प्रेम का अमृत छिड़क कर शुष्क जीवन को सजीव बनाइये
आप चाहते हैं कि हमारे चारों ओर प्रिय ही प्रिय तत्त्व जमा रहें तो इसका एक ही उपाय है कि आत्मभाव को उन सबसे संबंधित कर दें। सोए हुए निष्क्रिय तत्त्वों के रहते हुए भी अंधकार बना रहता है पर जैसे ही बिजली की धारा उन बल्वों तक पहुँची, वैसे ही वे क्षण भर में दीप्तमान हो उठते हैं और अपने प्रकाश से निकटवर्ती स्थानों को जगमगा देते हैं। अपने निकटवर्ती लोगों पर यदि आप आत्मीयता की भावनाएँ आरोपित कर दें तो वे सब आपको प्रिय, आनंददायक, मनोहर और प्रसन्नता बढ़ाने वाले प्रतीत होने लगेंगे। जो लोग अल्पज्ञ और अपराधी हैं वे भी कपड़ों पर मल-मूत्र त्याग देने वाले अपने बालक के समान आनंदप्रद ही लगेंगे। क्रोध, चिडचिडाहट, द्वेष, घृणा की जो अग्नि शिखाएँ दिन- रात मन में जलती रहती हैं और खून सुखाती रहती हैं वे अनायास ही शांत हो जावेंगी।
प्रिय वस्तुओं का चारों ओर एकत्रित रहना यही तो स्वर्ग है। स्वर्ग की बडी महिमा गाई गई है, कथा-पुराणों में उसका बहुत विस्तृत वर्णन मिलता है, उस सारे वर्णन का सार यह है कि यहाँ सब प्रिय ही वस्तुएँ हैं, जैसे स्थानों में रहना चाहते हैं वह सब वहाँ मौजूद हैं। ऐसा स्वर्ग आप स्वयं बना सकते हैं, इसी जीवन में उसका आनंद लूट सकते हैं, दूर जाने की जरूरत नहीं, जिस स्थान पर रह रहे हैं, वहीं उसकी रचना हो सकती है, क्या आप सचमुच ऐसा चाहते हैं? क्या अपनी ओंखों से इस जीवन में ही उस स्वर्ग की झाँकी करने के लिए सचमुच उत्सुक हैं? यदि हैं तो सच्चे हृदय से तैयार हो जाइए। अपने आत्मभाव को संकुचित मत रखिए वरन उसे निकटवर्ती लोगों के ऊपर बिना भेद-भाव के बिखेर दीजिए। धारा का स्पर्श करते ही अचेतन पडे हुए बल्व जगमगाने हैं, आपके आत्मभाव का स्पर्श होते ही समस्त संबंधित जन प्रेम पात्र बन जाएँगे, प्रिय लगने लगेंगे, उन प्रियजनों के बीच रहकर आप स्वर्ग जैसा आनंद अनुभव करेंगे।
संबंधित लोगों को अपना समझिए उनमें अपनापन रखिए। इस प्रकार उनमें यदि कुछ दोष भी होंगे तो वे प्रिय रूप में दृष्टिगोचर होंगे। अपनों के लिए स्वभावत: उनके दोषों को छिपाने और गुणों को प्रकट करने की वृत्ति रहती है, अपने प्यारे पुत्र के दोषों को कौन पिता प्रकट. करता है? वह तो उसकी प्रशंसा के ही पुल बाँधता रहता है। दुर्गुणी बालक को कोई न तो मार डालता है और न ही जेल पहुँचा देता है वरन सारी शक्तियों के साथ यह प्रयत्न किया जाता है कि किसी सरल उपाय से उसके दुर्गुण दूर हो जाएँ या कम हो जाएँ। यदि ऐसी ही वृत्ति अपने परिजनों के साथ रखें तो उनके अंदर जो बुरे तत्त्व विद्यमान हैं, वे घट जाएँगे, कम-से-कम आपके लिए वे निस्तेज हो ही जाएँगे। डाकू, हत्यारे, ठग, व्यभिचारी आदि लोग भी अपने सी, पुत्र, भाई, बहिन आदि के साथ अपने स्वभावों का उपयोग नहीं करते, सिंह अपने बाल-बच्चों को नहीं फाड़ खाता, इसी प्रकार जिनके प्रति आप आत्मभाव रखते हैं वे भी कम से कम आपके लिए तो दुखदायी न रहेंगे। महात्मा इमरसन कहा करते थे कि ' यदि मुझे नरक में रखा जाए तो मैं अपने सद्गुणों के कारण वहाँ भी स्वर्ग बना लूँगा। आप में यदि विवेक हो वे कुटुंबी, जिनके साथ आपका दिन-रात कलह होता है, आसानी से प्रेम पात्र बन सकते हैं।
.... क्रमशः जारी
✍🏻 पं श्रीराम शर्मा आचार्य
📖 आंतरिक उल्लास का विकास पृष्ठ ६