गुरुवार, 17 अगस्त 2023

👉 आत्मचिंतन के क्षण Aatmchintan Ke Kshan 17 Aug 2023

हम जिन्दगी जीने की कला सीखें। अपने दृष्टिकोण, चिन्तन, व्यवहार को कलात्मक बनायें। व्यवस्था का प्रत्येक क्रिया-कलाप में समावेश करें। सौंदर्यवान अपने प्रत्येक संबद्ध पदार्थ को स्वच्छ बनाये। अपने वचन और व्यवहार जीवन जिया जा सकता है। कलाकारिता का यह अति महत्वपूर्ण क्षेत्र हर किसी के सामने खुला पड़ा है-इस मार्ग पर कदम बढ़ाते हुए हममें से कोई भी सर्वोत्कृष्ट कलाकारिता की उपलब्धि का रसास्वादन कर सकता है।

जो करना है उसके गुण, दोषों पर-भली बुरी सम्भावनाओं पर हजार बार विचार करना चाहिए। उजेले ओर अँधेरे पक्षों की गम्भीरतापूर्वक विवेचना करनी चाहिए। इसमें थोड़ी देर लगती हो तो हर्ज नहीं। आवेशग्रस्त उतावली, मनःस्थिति में बढ़े-चढ़े निर्णय कर डालना और फिर प्रस्तुत कठिनाइयों को देखकर निराश हो बैठना बचकाना तरीका है। इससे अपनी हिम्मत टूटती है और जग हँसाई होती है। एक पक्षीय विचार करने की दुर्बलता ही अक्सर ऐसे कदम उठा देती है जो वर्तमान परिस्थितियोँ में नहीं उठाये जाने चाहिए थे। 

जो करना है उसके गुण, दोषों पर-भली बुरी सम्भावनाओं पर हजार बार विचार करना चाहिए। उजेले ओर अँधेरे पक्षों की गम्भीरतापूर्वक विवेचना करनी चाहिए। इसमें थोड़ी देर लगती हो तो हर्ज नहीं। आवेशग्रस्त उतावली, मनःस्थिति में बढ़े-चढ़े निर्णय कर डालना और फिर प्रस्तुत कठिनाइयों को देखकर निराश हो बैठना बचकाना तरीका है। इससे अपनी हिम्मत टूटती है और जग हँसाई होती है। एक पक्षीय विचार करने की दुर्बलता ही अक्सर ऐसे कदम उठा देती है जो वर्तमान परिस्थितियोँ में नहीं उठाये जाने चाहिए थे। 

✍🏻 पं श्रीराम शर्मा आचार्य

👉 जिन्दगी जीने की समस्या (भाग 3)

यह संसार एक कर्म भूमि है, व्यायामशाला है, विद्यालय है जिसमें प्रविष्ट होकर प्राणी अपनी आन्तरिक प्रतिभा को विकसित करता है और यह विकास ही अन्ततः आत्म कल्याण के रूप में परिणत हो जाता है। यह दुनियाँ भव बन्धन भी है, माया पाश भी है, नरक भी है, पर है उन्हीं के लिए जिनकी मनोभूमि अस्त-व्यस्त है जिनको जिन्दगी जीने की कला का ज्ञान नहीं है। सब के लिए यह दुनियाँ कुरूप नहीं है। दर्पण की तरह यह केवल उन्हें ही कुरूप दिखाई देती है जिनका अपना चेहरा बिगड़ा हुआ है।

महात्मा इमर्सन कहा करते थे, “मुझे नरक में भेज दो, मैं अपने लिए वही स्वर्ग बना लूँगा।” वे जानते थे कि दुनियाँ में चाहे कितनी ही बुराई और कमी क्यों न हो यदि मनुष्य स्वयं अपने आपको सुसंस्कृत बना ले तो उन बुराइयों की प्रतिक्रिया से बच सकता है। मोटर की कमानी-स्प्रिंग-बढ़िया हो तो सड़क के खड्डे उसको बहुत दचके नहीं देते। कमानी के आधार पर वह उन खड्डों की प्रतिक्रिया को पचा जाता है। सज्जनता में भी ऐसी ही विशेषता है, वह दुर्जनों को नंगे रूप में प्रकट होने का अवसर बहुत कम ही आने देती है। गीली लकड़ी को एक छोटा अंगारा जला नहीं पाता वरन् बुझ जाता है, दुष्टता भी सज्जनता के सामने जाकर हार जाती है।

फिर सज्जनता में एक दूसरा गुण भी तो है कि कोई परेशानी आ ही जाय तो उसे बिना सन्तुलन खोये, एक तुच्छ सी बात मानकर हँसते खेलते सहन कर लिया जाता है। इन विशेषताओं से जिसने अपने आपको अलंकृत कर लिया है उसका यह दावा करना उचित ही है कि “मुझे नरक में भेज दो मैं अपने लिए वही स्वर्ग बना लूँगा।” सज्जनता अपने प्रभाव से दुर्जनों पर भी सज्जनता की छाप छोड़ती ही है।

.... क्रमशः जारी
✍🏻 पं श्रीराम शर्मा आचार्य
📖 अखण्ड ज्योति, जून 1961 पृष्ठ 6

👉 प्रेरणादायक प्रसंग 30 Sep 2024

All World Gayatri Pariwar Official  Social Media Platform > 👉 शांतिकुंज हरिद्वार के प्रेरणादायक वीडियो देखने के लिए Youtube Channel `S...