ध्यान का तात्पर्य है बिखरे हुए विचारों को एक केंद्र पर केंद्रीभूत करना। यह एकाग्रता का अभ्यास, चिन्तन को नुकीला बनाता है। मोटे तार से कपड़ों को नहीं सिया जा सकता। पर जब इसकी पैनी नोंक निकाल दी जाती है तो कपड़े की सिलाई का प्रयोजन भली-भाँति पूरा हो सकता है। बिखराव में शक्तियों की अस्त व्यस्तता रहती है। पर जब उन्हें बटोरकर एक केंद्र के साथ बाँध दिया जाता है तो अच्छी बुहारने वाली झाडू बन जाती है। धागों को इकट्ठा करके कपड़ा बुना जाता है और तिनके रस्सी बन जाते हैं। मेले ठेलों की बिखरी भीड़ गन्दगी फैलाती और समस्या बनती है पर जब उन्हीं मनुष्यों को सैनिक अनुशासन में बाँध दिया जाता है तब ये ही देश की सुरक्षा संभालते हैं, शत्रुओं के दाँत खट्टे करते हैं और बेतुकी भीड़ को नियम मर्यादाओं में रखने का काम करते हैं। बिखरे घास-पात को समेटकर चिड़ियाँ मजबूत घोंसले बना लेती हैं और उनमें बच्चों समेत निवास करती हैं।
विचारों को दिशाबद्ध रखने वाले विद्वान, साहित्यकार, कलाकार, वैज्ञानिक, शिल्पी, विशेषज्ञ, दार्शनिक बन जाते हैं। पर जिनका मन उखड़ा-उखड़ा रहता है वे समस्त सुविधा साधन होते हुए भी आवारागर्दी में जीवन बिता देते हैं। अर्जुन के द्रौपदी स्वयंवर जीतने की कथा प्रसिद्ध है। उसकी समूची एकाग्रता मछली की आँख पर जमाई थी और लक्ष्य वेध लिया था। जब कि दूसरे राजकुमार चित्त के चंचल रहने पर वैसे ही धनुष-बाण रहने पर असफल होकर रह गये थे। निशाने वही ठिकाने पर बैठते हैं जो लक्ष्य के साथ अपनी दृष्टि एकाग्र कर लेते हैं।
अध्यात्म प्रयोजन में कल्पना और भावना का एकीकरण करते हुए किसी उच्च केंद्र पर केंद्रीभूत करने का अभ्यास कराया जाता है इसे ध्यान कहते हैं। ध्यान की क्षमता सर्वविदित है। कामुक चिन्तन में डूबे रहने वालों को स्वप्नदोष होने लगते हैं। टहलने के साथ स्वास्थ्य सुधार की भावना करने वाले तगड़े होते जाते हैं पर दिन भर घूमने वाले पोस्ट मैन या उसी कार्य को भारभूत मानने वाले उस अवसर का कोई लाभ नहीं उठ पाते। पहलवान की भुजायें मजबूत हो जाती हैं किन्तु दिन भर लोहा पीटने वाले लुहार को कोई लाभ नहीं होता। इस अन्तर का एक ही कारण है भावनाओं का सम्मिश्रण होना और दूसरे का वैसा न कर पाना।
विचारों को दिशाबद्ध रखने वाले विद्वान, साहित्यकार, कलाकार, वैज्ञानिक, शिल्पी, विशेषज्ञ, दार्शनिक बन जाते हैं। पर जिनका मन उखड़ा-उखड़ा रहता है वे समस्त सुविधा साधन होते हुए भी आवारागर्दी में जीवन बिता देते हैं। अर्जुन के द्रौपदी स्वयंवर जीतने की कथा प्रसिद्ध है। उसकी समूची एकाग्रता मछली की आँख पर जमाई थी और लक्ष्य वेध लिया था। जब कि दूसरे राजकुमार चित्त के चंचल रहने पर वैसे ही धनुष-बाण रहने पर असफल होकर रह गये थे। निशाने वही ठिकाने पर बैठते हैं जो लक्ष्य के साथ अपनी दृष्टि एकाग्र कर लेते हैं।
अध्यात्म प्रयोजन में कल्पना और भावना का एकीकरण करते हुए किसी उच्च केंद्र पर केंद्रीभूत करने का अभ्यास कराया जाता है इसे ध्यान कहते हैं। ध्यान की क्षमता सर्वविदित है। कामुक चिन्तन में डूबे रहने वालों को स्वप्नदोष होने लगते हैं। टहलने के साथ स्वास्थ्य सुधार की भावना करने वाले तगड़े होते जाते हैं पर दिन भर घूमने वाले पोस्ट मैन या उसी कार्य को भारभूत मानने वाले उस अवसर का कोई लाभ नहीं उठ पाते। पहलवान की भुजायें मजबूत हो जाती हैं किन्तु दिन भर लोहा पीटने वाले लुहार को कोई लाभ नहीं होता। इस अन्तर का एक ही कारण है भावनाओं का सम्मिश्रण होना और दूसरे का वैसा न कर पाना।
✍🏻 पं श्रीराम शर्मा आचार्य
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