मनुष्यों पर ऋषियों का भी ऋण है। ऋषि का अर्थ है-वेद। वेद अर्थात् ज्ञान। आज तक जो हमारा विकास हुआ है, उसका श्रेय ज्ञान को है-ऋषियों को है। जिस तरह हम ज्ञान दूसरों से ग्रहण कर विकसित हुए हैं, उसी तरह अपने ज्ञान का लाभ औरों को भी देना चाहिए। यह हर विचारशील व्यक्ति का कर्त्तव्य है कि वह समाज के विकास में अपने ज्ञान का जितना अंशदान कर सकता हो, अवश्य करे।
बाढ़, भूकम्प, दुर्भिक्ष, महामारी, अतिवृष्टि, अनावृष्टि, युद्ध आदि दैवी प्रकोपों को मानव जाति के सामूहिक पापों का परिणाम माना गया है। निर्दोष व्यक्ति भी गेहूँ के साथ घुन की तरह पिसते हैं। वस्तुतः वे भी निर्दोष नहीं होते। सामूहिक दोषों को हटाने का प्रयत्न न करना, उनकी ओर उपेक्षा दृष्टि रखना भी एक पाप है। इस दृष्टि से निर्दोष दीखने वाले व्यक्ति भी दोषी सिद्ध होते हैं और उन्हें सामूहिक दण्ड का भागी बनना पड़ता है।
समाज में हो रही बुराइयों को रोकने के लिए ईश्वर ने सामूहिक जिम्मेदारी हर व्यक्ति को सौंपी है। उसका कर्त्तव्य है कि अनीति जहाँ कहीं भी हो रही है, उसे रोके, घटाने का प्रयत्न करे, विरोध करे, असहयोग बरते। जो भी तरीका उसको अनुकूल जँचे उसे अपनाये, पर कम से कम इतना तो होना ही चाहिए कि उस बुराई में अपना सहयोग प्रत्यक्ष और परोक्ष किसी भी रूप में न हो।
🌹 पं श्रीराम शर्मा आचार्य
बाढ़, भूकम्प, दुर्भिक्ष, महामारी, अतिवृष्टि, अनावृष्टि, युद्ध आदि दैवी प्रकोपों को मानव जाति के सामूहिक पापों का परिणाम माना गया है। निर्दोष व्यक्ति भी गेहूँ के साथ घुन की तरह पिसते हैं। वस्तुतः वे भी निर्दोष नहीं होते। सामूहिक दोषों को हटाने का प्रयत्न न करना, उनकी ओर उपेक्षा दृष्टि रखना भी एक पाप है। इस दृष्टि से निर्दोष दीखने वाले व्यक्ति भी दोषी सिद्ध होते हैं और उन्हें सामूहिक दण्ड का भागी बनना पड़ता है।
समाज में हो रही बुराइयों को रोकने के लिए ईश्वर ने सामूहिक जिम्मेदारी हर व्यक्ति को सौंपी है। उसका कर्त्तव्य है कि अनीति जहाँ कहीं भी हो रही है, उसे रोके, घटाने का प्रयत्न करे, विरोध करे, असहयोग बरते। जो भी तरीका उसको अनुकूल जँचे उसे अपनाये, पर कम से कम इतना तो होना ही चाहिए कि उस बुराई में अपना सहयोग प्रत्यक्ष और परोक्ष किसी भी रूप में न हो।
🌹 पं श्रीराम शर्मा आचार्य