फुलवारी पर दृष्टि गई तो देखा कि पुष्प अपने सुन्दर जीवन को दूसरों के सुख के लिये अर्पित करता हुआ मुस्करा रहा था। फ्राय ने अपना जीवन इन दुखियों के निमित्त दे दिया। उन्होंने बन्दी ग्रह की पीड़ित बहिनों के उद्धार का व्रत लिया।

🔷 सरकार की सहायता से उन्होंने जेल में शिक्षा का प्रचार करना आरंभ किया। बन्दी ग्रह की नारकीय यंत्रणा भोगने वाली स्त्रियों को पहले तो विश्वास ही नहीं हुआ कि कोई उनके परित्राण करने के लिये भी प्रयत्न करेगा। परन्तु जब पाप और अज्ञान में डूबी हुई, मूर्तियों को फ्राय ने प्रेम पूर्वक अपने गले लगाया और उन्हें शिक्षा देना आरंभ किया तो उनकी जीवन दिशाएं ही बदल गईं। कुछ ही मास के प्रयत्न ने उन नारकीय पशुओं को शान्त, निर्दोष और पवित्र बना दिया। सुधार का विस्तार हुआ। सरकार उनके कार्य को देखकर प्रभावित हुई, और उसने इस प्रकार की शिक्षा कानून द्वारा जेलखानों में जारी कर दी।

🔶 आज श्रीमती फ्राय इस संसार में नहीं हैं। परन्तु उनके पवित्र प्रेम का पौधा अतृप्त और दुःखी प्राणियों को शीतलता प्रदान करने के लिये जीवित है। उनकी योजना इस समय समस्त सभ्य संसार में काम में लाई जा रही है।

👉 प्रेरणादायक प्रसंग 20 May 2018


👉 आज का सद्चिंतन 20 May 2018


👉 Awakening Divinity in Man (Part 6)

What do the deities do?
🔷 Deities keep doing one thing. What do they keep doing? They keep showering flowers. Look at the scriptures. The holy Ramayana for instance describes at fifty odd places that deities showered sacred flowers from heaven. What are these flowers? They symbolize goodwill, cooperation, guidance, respect and support. What attracts these virtues? Divinity, which is still present in the world. It alone had survived (in the past) and will alone survive (in the future); it can never be wiped out. If the demons (evils) do not die then why should God (the highest symbol of divinity) die? Like-minded people are attracted towards each other. A deity is attracted by deity-like humans and ideals are attracted by ideals; this results in the acquisition of benevolence, opportunities and co-operation from all directions. This is what has been happening, is happening and will continue to happen.

🔶 I am admiring deities. Where do they live? They are present in the integrity of the human character and the inner self. They inspire the motivation and zeal that clears all illusions and breaks and destroys the web of complications, infirmities, ignorance and worries. Divine inspiration even compels one to follow the righteous path. This is the true blessing of a deity. Anything lesser or lower than this can’t be a blessing of a divine power. The doors of eminence, success and achievements open as soon as your qualities, deeds and nature are illuminated by the spark of divinity.

🔷 Whosoever has gained immortal, glorious progress or notable success in any field in the world to date has accomplished it through his virtuous personality. A deity’s blessing is the supremacy of qualities, talents and thoughts. The life history of every great personality demonstrates it. Almost all of them were born in ordinary or underprivileged families and circumstances. But they reached greater and greater heights and accomplished brighter and brighter goals! Look at our late Prime Minister Lal Bahadur Shastry’s life for example.  He was blessed by God’s grace. How? In the form of two qualities – responsibility and wisdom. These great virtues persist in the linkage between God and the devotee and also strengthen it further. This is the only way to communicate with the Omniscient.

✍🏻 Pt. Shriram Sharma Acharya

👉 भगवान कैसे दिखाई देंगे? (भाग 3)

🔷 वह व्यक्ति जो सदैव सत्य बोलता हो, जो दयावान हो, उदार हो, जो क्षमाशील और शान्त हो, जो हर प्रकार के भय से निर्भय हो, जिसने क्रोध और लालच को जीत लिया हो, जो परम पवित्र और प्रेमी हो, वही वास्तव में ब्रह्म है वही सच्चा ब्राह्मण है। जिसमें उपरोक्त गुण न हों, वे तो वास्तव में शुद्र ही हैं।

🔶 जब तक तुम अपने को बिना शर्त, बिना किसी स्वार्थ और निष्काम भाव से अपने को प्रभु की शरण में अर्पण नहीं कर देते, तब तक तुम उनकी कृपा के अधिकारी कैसे हो सकते हो? भगवान तुमसे कहीं अच्छी तरह यह बात जानते हैं कि तुम्हारा हित-अहित क्या है? पूर्ण रूप से अपना समस्त अपनत्व उन्हीं भगवान के पावन पाद-पदों में समर्पण करना मन्दिरों में जाकर दर्शन करने, घंटा घड़ियाल बजा कर पूजा करने और अन्य प्रकार की भगवत्सेवाओं से कहीं बढ़-चढ़ कर है।

🔷 भगवान तुम्हारा ऊपरी दिखावा नहीं चाहते। वे तो तुम्हारा हृदय चाहते हैं। एक बार प्रेम से ऐसा कह दो-प्रभु! तेरी इच्छा पूरी करूंगा, मैं तेरा हूँ, मेरे पास जो कुछ भी है सभी तो तेरा ही है। किन्तु यह बात हृदय की अन्तरात्मा से निकले। सचाई और निष्ठा के साथ। शुद्ध प्रेम में मतवाले बन कर रुदन करो एकान्त में उनके लिए विलाप करो ऐसे ढंग से रोओ कि तुम्हारे सब वस्त्र तुम्हारी अश्रु-धारा से भीग कर सराबोर हो जाय।

🔶 अपनी आँखों को बन्द करो। दुनिया, शरीर और समस्त वासनाओं को नष्ट करो। सब और से मन को खींच लो। केवल एक प्रभु में लीन हो जाओ। तब असली अमरत्व के अमृत का पान करो।

✍🏻 श्री स्वामी शिवानन्दजी सरस्वती
📖 अखण्ड-ज्योति 1946 नवम्बर पृष्ठ 5

👉 गुरुगीता (भाग 114)

👉 गुरू भक्ति की सिद्धि सर्वोपरि, सबसे बड़ी

🔷 एक बड़ी ही प्यारी अनुभूति कथा है। समर्थ गुरू रामदास के शिष्य स्वामी कल्याण गोदावरी नदी से कुछ कोस दूर एक गाँव में ठहरे हुए थे। अपने सद्गुरू के नाम की अलख जगाते हुए सत्प्रवृत्तियों का प्रसार करना उनका व्रत था। जय- जय रघुवीर समर्थ, को उच्चस्वर से पुकारते हुए जब वह ग्राम वीथियों से गुजरते ,तो लोग बरबस उन्हें घेर लेते। उनके पास आश्चर्यजनक सिद्धियाँ तो नहीं थीं, पर गुरूकृपा का बल था। अपने गुरू पर उनका सम्पूर्ण विश्वास ही उनकी सबसे बड़ी पूँजी थी। उनकी भक्तिपूर्ण बातें लोगों में चेतना की नयी लहरें पैदा करती।

🔶 ग्रामवासी स्वामी कल्याण के वचनों से आह्लादित थे। उन्हें जीवन की नयी दिशा मिल रही थी। परन्तु रूढ़िवादी साधु और कई तांत्रिक उनकी इन बातों से प्रसन्न नहीं थे, क्योंकि कल्याण स्वामी के वचनों ने जन जीवन में इतनी जागृति पैदा कर दी थी कि इन सभी का व्यवसाय बन्द होने लगा था। कर्म के सिद्धान्त पर विश्वास करने लगा जन- जीवन सत्कार्यों में प्रवृत्त होने लगा था। चमत्कारों की ओछी बाजीगरी से उसे उकताहट होने लगी थी। जन मानस की यह स्थिति अपने को सिद्ध कहने वाले तांत्रिकों को रास नहीं आयी। उन्होंने कल्याण स्वामी के प्रति अनेकों षड्यंत्र रचने शुरू कर दिये। वे सब मिलकर किसी भी तरह जन- जीवन की नजर में उन्हें अप्रमाणिक एवं अयोग्य साबित करना चाहते थे।

🔷 जब उनके सामान्य उपक्रम असफल साबित हुए, तो उन्होंने अपनी चमत्कारी सिद्धियों का सहारा लिया। इन सिद्धियों के बल पर उन्होंने गाँव के तालाबों, कुआँ, बावड़ियों का जल सुखा दिया। इस तांत्रिक अत्याचार से सामान्य जनता पानी के लिए तरसने लगी। मनुष्य एवं पशुओं का जीवन बिना पानी के विपन्न हो गया। बिलखते बच्चे ,परेशान गृहणियों की जिन्दगी दूभर हो गयी। परेशान गाँववासी कल्याण स्वामी के यहाँ गये। पर वे करते भी क्या? उनके पास ऐसी कोई सिद्धि नहीं थी, जिससे समस्या का हल हो सके। इधर इन कु्रर तांत्रिकों ने उनका और उनके गुरू का अपमान करना प्रारम्भ कर दिया। गाँव वालों को जितना सम्भव था।

🔶 कल्याण स्वामी के लिए स्वयं के अपमान का तो कोई मोल नहीं था, पर गुरू का अपमान उनसे बर्दाश्त नहीं हुआ। ग्रामीण जनों की दुर्दशा भी उनसे देखी न गयी। आखिर में उन्होंने गुरूगीता एवं गुरूमंत्र का आश्रय लेने की सोची। ग्रामवासियों के कल्याण के लिए उन्होंने कठिन उपवास करते हुए गायत्री महामंत्र से सम्पुटित करके गुरूगीता का अनुष्ठान प्रारम्भ किया। प्रगाढ़ तप में उनके दिन बीतते ।। प्रार्थना में उनकी रातें व्यतीत होतीं। यह सिलसिला कई दिनों तक चलता रहा। एक रात प्रार्थना करते समय उनकी भाव चेतना समर्थ सद्गुरू के चरणों में विलीन होने लगी। उनके हृदय में बस एक ही आर्त पुकार थी, हे सद्गुरू! इन निर्दोष ग्रामीण जनों की रक्षा करो।

🔷 भक्त की पुकार गुरूदेव अनसुनी न कर सके। उनकी परावाणी कल्याण स्वामी की अंतर्चेतना में गूँज उठी, चिंता न कर, माँ गोदावरी से प्रार्थना कर, उनको मेरा संदेश देना, उन्हें कहना मेरे गुरू ने आपको ग्रामीण जनों के कल्याण के लिए आमंत्रित किया है। समर्थ गुरू का यह विचित्र सा संदेश कल्याण स्वामी को ठीक से समझ नहीं आया। फिर भी वे अपने गुरूभक्ति की धुन में माँ गोदावरी के पास गये और उन्होंने गुरू का संदेश सुनाते हुए ग्रामवासियों का जल संकट दूर करने के लिए प्रार्थना की। इतना ही नहीं गोदावरी से एक लकीर खींचते हुए गाँव में आ गये।

🔶 उनके उस कार्य का तांत्रिकों ने बड़ा मजाक उड़ाया। लेकिन सबको आश्चर्य तो तब हुआ, जब उन्होंने देखा कि पानी से खाली गाँव कुएँ, तालाब, बावड़िया फिर से पानी से भर गये हैं। माँ गोदावरी प्रत्यक्ष रूप से तो नहीं बहती रही, किन्तु उनकी अंतर्धारा ने गाँव आकर सबका कष्ट दूर कर दिया। गाँव वालों ने गुरूभक्ति का यह प्रत्यक्ष चमत्कार देखा और उन सबने स्वीकार किया, किसी भी मांत्रिक- तांत्रिक सिद्धि से गुरूभक्ति की सिद्धि बड़ी है। गुरूभक्ति से बड़कर न तो कोई सिद्धि और न शक्ति।

.... क्रमशः जारी
✍🏻 डॉ प्रणव पंड्या
📖 गुरुगीता पृष्ठ 171

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