🔵 यदि सचमुच ही विचारशीलता का युग आ रहा है तो नर और नारी दोनों को ही सीधे सादे सौम्य और लगभग एक जैसे कपड़े पहनने चाहिए। इससे दोनों ही वर्गों में समानता का भाव पैदा होगा। नारी सजधज कर जब गुड़िया बनकर निकलती है, अपनी शील अंगों को रंगों से, आकर्षक वस्त्रों तथा उपकरणों से सजाकर निकलती है तो इसका अर्थ यह होता है कि उसने अपने को रमणी-कामिनी के रूप में प्रस्तुत किया। यह नारी का हेय एवं लगभग अश्लील स्वरूप है। प्रगतिशीलता के इस युग में नारी को लगभग नर जैसी सज्जा पर सन्तोष करना होगा। अश्लीलता के विरुद्ध आवाज बुलन्द करते हुए हमें आकर्षक एवं कामुकता भड़काने वाले वस्त्र शृंगार का समापन ही करना चाहिए ताकि नारी के प्रति सहज श्रद्धाभाव बढ़े।
🔴 इरेशम नाइलोन की ऐसी साड़ियां या वस्त्र जिनमें नग्नता ढकने के लिए नीचे दुहरा वस्त्र पहनना पड़े, शालीनता के विपरीत है। वर्षा होने लगे और कपड़े भीग जायें अथवा नदी तालाब आदि में खुला स्नान करना पड़े तो ऐसे वस्त्र लज्जा जनक स्थिति पैदा कर देते हैं, सारा शरीर नंगा दिखने लगता है। कई बार तो वर्षा न होने पर भी महीन वस्त्र पहनने वाले की बेइज्जती करते हैं। वक्षस्थल और कमर भी ऐसे स्थान हैं जिन्हें शील परम्परा के अनुसार ढका रहना चाहिए। जिन वस्त्रों के पहनते ही कटि प्रदेश खुला दीखे उन्हें अश्लीलता की श्रेणी में गिना जा सकता है। वक्षस्थल और उभार ढके रहने के लिए चुनरी ओढ़ने का रिवाज रहा है अब उसके स्थान पर कृत्रिम उभार प्रदर्शित करने वाले झीनी चुनरी पहनना ऐसा है जिन पर दर्शकों की अनायास दृष्टि जाती है और उन अंगों को गोपनीय रखने की परम्परा का उल्लंघन होता है।
🔵 आभूषणों में सभी ऐसे हैं जिन्हें नारी को गुड़िया बनाने की लज्जित स्थिति में ले जाने वाला कहा जा सकता है। विशेषतया नाक कान के बड़े आकार के आभूषण चेहरे को घूर-घूर कर देखने का निमंत्रण देते हैं। होठों का रंगना भी ऐसा ही निमंत्रण है जो मनचले दर्शकों को कामुक दृष्टि से देखने का निमंत्रण देते हैं।
🔵 सादगी सबसे बड़ी शोभा है। विशेषतया जबकि कामुकता की धूम है, लोगों की कुदृष्टि बढ़ रही है। ऐसी सज्जा वाली महिलाओं के सम्बन्ध में अनुपयुक्त मान्यता बनाई जाती है और छेड़खानी की जाती है। शालीनता की माँग यही है कि सादे वस्त्र पहने जाएँ। इसके पहनने वाले का पैसा बचता है। आदर्शवादी पहनाव को देखकर यह अनुमान लगता है कि यहाँ ऐसा मानस तथा निर्धारण है जिसे सौम्य कहा जाय। नर और नारी एक समान का सिद्धान्त जब भी जहाँ भी प्रकट करना होगा तो सजावट वाले कपड़ों और आभूषणों का मोह छोड़ना ही होगा। सौम्य शालीनता एवं आदर्शवादिता के विस्तार के अतिरिक्त यौन संपर्क सम्बन्धी भ्रान्ति निवारण हेतु भी यह अनिवार्य है कि परिधान-मुद्रादि की पवित्रता पर अधिक ध्यान दिया जाए। यह प्रयोजन अनावश्यक प्रतिबन्धों से सम्भव नहीं। इसके लिए तो नर एवं नारी दोनों को स्वेच्छा से सद्भाव की महत्ता समझनी होगी, ताकि वे सौजन्य से साथ रह जीवन शकट चलाते रह सकें एवं प्रगति की दिशा में एक दूसरे के पूरक बन सकें।
🌹 समाप्त
🌹 पं श्रीराम शर्मा आचार्य
🌹 अखण्ड ज्योति अक्टूबर 1984 पृष्ठ 46
http://literature.awgp.org/akhandjyoti/1984/October/v1.46
🔴 इरेशम नाइलोन की ऐसी साड़ियां या वस्त्र जिनमें नग्नता ढकने के लिए नीचे दुहरा वस्त्र पहनना पड़े, शालीनता के विपरीत है। वर्षा होने लगे और कपड़े भीग जायें अथवा नदी तालाब आदि में खुला स्नान करना पड़े तो ऐसे वस्त्र लज्जा जनक स्थिति पैदा कर देते हैं, सारा शरीर नंगा दिखने लगता है। कई बार तो वर्षा न होने पर भी महीन वस्त्र पहनने वाले की बेइज्जती करते हैं। वक्षस्थल और कमर भी ऐसे स्थान हैं जिन्हें शील परम्परा के अनुसार ढका रहना चाहिए। जिन वस्त्रों के पहनते ही कटि प्रदेश खुला दीखे उन्हें अश्लीलता की श्रेणी में गिना जा सकता है। वक्षस्थल और उभार ढके रहने के लिए चुनरी ओढ़ने का रिवाज रहा है अब उसके स्थान पर कृत्रिम उभार प्रदर्शित करने वाले झीनी चुनरी पहनना ऐसा है जिन पर दर्शकों की अनायास दृष्टि जाती है और उन अंगों को गोपनीय रखने की परम्परा का उल्लंघन होता है।
🔵 आभूषणों में सभी ऐसे हैं जिन्हें नारी को गुड़िया बनाने की लज्जित स्थिति में ले जाने वाला कहा जा सकता है। विशेषतया नाक कान के बड़े आकार के आभूषण चेहरे को घूर-घूर कर देखने का निमंत्रण देते हैं। होठों का रंगना भी ऐसा ही निमंत्रण है जो मनचले दर्शकों को कामुक दृष्टि से देखने का निमंत्रण देते हैं।
🔵 सादगी सबसे बड़ी शोभा है। विशेषतया जबकि कामुकता की धूम है, लोगों की कुदृष्टि बढ़ रही है। ऐसी सज्जा वाली महिलाओं के सम्बन्ध में अनुपयुक्त मान्यता बनाई जाती है और छेड़खानी की जाती है। शालीनता की माँग यही है कि सादे वस्त्र पहने जाएँ। इसके पहनने वाले का पैसा बचता है। आदर्शवादी पहनाव को देखकर यह अनुमान लगता है कि यहाँ ऐसा मानस तथा निर्धारण है जिसे सौम्य कहा जाय। नर और नारी एक समान का सिद्धान्त जब भी जहाँ भी प्रकट करना होगा तो सजावट वाले कपड़ों और आभूषणों का मोह छोड़ना ही होगा। सौम्य शालीनता एवं आदर्शवादिता के विस्तार के अतिरिक्त यौन संपर्क सम्बन्धी भ्रान्ति निवारण हेतु भी यह अनिवार्य है कि परिधान-मुद्रादि की पवित्रता पर अधिक ध्यान दिया जाए। यह प्रयोजन अनावश्यक प्रतिबन्धों से सम्भव नहीं। इसके लिए तो नर एवं नारी दोनों को स्वेच्छा से सद्भाव की महत्ता समझनी होगी, ताकि वे सौजन्य से साथ रह जीवन शकट चलाते रह सकें एवं प्रगति की दिशा में एक दूसरे के पूरक बन सकें।
🌹 समाप्त
🌹 पं श्रीराम शर्मा आचार्य
🌹 अखण्ड ज्योति अक्टूबर 1984 पृष्ठ 46
http://literature.awgp.org/akhandjyoti/1984/October/v1.46