🔵 ध्यान की गहराइयों में जब सब कुछ शांत था तब श्री -गुरुदेव ने उपस्थित हो कर कहा: - वत्स! शक्ति जो कि जगन्माता का स्वरूप है उस पर ध्यान करो, और तब सभी भयों से ऊपर उठ कर, यह शक्ति प्रेरित करती है और तब तुम शक्ति से परे स्वयं जगन्माता की सत्ता में चले जाओगे जो कि मात्र शांति है। जीवन की अनिश्चितताओं से भयभीत न होओ यद्यपि भयंकर के सभी रूप अपने को सहस्र गुण करते प्रतीत होते हैं, किन्तु स्मरण रखो उनका प्रभाव केवल भौतिक जगत पर ही होता है, आध्यात्मिक आत्मा पर नहीं। ठीक ठीक यह जान कर कि आत्मा अविनाशी है, अटल एवं दृढ़ रहो।
🔵 आत्मा को ही अपना अवलंबन बनाओ। -सत्य जो कि सहज तथा सब में समान है उसके अतिरिक्त और किसी वस्तु में विश्वास न करो। तुम भौतिक जगत के विक्षोभ तथा प्रलोभनों में समान रूप से अविचल रह पाओगे। जो आता जाता है वह आत्मा नहीं है। स्वयं को आत्मा के साथ एक करो, शरीर के साथ नहीं। दृश्य जगत् की वस्तुओं में ही अस्थिरता का प्रभुत्व है। शाश्वत द्रष्टा के जगत में स्थिरता का अस्तित्व रु जहाँ विचारों तथा इन्द्रियों से मुक्त आत्मा का चैतन्य ही राज्य करता है।
🔴 जो सत्य है वह महासमुद्र के समान अपरिमेय है। उसे कोई भी वस्तु न तो बाँध सकती है और न ही सीमाबद्ध कर सकती है। आध्यात्मिकता का कूलरहित समुद्र जो कि अनुभूति की ऊँचाइयों में आत्मा में आत्मा के रूप में ही भासता है उसे व्यक्त जगत के विधेयों से अभिव्यक्त नहीं किया जा सकता।
🌹 क्रमशः जारी
🌹 एफ. जे. अलेक्जेन्डर