शनिवार, 21 सितंबर 2019

👉 संस्कारो पर नाज

बेटा अब खुद कमाने वाला हो गया था ...
इसलिए बात-बात पर अपनी माँ से झगड़ पड़ता था ये वही माँ थी जो बेटे के लिए पति से भी लड़ जाती थी। मगर अब फाइनेसिअली इंडिपेंडेंट बेटा पिता के कई बार समझाने पर भी इग्नोर कर देता और कहता, "यही तो उम्र है शौक की,खाने पहनने की, जब आपकी तरह मुँह में दाँत और पेट में आंत ही नहीं रहेगी तो क्या करूँगा।"

बहू खुशबू भी भरे पूरे परिवार से आई थी, इसलिए बेटे की गृहस्थी की खुशबू में रम गई थी। बेटे की नौकरी अच्छी थी तो फ्रेंड सर्किल उसी हिसाब से मॉडर्न थी। बहू को अक्सर वह पुराने स्टाइल के कपड़े छोड़ कर मॉडर्न बनने को कहता, मगर बहू मना कर देती .....

वो कहता "कमाल करती हो तुम, आजकल सारा ज़माना ऐसा करता है, मैं क्या कुछ नया कर रहा हूँ। तुम्हारे सुख के लिए सब कर रहा हूँ और तुम हो कि उन्हीं पुराने विचारों में अटकी हो। क्वालिटी लाइफ क्या होती है तुम्हें मालूम ही नहीं।"

और बहू कहती "क्वालिटी लाइफ क्या होती है, ये मुझे जानना भी नहीं है, क्योकि लाइफ की क्वालिटी क्या हो, मैं इस बात में विश्वास रखती हूँ।"

आज अचानक पापा आई. सी. यू. में एडमिट हुए थे। हार्ट अटेक आया था। डॉक्टर ने पर्चा पकड़ाया, तीन लाख और जमा करने थे। डेढ़ लाख का बिल तो पहले ही भर दिया था मगर अब ये तीन लाख भारी लग रहे थे। वह बाहर बैठा हुआ सोच रहा था कि अब क्या करे।

उसने कई दोस्तों को फ़ोन लगाया कि उसे मदद की जरुरत है, मगर किसी ने कुछ तो किसी ने कुछ बहाना कर दिया। आँखों में आँसू थे और वह उदास था तभी खुशबू  खाने का टिफिन लेकर आई और बोली,"अपना ख्याल रखना भी जरुरी है। ऐसे उदास होने से क्या होगा? हिम्मत से काम लो, बाबू जी को कुछ नहीं होगा आप चिन्ता मत करो। कुछ खा लो फिर पैसों का इंतजाम भी तो करना है आपको मैं यहाँ बाबूजी के पास रूकती हूँ आप खाना खाकर पैसों का इंतजाम कीजिये। "पति की आँखों से टप-टप आँसू झरने लगे।

"कहा न आप चिन्ता मत कीजिये। जिन दोस्तों के साथ आप मॉडर्न पार्टियां करते हैं आप उनको फ़ोन कीजिये, देखिए तो सही, कौन कौन मदद को आता हैं। "पति खामोश और सूनी निगाहों से जमीन की तरफ़ देख रहा था। कि खुशबू का हाथ उसकी पीठ पर आ गया। और वह पीठ  को सहलाने लगी।

"सबने मना कर दिया। सबने कोई न कोई बहाना बना दिया खुशबू।आज पता चला कि ऐसी दोस्ती तब तक की है जब तक जेब में पैसा है। किसी ने भी हाँ नहीं कहा जबकि उनकी पार्टियों पर मैंने लाखों उड़ा दिये।"

"इसी दिन के लिए बचाने को तो माँ-बाबा कहते थे। खैर, कोई बात नहीं, आप चिंता न करो, हो जाएगा सब ठीक। कितना जमा कराना है?"

"अभी तो तनख्वाह मिलने में भी समय है, आखिर चिन्ता कैसे न करूँ खुशबू ?"

"तुम्हारी ख्वाहिशों को मैंने सम्हाल रखा है।"

"क्या मतलब....?"

"तुम जो नई नई तरह के कपड़ो और दूसरी चीजों के लिए मुझे पैसे देते थे वो सब मैंने सम्हाल रखे हैं। माँ जी ने फ़ोन पर बताया था, तीन लाख जमा करने हैं। मेरे पास दो लाख थे। बाकी मैंने अपने भैया से मंगवा लिए हैं। टिफिन में सिर्फ़ एक ही डिब्बे में खाना है बाकी में पैसे हैं।" खुशबू ने थैला टिफिन सहित उसके हाथों में थमा दिया।

"खुशबू ! तुम सचमुच अर्धांगिनी हो, मैं तुम्हें मॉडर्न बनाना चाहता था, हवा में उड़ रहा था। मगर तुमने अपने संस्कार नहीं छोड़े. आज वही काम आए हैं। "

सामने बैठी माँ के आँखो में आंसू थे उसे आज खुद के नहीं बल्कि पराई माँ के संस्कारो पर नाज था और वो बहु के सर पर हाथ फेरती हुई ऊपरवाले का शुक्रिया अदा कर रही थी।


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👉 आध्यात्मिक तेज का प्रज्वलित पुंज होता है चिकित्सक (भाग ६९)

👉 वातावरण की दिव्य आध्यात्किम प्रेरणाएँ

इन स्थूल एवं सूक्ष्म आवरणों के अतिरिक्त प्रत्येक स्थान में एक कारण आवरण की परत चढ़ी रहती है। यह परत वहाँ के वातास् यानि कि हवाओं में व्याप्त विचारों, भावनाओं व प्राण प्रवाह की होती है। इसी से व्यक्ति की सोच प्रेरित व प्रभावित होती है। इस सार के अनुरूप ही व्यक्तित्व विनिर्मित होते हैं। सामान्य क्रम में यह स्तर सकारात्मक व नकारात्मक विचारों, अच्छी व बुरी भावनाओं एवं प्रायः प्रदूषित प्राण प्रवाह का मिला- जुला मिश्रण होता है। इन दिनों इसकी स्थिति और भी बुरी हो गयी है। यही वजह है कि जन सामान्य प्रदूषित प्रेरणाओं से ग्रसित है। वह भ्रमित व भटका हुआ है। उसका तन- मन व जीवन बुरी तरह से बीमारियों की लपेट व चपेट में है।

परिवेश के परिदृश्य की चिन्ता सभी करते हैं, पर्यावरण को भी लेकर आन्दोलन खड़े किए जाते हैं, किन्तु प्रेरणाओं के स्रोत वातावरण की ओर किसी का भी ध्यान नहीं है। जबकि प्राचीन भारत इस दृष्टि से पूरी तरह समृद्ध व सम्पन्न था। स्थान- स्थान पर स्थापित तीर्थ, महामानवों की तपस्थली, सिद्धपीठ इस महान् आवश्यकता को पूरा करते थे। यहाँ के आध्यात्मिक वातावरण के सम्पर्क में व्यक्ति अपने जीवन के उच्च स्तरीय प्रेरणाओं से लाभान्वित होता था। आज तो तीर्थ स्थानों को भी हास- विलास व मनोरंजन का केन्द्र बना दिया गया है। भाव भरी प्रेरणाएँ वहाँ से नदारद हैं। यही वजह है कि मानवीय व्यक्तित्व दिन प्रतिदिन रुग्ण होता जा रहा है।

इसकी चिकित्सा के लिए आध्यात्मिक वातावरण का समर्थ सम्बल चाहिए, जैसा कि भारत के स्वाधीनता संघर्ष के दौर में था। इस सम्बन्ध में योगिवर महर्षि श्री अरविन्द के भ्राता वारीन्द्र ने अपने संस्मरणों को सुन्दर ढंग से संजोया है। उन्होंने लिखा था अपने व्यक्तित्व को उच्चस्तरीय बनाने के लिए हम युवाओं की आध्यात्मिक चिकित्सा भूमि दक्षिणेश्वर थी। इस पवित्र स्थान का स्मरण ही हम सबको नवस्फूर्ति से भर देता था। इसका कारण केवल यही था कि भगवान् श्री रामकृष्ण ने यहाँ पर अद्भुत व अपूर्व तपस्याएँ सम्पन्न की थी। यहाँ की मिट्टी में उनके तप के संस्कार थे। यहाँ की वृक्ष- वनस्पतियों में उच्चस्तरीय जीवन की भावनाएँ समायी थी। यहाँ की हवाओं में हम लोग उन महामानव के महाप्राण की अनुभूति पाते थे।

.... क्रमशः जारी
✍🏻 डॉ. प्रणव पण्ड्या
📖 आध्यात्मिक चिकित्सा एक समग्र उपचार पद्धति पृष्ठ ९६

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