गुरुवार, 5 जुलाई 2018

👉 भाई कब मरेगा?

🔷 एक गांव था जहां सभी धर्म-जाति के लोग निवास करते थे। उसी गांव में एक गरीब किसान अपने परिवार के साथ रहता था।  यह दर्दनाक घटना उसी किसान परिवार की है जिसमें परिवार का मुखिया, उसकी पत्नी और  दो बच्चे थे। घर का मुखिया एक लम्बे अर्से से बीमार था जो जमा पूंजी थी, वह डाक्टरों की फीस व दवाखानों में खत्म हो चुकी थी लेकिन वह अभी भी चारपाई से लगा हुआ था और एक दिन इसी हालत में अपने बच्चों को अनाथ कर इस दुनिया से चला गया।

🔶 मुसीबत का मारा परिवार खाने-पीने का मोहताज हो गया मगर लोग अपने काम-धंधों में लग चुके थे। किसी ने भी इस परिवार की ओर ध्यान नहीं दिया। बच्चे अक्सर बाहर निकल कर सामने वाले मकान की चिमनी से निकलने वाले धुएं को आस लगाए देखते रहते। नादान बच्चे समझ रहे थे कि उनके लिए खाना तैयार हो रहा है। पर मां तो मां होती है उसने घर में रोटी के कुछ सूखे टुकड़े ढूंढ निकाले। इन टुकड़ों से बच्चों को जैसे-तैसे बहला-फुसला कर सुला दिया।

🔷 अगले दिन फिर भूख सामने खड़ी थी। घर में था ही क्या, जिसे बेचा जाता, फिर भी काफी देर खोज के बाद चार चीजें निकल आईं जिन्हें बेचकर शायद दो समय के भोजन की व्यवस्था हो गई। बाद में वह पैसा भी खत्म हो गया। भूख से तड़पते बच्चों का चेहरा मां से देखा नहीं गया। सातवें दिन मां अपने बच्चों के लिए मोहल्ले के पास वाली दुकान पर जा खड़ी हुई। दुकानदार से महिला ने उधार कुछ राशन मांगा तो दुकानदार ने साफ इंकार कर दिया। एक तो पिता के मरने से अनाथ होने का दुख और ऊपर से लगातार भूख से तड़पने के कारण उसके सात साल के बेटे की हिम्मत जवाब दे गई और वह बुखार से पीड़ित होकर चारपाई पर पड़ गया।

🔶 बेटे के लिए दवा कहां से लाती, खाने तक का तो ठिकाना था नहीं। तीनों एक घर के कोने में सिमटे पड़े थे। मां बुखार से आग बने बेटे के सिर पर पानी की पट्टियां रख रही थी। तब पांच साल की छोटी बहन अचानक उठी, मां के कान से मुंह लगाकर बोली, ‘‘मां भाई कब मरेगा?’’

🔷 मां के दिल पर मानो जैसे तीर चल गया, तड़प कर उसे छाती से लिपटा लिया और पूछा, ‘‘मेरी बच्ची तुम यह क्या कह रही हो?’’

🔶 बच्ची मासूमियत से बोली, ‘‘हां मां! भाई मरेगा तो लोग खाना देने आएंगे न?’’

🔷 मां यह सुन कर तड़प उठी। इसलिए अपनी दौलत को धर्म के नाम पर चढ़ावा चढ़ाने की बजाय किसी असहाय भूखे को खाना खिलाकर पुण्य प्राप्त करें, इससे सारे जहां के मालिक भी खुश होंगे और आपके मन को भी सुकून मिलेगा।

👉 आज का सद्चिंतन 5 July 2018


👉 प्रेरणादायक प्रसंग 5 July 2018


👉 Worship Interrupted to Help the Needy

🔷 King Vikramaditya had gone out for hunting. He lost his way in a very dense and dark forest. His soldiers were left behind and he was all alone. In the dreadful forest the King could not find water and his throat was choking with thirst. Suddenly he saw a hut nearby. He went in and saw a holy man in deep meditation. The King then fell down and lost his consciousness.

🔶 When King Vikramaditya regained his consciousness he was surprised to see that the holy man was washing his face, fanning him and gave him water to drink. The King quickly stood up and asked with folded hands, "O Holy one, why did you interrupt your meditation and the worship of God for me?" The saint replied in a soft voice, "Son, it is the wish of God that no one in this world should suffer. Fulfillment of God's wish is very important for me. Worship of God can succeed only by the service of mankind"

📖 From Pragya Puran

👉 ज्योति फिर भी बुझेगी नहीं (भाग 2)

🔷 इन दोनों की सफलता का श्रेय समर्पित प्रतिभाओं को ही दिया जाता है। वे अपने आप ही नहीं उपज पड़ी थीं, वरन किन्हीं चतुर चितेरों द्वारा गढ़ी गई थीं। अपने को कुछ बना लेना एक बात है, किन्तु अपने समकक्ष सहधर्मी-सहकर्मी विनिर्मित कर देना सर्वथा दूसरी। ऐसी संस्थापनाएँ यदा-कदा ही कोई विरले कर पाते है। उन्हीं को देखकर सर्वसाधारण को यह अनुभव होता है कि परिष्कृत व्यक्तित्वों की कार्य क्षमता किस स्तर की कितनी सक्षम होती है और वह जनमानस के उलटी दिशा में बहते प्रवाह को किस सीमा तक उलट सकने में समर्थ होती है।

🔶 कई सोचते है कि वर्तमान विभूतियाँ सफलताएँ गुरु जी-माताजी की प्रचण्ड जीवन साधना और प्रबल पुरुषार्थ को दिशाबद्ध रखने का प्रतिफल है। जबकि बात दूसरी है। शरीर ही प्रत्यक्षतः सारे क्रियाकृत्य करते दीखता है, पर सूक्ष्मदर्शी जानते है कि यह उसके भीतर अदृश्य रूप से विद्यमान प्राण चेतना का प्रतिफल है। जिन्हें मिशन के सूत्र संचालक की सराहना करने का मन करें उन्हें एक क्षण रुकना चाहिए और खोजना चाहिए कि क्या एकाकी व्यक्ति बिना किसी अदृश्य सहायता के लंका जलाने, पहाड़ उखाड़ने और समुद्र लाँघने जैसे चमत्कार दिखा सकता है। उपरोक्त घटनाएँ हनुमान के शरीर द्वारा भले ही सम्पन्न की गई हो; पर उनके पीछे राम का अदृश्य अनुदान काम कर रहा था। निजी रूप से तो हनुमान वही सामान्य वानर थे जो बालि के भय से भयभीत जान बचाने के लिए छिपे हुए सुग्रीव की टहल चाकरी करते थे और राम-लक्ष्मण के उस क्षेत्र में पहुँचने पर वेष बदल कर नव आगन्तुकों की टोह लेने पहुँचे थे।

🔷 बीज के वृक्ष बनने का चमत्कार सभी देखते है, पर अनेक बार क्षुद्र को महान, नर को नारायण, पुरुष को पुरुषोत्तम बनते भी देखा जाता है। ऐसे कायाकल्पों में किसी अदृश्य सत्ता की परोक्ष भूमिका काम करती पाई जाती है। शिवाजी और चन्द्रगुप्त किन्हीं अदृश्य सूत्र संचालकों के अनुग्रह से वैसा कुछ करने में समर्थ हुए, जिसके लिए उन्हें असाधारण श्रेय और यश मिला। विवेकानन्द की कथा-गाथा भी ठीक ऐसी ही है।

.... क्रमशः जारी
✍🏻 पं श्रीराम शर्मा आचार्य
📖 अखण्ड ज्योति जनवरी पृष्ठ 28
http://literature.awgp.org/akhandjyoti/1988/January/v1.28

👉 अखंड ज्योति का प्रधान उद्देश्य (भाग 1)

🔷 अखंड ज्योति के जीवन का प्रधान उद्देश्य ‘धर्म की सेवा’ है। यह धर्म की पूजा के लिये ही प्रकट हुई है और इसी उद्देश्य की पूर्ति के लिए इसे जीवित रहना है। जिसका प्राण ही धर्म में पिरोया हुआ हो, वह अपने ईष्ट पर इस प्रकार की आपत्ति आते देखकर, उसे लाँछित और तिरस्कृत होते देखकर, मार्मिक वेदना का अनुभव करती है “प्रत्येक व्यक्ति धार्मिक बने” यह उपदेश करने के साथ हम धर्म के वर्तमान स्वरूप में शोधन भी करना चाहते हैं।

🔶 हम अनुभव करते हैं कि सदियों की पराधीनता गरीबी और अज्ञान ने धर्म के वास्तविक स्वरूप को बहुत ही विकृत, दोषपूर्ण, एवं जर्जरित कर दिया है, अनेक छिद्रों के कारण उसका वर्तमान स्वरूप छलनी की तरह छिरछिरा हो गया है, जिससे राष्ट्र की उच्चतम सद्भावनाओं के साथ डाली हुई पञ्चमाँश शक्ति नीचे गिर पड़ती है और छलनी में दूध दुहने वाले के समान केवल पश्चात्ताप और निराशा ही प्राप्त होती है।

🔷 सद्भावना से प्रेरित होकर आत्मोद्धार के लिए जो लोकोपकारी कार्य किये जाते हैं, वे धर्म कहलाते हैं।” धर्म की इस मूलभूत आधार शिला के ऊपर हमें देश काल की स्थिति के अनुसार नवीन कर्मकाँडों की रचना करनी होगी। दूध रखने के लिये छेदों वाले बर्तन को हटाना होगा, जिसमें से कि सारा दूध चू कर मिट्टी में मिल जाता है। ईश्वर की सच्ची उपासना उसकी चलती फिरती प्रतिमाओं से प्रेम करने में है। परमार्थ की वेदी पर अपने निजी तुच्छ स्वार्थों को बलिदान करना धर्म हैं।

🔶 धर्म और ईश्वर की सच्चे अर्थों में पूजा करने वाले व्यक्तियों का कार्य-क्रम वर्तमान परिस्थितियों में अपने आस-पास छाये हुए अज्ञान और दारिद्र के घोर अन्धकार को दूर हटाना होगा। अविद्या के कारण हमारी कौम अंधेरे में टकराती फिर रही है, दरिद्रता के कारण हमारा देश पशुओं से भी गया बीता दयनीय जीवन बिता रहा है। जिसके हृदय में धर्म हैं, उसके हृदय में दया करुणा और प्रेम के लिये स्थान अवश्य होगा। जो व्यक्ति धर्म के नाम पर माला तो सारे दिन जपता है, पर बीमार पड़ौसी की सेवा के लिये आधा घंटा की भी फुरसत नहीं पाता, हमें संदेह होगा कि वह कहीं धर्म की विडम्बना तो नहीं कर रहा है।

.... क्रमशः जारी
✍🏻 पं श्रीराम शर्मा आचार्य
📖 अखण्ड ज्योति सितंबर 1942 पृष्ठ 7
http://literature.awgp.org/akhandjyoti/1942/September/v1.6

👉 प्रेरणादायक प्रसंग 30 Sep 2024

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