अनीति को मिटाने के लिए-अनाचार से जूझने के लिए-कोई शूरवीर ही खड़ा हो सकता है। असुरता- अवाँछनीय मार्ग पर चलकर आक्रमणकारी साधनों से सम्पन्न हो जाती है। उसके प्रहार बड़े क्रूर होते हैं। वह किसी पर भी- किसी भी बहाने कितना ही बड़ा अत्याचार कर सकती है। उससे सर्वत्र भय और आतंक छाया रहता है। जो विरोध के लिये उठता है वही पिसता है। ऐसे समय में अग्रणी बनकर अनाचार का प्रतिरोध करना सहज नहीं होता। उसके लिए सच्चा साहस चाहिए। आत्म रक्षा और आक्रमण के समुचित साधन पास में रहने पर लड़ सकना सरल है क्योंकि उसमें सुरक्षा और विजय की आशा बनी रहती है। पर जहाँ अपने साधन स्वल्प और विरोधी अति समर्थ हों, वहाँ तो संकट ही संकट सामने रहता है। इन विभीषिकाओं के बीच भी जो साहसपूर्वक आगे बढ़ सकता है। अनीति की चुनौती स्वीकार कर सकता है, उसे वीरता की कसौटी पर सही उतरा समझना चाहिए।
भारत के हजार वर्ष लम्बे स्वतंत्रता संग्राम में अगणित शूरवीरों ने अपने प्राण दिये। वे विजयी नहीं हुए- पराजित रहे पर उनकी वीरता को विजयी ही माना जाता- और कोई कोई विजेताओं पर निछावर किया जाता रहेगा। रावण की असुर सेना से लड़ने की हिम्मत जिन रीछ, वानरों ने दिखाई उन्हें संसार के अग्रगामी योद्धाओं की पंक्ति में रखते हुए अनन्त काल तक अभिनंदनीय माना जायेगा। प्रहलाद की तरह जिन्होंने सत्य को सर्वोत्तम शस्त्र माना उन्हीं की वीरता खरी है।
योद्धा का काम मात्र लड़ना-तोड़ना-बिगाड़ना ही नहीं, निर्माण करना भी है। तोड़ना सरल है बनाना कठिन है। एक लोहे की कील से किसी के प्राण लिये जा सकते हैं पर एक सुविकसित और सुसंस्कृत मनुष्य का निर्माण करना कठिन है। किसी बड़ी इमारत को थोड़े समय में स्वल्प प्रयत्नों से गिराया जा सकता है पर उसका निर्माण करने के साधन जुटाना कठिन है। कपास के गोदाम को एक दियासलाई जला सकती है पर उतनी कपास उगाने के लिए कितना श्रम और कितने साधन की आवश्यकता पड़ेगी ? किसी को कुमार्ग पर लटका देना सरल है पर कुमार्गगामी को सन्मार्ग की ओर उन्मुख करना कठिन है। पानी ऊपर से नीचे की ओर सहज ही बहता है पर नीचे से ऊपर चढ़ाने के लिए कितने साधन जुटाने पड़ते हैं। ध्वंस में नहीं सृजन में मनुष्य का शौर्य परखा जाता है।
उत्कर्ष के अभियान में जिसका जितना बड़ा योगदान है उसे उतना ही बड़ा बहादुर माना जायेगा। लड़ाई, क्रोध और आवेश में लड़ी जा सकती है। उत्तेजना तो नशे से भी पैदा हो सकती है। किसी का अहंकार भड़काकर अथवा विजय के बड़े लाभ का प्रलोभन देकर किसी को लड़ने के लिये आसानी से तैयार किया जा सकता है। पर सृजन के लिए बड़ी सूझ-बूझ की, सन्तुलित एवं निष्ठा सम्पन्न परिपक्व मनोभूमि की जरूरत पड़ती है। उस महत्ता की पौध पहले भीतर उगानी पड़ती है और जब वह जम जाती है तब उसे कार्यक्षेत्र में आरोपित किया जाता है। ऐसी निष्ठा शूरवीर में ही पाई जाती है। मित्रों के बीच विग्रह पैदा कर देना किसी भी धूर्त, चुगलखोर या षड्यंत्रकारी के लिए बाएं हाथ का खेल हो सकता है, पर शत्रुता मित्रता में परिणत कर देना किसी शालीन सज्जन और विवेकवान के लिए ही सम्भव हो सकता है।
बहादुर वह है जिसने अपनी अहन्ता, स्वार्थपरता और संकीर्णता पर विजय प्राप्त कर ली। जिसने संकीर्णता के सीमित दायरे को तोड़कर विशालता को वरण कर लिया। अपने ऊपर विजय प्राप्त करना विश्व विजय से बढ़कर है। जो वासना और तृष्णा की कीचड़ से निकल कर आदर्शवादिता और उत्कृष्टता की गतिविधि अपनाने में सफल हो गया उसे दिग्विजय का श्रेय दिया जायेगा जो अपने ऊपर शासन कर सकता है वह चक्रवर्ती शासक से बढ़कर है और जिसने नीति का समर्थन- अनीति का विरोध करने में कुछ भी कष्ट सहने का संकल्प कर लिया उसे शूरवीरों का शिरोमणि कहा जायेगा। ऐसे शूरवीरों का यश गान करते हुए ही इतिहास अपने को धन्य बनाता रहा है।
✍🏻 पं श्री राम शर्मा आचार्य
📖 अखण्ड ज्योति नवम्बर 1972 पृष्ठ ३१