🔶 होशियारी अच्छी है पर समझदारी उससे भी ज्यादा अच्छी है क्योंकि समझदारी उचित अनुचित का ध्यान रखती है!
🔷 एक नगर के बाहर एक गृहस्थ महात्मा जी रहते थे और उनके आश्रम मे दुर दुर से विद्यार्थी शिक्षा ग्रहण करने को आते थे और महात्मा जी भी सभी को समान रुप से शिक्षा देते थे!
🔶 एक बार एक युवक उनके पास आया जो बहुत ही होशियार था और उसने कहा की मैं भी आपके आश्रम मे शिक्षा-दीक्षा लेना चाहता हुं तो महात्मा जी ने कहा की ठीक है! फिर वो उस युवक को लेकर दुर नगर गये और वहाँ से जब वापस लोट रहे थे तो महात्मा जी बार बार अपने थेले को देख रहे थे और युवक इस दृश्य को बराबर देख रहा था! और फिर एक नदी के किनारे महात्मा जी ने कहा वत्स रात्री मे अब हम यही पर विश्राम करते है सुबह ही यहाँ से आश्रम के लिये निकलेंगे और पुरी रात महात्मा जी उस थेले को बारबार देख रहे थे! वो युवक बारबार उन्हे देख रहा था!
🔷 महात्मा जी ने कहा की वत्स तुम यही बैठना और इस थैले को सम्भाल के रखना मैं नदी मे स्नान कर के आता हुं और पहले महात्मा जी स्नान करने को गये और फिर वो युवक गया फिर दोनो आश्रम पहुँचे और जब वहाँ पहुँचे और जब थैले को देखा तो महात्मा जी की आँखो से आँसु आने लगे जब उस युवक ने महात्मा जी से पुछा की हॆ देव इन आँसुओं का क्या कारण है और जब महात्मा जी ने कारण बताया तो वो युवक रोने लगा और वो युवक वहाँ से चला गया !
🔶 महात्मा जी के थैले मे एक सोने की ईंट थी जो एक राजा ने उन्हे परमार्थ हेतु दी थी और महात्मा जी सोच रहे थे की इस ईंट से आश्रम मे रहने वाले विद्यार्थियों के लिये कुछ अच्छे पक्के भवन का निर्माण करवा देंगे ताकि सर्दी गर्मी बरसात से उनकी रक्षा हो सके उनकी जिंदगियों का अच्छे से निर्माण हो सकेगा और गायों के लिये भी सालभर की चारे की व्यवस्था हो जायेगी और परमार्थ के अनेक कार्य सम्पुर्ण हो सकेंगे! और युवक ने सोचा की महात्मा जी का अभी भी सोने मे मोह है और महात्मा जी ठहरे गृहस्थी कही वो भटक न जायें और उसने सोने की ईंट को नदी के बहाव मे फेंक दिया और थैले मे एक पत्थर रख दिया और बड़ा खुश होने लगा की मैंने महात्मा जी को मोह से मुप्त कर दिया!
🔷 पर जब युवक ने सत्य कहा तो महात्मा जी ने कहा वत्स विवाह न करना बड़ी बात नही है बड़ी बात है विवाह करके नियम और संयम मे जीना और धन का त्याग करना बड़ी बात नही है बड़ी बात तो तब है की तुम्हारे पास धन है पर तुम्हारे मन मे उसके प्रति उदासीनता का भाव है उस धन के प्रति तुम्हारे मन मे कोई आसक्ति अथवा कोई मोह न हो!
मेरी चिन्ता का जो कारण था वो ये था की परमार्थ की जो जिम्मेदारी मुझे सोपी कही मॆरी लापरवाही से कोई अनहोनी न हो जायें और परमार्थ का कार्य कही रुक न जायें! उस सोने की ईंट के बारे मे मुझे भी पुछ सकते थे वत्स पर वत्स तुमने आवश्यकता से ज्यादा होशियारी दिखाई तुमने अपनी ही बुद्धी से सारे निर्णय अपने आप ही ले लिये होशियारी होना अच्छी बात है पर समझदारी होना ज्यादा जरूरी है!
🔶 फिर उस युवक ने कहा देव मैं बहुत बड़ा अपराधी हुं और जब तक पश्चात्ताप न कर लू तब तक मैं आपको अपना मुँह न दिखाउँगा और फिर कुछ समय बाद वो युवक वापिस लौटा और उसने महात्मा जी के सारे सपनो को साकार किया!
🔷 उसके पास जो कुछ भी था वो सबकुछ बेच आया और अपने अपराध का पश्चात्ताप किया!
🔶 इसलिये एक बात हमेशा ध्यान रखनी चाहिये की कभी कभी आवश्यकता से ज्यादा होशियारी दिखाने पर नुकसान उठाना पड़ सकता है होशियारी अच्छी है पर आवश्यकता से ज्यादा होशियारी दुखदायी हो जाती है!
🔷 इसलिये होशियारी के साथ साथ समझदारी भी बहुत जरूरी है क्योंकि होशियारी उचित अनुचित नही देखती है पर समझदारी उचित अनुचित देखकर आगे बढ़ती है!
🔷 एक नगर के बाहर एक गृहस्थ महात्मा जी रहते थे और उनके आश्रम मे दुर दुर से विद्यार्थी शिक्षा ग्रहण करने को आते थे और महात्मा जी भी सभी को समान रुप से शिक्षा देते थे!
🔶 एक बार एक युवक उनके पास आया जो बहुत ही होशियार था और उसने कहा की मैं भी आपके आश्रम मे शिक्षा-दीक्षा लेना चाहता हुं तो महात्मा जी ने कहा की ठीक है! फिर वो उस युवक को लेकर दुर नगर गये और वहाँ से जब वापस लोट रहे थे तो महात्मा जी बार बार अपने थेले को देख रहे थे और युवक इस दृश्य को बराबर देख रहा था! और फिर एक नदी के किनारे महात्मा जी ने कहा वत्स रात्री मे अब हम यही पर विश्राम करते है सुबह ही यहाँ से आश्रम के लिये निकलेंगे और पुरी रात महात्मा जी उस थेले को बारबार देख रहे थे! वो युवक बारबार उन्हे देख रहा था!
🔷 महात्मा जी ने कहा की वत्स तुम यही बैठना और इस थैले को सम्भाल के रखना मैं नदी मे स्नान कर के आता हुं और पहले महात्मा जी स्नान करने को गये और फिर वो युवक गया फिर दोनो आश्रम पहुँचे और जब वहाँ पहुँचे और जब थैले को देखा तो महात्मा जी की आँखो से आँसु आने लगे जब उस युवक ने महात्मा जी से पुछा की हॆ देव इन आँसुओं का क्या कारण है और जब महात्मा जी ने कारण बताया तो वो युवक रोने लगा और वो युवक वहाँ से चला गया !
🔶 महात्मा जी के थैले मे एक सोने की ईंट थी जो एक राजा ने उन्हे परमार्थ हेतु दी थी और महात्मा जी सोच रहे थे की इस ईंट से आश्रम मे रहने वाले विद्यार्थियों के लिये कुछ अच्छे पक्के भवन का निर्माण करवा देंगे ताकि सर्दी गर्मी बरसात से उनकी रक्षा हो सके उनकी जिंदगियों का अच्छे से निर्माण हो सकेगा और गायों के लिये भी सालभर की चारे की व्यवस्था हो जायेगी और परमार्थ के अनेक कार्य सम्पुर्ण हो सकेंगे! और युवक ने सोचा की महात्मा जी का अभी भी सोने मे मोह है और महात्मा जी ठहरे गृहस्थी कही वो भटक न जायें और उसने सोने की ईंट को नदी के बहाव मे फेंक दिया और थैले मे एक पत्थर रख दिया और बड़ा खुश होने लगा की मैंने महात्मा जी को मोह से मुप्त कर दिया!
🔷 पर जब युवक ने सत्य कहा तो महात्मा जी ने कहा वत्स विवाह न करना बड़ी बात नही है बड़ी बात है विवाह करके नियम और संयम मे जीना और धन का त्याग करना बड़ी बात नही है बड़ी बात तो तब है की तुम्हारे पास धन है पर तुम्हारे मन मे उसके प्रति उदासीनता का भाव है उस धन के प्रति तुम्हारे मन मे कोई आसक्ति अथवा कोई मोह न हो!
मेरी चिन्ता का जो कारण था वो ये था की परमार्थ की जो जिम्मेदारी मुझे सोपी कही मॆरी लापरवाही से कोई अनहोनी न हो जायें और परमार्थ का कार्य कही रुक न जायें! उस सोने की ईंट के बारे मे मुझे भी पुछ सकते थे वत्स पर वत्स तुमने आवश्यकता से ज्यादा होशियारी दिखाई तुमने अपनी ही बुद्धी से सारे निर्णय अपने आप ही ले लिये होशियारी होना अच्छी बात है पर समझदारी होना ज्यादा जरूरी है!
🔶 फिर उस युवक ने कहा देव मैं बहुत बड़ा अपराधी हुं और जब तक पश्चात्ताप न कर लू तब तक मैं आपको अपना मुँह न दिखाउँगा और फिर कुछ समय बाद वो युवक वापिस लौटा और उसने महात्मा जी के सारे सपनो को साकार किया!
🔷 उसके पास जो कुछ भी था वो सबकुछ बेच आया और अपने अपराध का पश्चात्ताप किया!
🔶 इसलिये एक बात हमेशा ध्यान रखनी चाहिये की कभी कभी आवश्यकता से ज्यादा होशियारी दिखाने पर नुकसान उठाना पड़ सकता है होशियारी अच्छी है पर आवश्यकता से ज्यादा होशियारी दुखदायी हो जाती है!
🔷 इसलिये होशियारी के साथ साथ समझदारी भी बहुत जरूरी है क्योंकि होशियारी उचित अनुचित नही देखती है पर समझदारी उचित अनुचित देखकर आगे बढ़ती है!