🔶 प्रेम ब्रह्म रस की ही अनुभूति है। वह एक आत्मा दूसरे के प्रति करती है और मिलन से उत्पन्न होने वाला दिव्य आनन्द की अनुभूति होती है। किन्तु जब यह प्रेम शरीर से सम्बन्धित हो जाता है तो काम या मोह बन जाता हैं मोह तुच्छ है उसमें सुख क्षणिक और दुःख बहुत है।
🔷 ब्रह्म एक से अनेक हुआ। इसलिए कि अनेक से एक होने में जो आनन्द है उसका अनुभव करें। एक से उद्भूत हुए अनेक जीव, पुनः अनेक से एक होने के लिए प्रयत्नशील हैं। इस प्रयत्न में उन्हें जो आनन्द आता है उसे प्रेम कहते हैं। उस एक से मिलने के प्रयत्न में अनेक जीव आपस में भी मिलाते रहते है। जीव के ब्रह्म से पूर्ण मिलन को परमानन्द कहते है, उसी का आँशिक रूप आँशिक मिलन में अनुभव होता हे। एक आत्मा जब सच्चे हृदय से दूसरी आत्मा को प्यार करती है, मिलने को अग्रसर होती है तो उसे परमानन्द की एक झलक देखने का-प्रेम रख के आस्वादन का आनन्द मिलता है। इस संसार में यही सबसे बड़ा आनन्द है।
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